पहला भाग
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http://www.scribd.com/doc/57826205/Ved-Swami-Dayanand-Mehmud-Dharmpal-Hindi-Arya-Study-Book-Good-Result
..................
दूसरा भाग
पाँचवीं फ़सल
वेद और आलमगीर शान्ति
अर्थात विश्व-शन्ति
अब मैं इस बात पर बहस करूँगा कि वेदों को ख़ुदा का कलाम मानने वाले जो ये दावे करते हैं कि दुनिया में जिस क़द्र जंग व जदाल, क़त्ल व खून और माद्दा परस्ती का इस वक्त ज़ोर है वह सब वेदों की तालीम से बेबहरा रहने का बाइस है और कि अगर दुनिया में वेदों की तालीम फैल जाये तो चारों तरफ़ अमन व अमान और आलमगीरी शान्ति का राज हो जायेगा। देखना चाहिये कि ये दावा वाक़िआत की बिना पर कहाँ तक सच है। पेशतर इसके इस बाब को शुरू किया जाये मैं मुनासिब समझता हूँ कि एक दफ़ा स्वामी दयानन्द के इस क़ौल को जिसको मैं पीछे भी नक़ल कर चुका हूँ, यहाँ पर दोबारा नक़ल कर दूँ। स्वामी दयानन्द सत्यार्थ प्रकाश में लिखते हैं -
‘‘इस क़िस्म की प्रार्थना कभी न करनी चाहिये और न पमेश्वर इसको क़बूल करता है जैसा कि ये है कि ऐ परमश्ेवर! आप मेरे दुशमनों को फ़ना करो मुझ को सबसे बड़ा बनाओ। मेरी ही नेक नामी हो और सब मेरे मातेहत हो जाये वगै़रह वग़ैरह क्योंकर अगर दोनों दुशमन एक दूसरे के फ़ना होने के वास्ते प्रार्थना करें तो क्या परमेश्वर दोनों को फ़ना कर देवे अगर कोई कहे कि जिसकी मुहब्बत ज़्यादा होगी इसकी प्रार्थना सफल हो जायेगी तो हम कह सकते हैं कि जिसकी मुहब्बत कम हो उसका दुशमन भी कम दर्जे फ़ना होना चाहिये। ऐसी जिहालत की प्रार्थना करते करते कोई ऐसी प्रार्थना भी करने लग जायेगा वग़ैरह। (समुल्लास 7)’’
स्वामी दयानन्द की ये पोज़िशन जैसा कि पीछे दिखाया जा चुका है, बिल्कुल माकूल है। इस माकूलियत के मुक़ाबले में वेदों के वह तमाम मंत्र जो कि ऊपर दर्ज किये जा चुके हैं बिल्कुल लगू (बेकार) हो जाते हैं और ख़ुद स्वामी दयानन्द के क़ौल के मुताबिक़ वह महज़ जिहालत की प्रार्थनायें रह जाते हैं और ये है भी बिल्कुल ठीक। क्योंकि अगर इन मंत्रों को ख़ुदा का कलाम मान लिया जाये तो ख़ुदा की पोज़िशन एक तमाश बीन इन्सान से ज़्यादा बेहतर साबित नहीं हो सकती। जिन लोगों को बुटेर या मुर्ग़ लड़ाने का शौक़ होता है उनका क़ायदा होता है कि वह अपने अपने जानवरों को ख़ूब मोटा ताज़ा करते हैं और फिर लड़ने के लिये छोड़ देते हैं, जब वह लड़ते लड़ते थक जाते हैं तो वह उनको पानी और थापी देकर फिर लड़ाते हैं। चूँकि वह तमाशा बीन होते हैं इसलिये वह दानिस्ता जानवरों को आपस में लड़ाते हैं। अगर वेदों को मज़कूरा बाला मंतरों को ख़ुदा का कलाम तसलीम कर लिया जाये तो ख़ुदा की पोज़िशन हमारे नज़दीक इसी क़िस्म के एक तमाशबीन इन्सान की सी हो जाती है जबकि हम देखते हैं कि ऐसे मंत्रों का इलहाम देने वाला हम को भी अनाज पानी हवा सूरज की रोशनी वग़ैरह नेअ़मतों से बेहरवर करता है। और जिन के हक़ में वह हमें ये बद दुआ करने की तालीम देता है कि ये चीज़ें उनके लिये ज़ेहर हो जायें वह उनको भी यही चीज़ें अता करता है बल्कि अक्सर सूरतों में उनको हम से ज़्यादा बेहतर और कसरत से देता है। अब हमें तो ख़ुदा वेदों में ये तालीम देता है कि तुम अपने दुशमनों की हलाकत के लिये मुझ से ये दुआ करो उधर वह हमारे दुशमनों के साथ जा सकता है और उनको हर एक क़िस्म की चीज़ों से मदद देता है। न सिर्फ़ यही बल्कि वह हमारे दुशमनों को भी यही दुआ सिखाता है कि वह हमारी हलाकत के लिये इससे बददुआ करें। अब एक तरफ़ तो वेदों में दिये गये इलाही अहकाम के मुताबिक़ हम अपने दुशमनों के लिये बददुआ कर रहे हैं और उनकी हलाकत के मनसूबे सोच रहे हैं और दूसरी तरफ़ हमारे दुशमन हमारी हलाकत के लिये बददुआ करते और मनसूबे सोचते हैं। लुत्फ़ ये है कि हम दोनों ही वेदों के मंत्रों से अपने अपने रवैये की तसदीक़ करते हैं गोया ऐसी हालत में ख़ुदा एक तरफ़ हमारे दिल में भी दुशमनों के साथ लड़ने का जोश भर रहा है और दूसरी तरफ़ हमारे दुशमनों के दिल में भी हमारे मुक़ाबले पर डटे रहने का ख़्याल मज़बूत कर रहा है। सोचना चाहिये कि आया ख़ुदा की ये पोज़िशन जो कि वेद हमें बताता है बिएैयनिही मुर्ग़ को इन्सान की सी पोज़िशन नहीं है। वरना अगर ख़ुदा दरहक़ीक़त हमारे दुशमनों की हलाकत चाहता तो या वह दरहक़ीक़त पानी हवा अनाज वगै़रह को उनके हक़ में ज़ेहरीला करना चाहता हो तो उसको क्या ज़रूरत पड़ी है कि वह इन बातों की तकमील के लिये हमारे कानों मे आकर फूँक मारे और हमको यह इलहाम दे कि हम उससे दुआ करें कि हमारे दुशमनों के लिये पानी हवा अनाज वग़ैरह ज़िन्दगी के सामान सबके सब ज़ेहरीले हो जायें। जब वह क़ादिरे मुतलक़ और अलीमे कुल है। तो क्यों नहीं वह अपने इल्म से जान कर ज़्यादती करने वालों और पापियों के लिये अपनी हवा को बन्द कर देता, पानी को ख़ुश्क कर देता या अनाज को ज़ेहरीला बना देता या किसी और तरीक़े पर सज़ा दे देता। इसको हमारी दुआ या सिफ़ारिश की हरगिज़ ज़रूरत नहीं हो सकती। तावक्ते कि हम उसको लूला, लंगड़ा या गूंगा, बेहरा या सोया हुआ न फ़र्ज़ कर लें जिसको कि पापियों का नाश करने के लिये उसी तरह जाकर इत्तला देने या जगाने की ज़रूरत हो सकती है जिस तरह कि हम कोतवाली में जाकर जगाते या मुत्तलअ़ करते हैं। चूँकि ख़ुदावन्दे कुद्दूस की ज़ाते पाक इन बातों से अरफ़अ़ व आला है इसलिये लाज़मी तौर पर यही तसलीम करना पड़ता है कि मज़कूरा बाला क़िस्म की प्रार्थनायें न तो ख़ुदा का कलाम हैं न उनको ख़ुदा की तरफ़ मनसूब करना चाहिये। बल्कि बक़ौल स्वामी दयानन्द ये सब महज़ जाहिलों के अपने ख़्यालात हैं जो कि ख़ुदावन्दे कुद्दूस की ज़ाते वाला सिफ़ात से अंधेरे में थे और वह ख़ुदा को महज़ अपने ही शहर का कोतवाल समझते थे। अगर वेदों के मंत्रों के बनाने वालों को ख़ुदावन्दे कुद्दूस की ज़ात के बारे में कमाहिक़ा इल्म होता तो वह कम से कम इससे इस क़िस्म की नामाकूल प्रार्थनायें कभी न करते। मगर चूँकि वह ख़ुद ग़ैज़ व ग़ज़ब और हसद व बुग्ज़ का शिकार थे इसलिये उन्होंने दुशमनों के लिये भी जो प्रार्थनयें की हैं वह ग़ैज़ व ग़ज़ब हसद व बुग्ज़ की मुजस्सम तसवीरें हैं। शाक्यमणी गौतम बुद्ध की तालीम में ये ख़्याल बहुत ज़्बरदस्त अल्फ़ाज़ में पाया जाता है कि दुशमन को दुशमनी से दूर नहीं किया जा सकता बल्कि मुहब्बत से दूर किया जा सकता है अगर तुम चाहते हो कि तुम्हारे दुशमन तुम से मुहब्बत करें तो तुम उनसे मुहब्बत करो यही ख़्याल हमें हज़रत ईसा मसीह की तालीम में मिलता है जबकि वह बदीं अल्फ़ाज़ उपदेश करते हैं-
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वेद और आलमगीर शान्ति
अर्थात विश्व-शन्ति
अब मैं इस बात पर बहस करूँगा कि वेदों को ख़ुदा का कलाम मानने वाले जो ये दावे करते हैं कि दुनिया में जिस क़द्र जंग व जदाल, क़त्ल व खून और माद्दा परस्ती का इस वक्त ज़ोर है वह सब वेदों की तालीम से बेबहरा रहने का बाइस है और कि अगर दुनिया में वेदों की तालीम फैल जाये तो चारों तरफ़ अमन व अमान और आलमगीरी शान्ति का राज हो जायेगा। देखना चाहिये कि ये दावा वाक़िआत की बिना पर कहाँ तक सच है। पेशतर इसके इस बाब को शुरू किया जाये मैं मुनासिब समझता हूँ कि एक दफ़ा स्वामी दयानन्द के इस क़ौल को जिसको मैं पीछे भी नक़ल कर चुका हूँ, यहाँ पर दोबारा नक़ल कर दूँ। स्वामी दयानन्द सत्यार्थ प्रकाश में लिखते हैं -
‘‘इस क़िस्म की प्रार्थना कभी न करनी चाहिये और न पमेश्वर इसको क़बूल करता है जैसा कि ये है कि ऐ परमश्ेवर! आप मेरे दुशमनों को फ़ना करो मुझ को सबसे बड़ा बनाओ। मेरी ही नेक नामी हो और सब मेरे मातेहत हो जाये वगै़रह वग़ैरह क्योंकर अगर दोनों दुशमन एक दूसरे के फ़ना होने के वास्ते प्रार्थना करें तो क्या परमेश्वर दोनों को फ़ना कर देवे अगर कोई कहे कि जिसकी मुहब्बत ज़्यादा होगी इसकी प्रार्थना सफल हो जायेगी तो हम कह सकते हैं कि जिसकी मुहब्बत कम हो उसका दुशमन भी कम दर्जे फ़ना होना चाहिये। ऐसी जिहालत की प्रार्थना करते करते कोई ऐसी प्रार्थना भी करने लग जायेगा वग़ैरह। (समुल्लास 7)’’
स्वामी दयानन्द की ये पोज़िशन जैसा कि पीछे दिखाया जा चुका है, बिल्कुल माकूल है। इस माकूलियत के मुक़ाबले में वेदों के वह तमाम मंत्र जो कि ऊपर दर्ज किये जा चुके हैं बिल्कुल लगू (बेकार) हो जाते हैं और ख़ुद स्वामी दयानन्द के क़ौल के मुताबिक़ वह महज़ जिहालत की प्रार्थनायें रह जाते हैं और ये है भी बिल्कुल ठीक। क्योंकि अगर इन मंत्रों को ख़ुदा का कलाम मान लिया जाये तो ख़ुदा की पोज़िशन एक तमाश बीन इन्सान से ज़्यादा बेहतर साबित नहीं हो सकती। जिन लोगों को बुटेर या मुर्ग़ लड़ाने का शौक़ होता है उनका क़ायदा होता है कि वह अपने अपने जानवरों को ख़ूब मोटा ताज़ा करते हैं और फिर लड़ने के लिये छोड़ देते हैं, जब वह लड़ते लड़ते थक जाते हैं तो वह उनको पानी और थापी देकर फिर लड़ाते हैं। चूँकि वह तमाशा बीन होते हैं इसलिये वह दानिस्ता जानवरों को आपस में लड़ाते हैं। अगर वेदों को मज़कूरा बाला मंतरों को ख़ुदा का कलाम तसलीम कर लिया जाये तो ख़ुदा की पोज़िशन हमारे नज़दीक इसी क़िस्म के एक तमाशबीन इन्सान की सी हो जाती है जबकि हम देखते हैं कि ऐसे मंत्रों का इलहाम देने वाला हम को भी अनाज पानी हवा सूरज की रोशनी वग़ैरह नेअ़मतों से बेहरवर करता है। और जिन के हक़ में वह हमें ये बद दुआ करने की तालीम देता है कि ये चीज़ें उनके लिये ज़ेहर हो जायें वह उनको भी यही चीज़ें अता करता है बल्कि अक्सर सूरतों में उनको हम से ज़्यादा बेहतर और कसरत से देता है। अब हमें तो ख़ुदा वेदों में ये तालीम देता है कि तुम अपने दुशमनों की हलाकत के लिये मुझ से ये दुआ करो उधर वह हमारे दुशमनों के साथ जा सकता है और उनको हर एक क़िस्म की चीज़ों से मदद देता है। न सिर्फ़ यही बल्कि वह हमारे दुशमनों को भी यही दुआ सिखाता है कि वह हमारी हलाकत के लिये इससे बददुआ करें। अब एक तरफ़ तो वेदों में दिये गये इलाही अहकाम के मुताबिक़ हम अपने दुशमनों के लिये बददुआ कर रहे हैं और उनकी हलाकत के मनसूबे सोच रहे हैं और दूसरी तरफ़ हमारे दुशमन हमारी हलाकत के लिये बददुआ करते और मनसूबे सोचते हैं। लुत्फ़ ये है कि हम दोनों ही वेदों के मंत्रों से अपने अपने रवैये की तसदीक़ करते हैं गोया ऐसी हालत में ख़ुदा एक तरफ़ हमारे दिल में भी दुशमनों के साथ लड़ने का जोश भर रहा है और दूसरी तरफ़ हमारे दुशमनों के दिल में भी हमारे मुक़ाबले पर डटे रहने का ख़्याल मज़बूत कर रहा है। सोचना चाहिये कि आया ख़ुदा की ये पोज़िशन जो कि वेद हमें बताता है बिएैयनिही मुर्ग़ को इन्सान की सी पोज़िशन नहीं है। वरना अगर ख़ुदा दरहक़ीक़त हमारे दुशमनों की हलाकत चाहता तो या वह दरहक़ीक़त पानी हवा अनाज वगै़रह को उनके हक़ में ज़ेहरीला करना चाहता हो तो उसको क्या ज़रूरत पड़ी है कि वह इन बातों की तकमील के लिये हमारे कानों मे आकर फूँक मारे और हमको यह इलहाम दे कि हम उससे दुआ करें कि हमारे दुशमनों के लिये पानी हवा अनाज वग़ैरह ज़िन्दगी के सामान सबके सब ज़ेहरीले हो जायें। जब वह क़ादिरे मुतलक़ और अलीमे कुल है। तो क्यों नहीं वह अपने इल्म से जान कर ज़्यादती करने वालों और पापियों के लिये अपनी हवा को बन्द कर देता, पानी को ख़ुश्क कर देता या अनाज को ज़ेहरीला बना देता या किसी और तरीक़े पर सज़ा दे देता। इसको हमारी दुआ या सिफ़ारिश की हरगिज़ ज़रूरत नहीं हो सकती। तावक्ते कि हम उसको लूला, लंगड़ा या गूंगा, बेहरा या सोया हुआ न फ़र्ज़ कर लें जिसको कि पापियों का नाश करने के लिये उसी तरह जाकर इत्तला देने या जगाने की ज़रूरत हो सकती है जिस तरह कि हम कोतवाली में जाकर जगाते या मुत्तलअ़ करते हैं। चूँकि ख़ुदावन्दे कुद्दूस की ज़ाते पाक इन बातों से अरफ़अ़ व आला है इसलिये लाज़मी तौर पर यही तसलीम करना पड़ता है कि मज़कूरा बाला क़िस्म की प्रार्थनायें न तो ख़ुदा का कलाम हैं न उनको ख़ुदा की तरफ़ मनसूब करना चाहिये। बल्कि बक़ौल स्वामी दयानन्द ये सब महज़ जाहिलों के अपने ख़्यालात हैं जो कि ख़ुदावन्दे कुद्दूस की ज़ाते वाला सिफ़ात से अंधेरे में थे और वह ख़ुदा को महज़ अपने ही शहर का कोतवाल समझते थे। अगर वेदों के मंत्रों के बनाने वालों को ख़ुदावन्दे कुद्दूस की ज़ात के बारे में कमाहिक़ा इल्म होता तो वह कम से कम इससे इस क़िस्म की नामाकूल प्रार्थनायें कभी न करते। मगर चूँकि वह ख़ुद ग़ैज़ व ग़ज़ब और हसद व बुग्ज़ का शिकार थे इसलिये उन्होंने दुशमनों के लिये भी जो प्रार्थनयें की हैं वह ग़ैज़ व ग़ज़ब हसद व बुग्ज़ की मुजस्सम तसवीरें हैं। शाक्यमणी गौतम बुद्ध की तालीम में ये ख़्याल बहुत ज़्बरदस्त अल्फ़ाज़ में पाया जाता है कि दुशमन को दुशमनी से दूर नहीं किया जा सकता बल्कि मुहब्बत से दूर किया जा सकता है अगर तुम चाहते हो कि तुम्हारे दुशमन तुम से मुहब्बत करें तो तुम उनसे मुहब्बत करो यही ख़्याल हमें हज़रत ईसा मसीह की तालीम में मिलता है जबकि वह बदीं अल्फ़ाज़ उपदेश करते हैं-
तुम सुन चुके हो कि कहा गया है अपने पड़ोसियों से दोस्ती रख और अपने दुशमन से अदावत लेकिन मैं तुम्हें कहता हूँ कि अपने दुशमनों को प्यार करो और जो तुम पर लानत करें उन के लिये बरकत चाहो जो तुम से कीना रखें उनका भला करो और जो तुम्हें दुख दें और सतायें उनके लिये दुआ करे ताकि तुम अपने बाप के जो आसमान पर है फ़रज़न्द हो क्योंकि वह अपने सूरज को बदूँ और नेकियों पर यकसाँ उगाता है और रास्तों और ना रास्तियों पर मीह बरसाता है क्योंकि अगर तुम उन्ही को प्यार करो जो तुम्हें प्यार करते हैं तो तुम्हारे लिये क्या अज्र है कि क्या महसूल लेने वाले भी ऐसा नहीं करते। (मता बाब 5 आयतः 43-47)
हज़रत ईसा मसीह की मज़कूरा बाला तालीम वेदों के मज़कूरा बाला मंत्रों की तालीम से बदरजहा अफ़ज़ल है। अगर हज़रत मसीह और वेदों के मंतरों के इलहाम देने वाले का बाहम मुक़ाबला करना हो तो यक़ीनन् हज़रत मसीह का दर्जा ऐसे इलहाम के मालिक से लाखों गुना बढ़कर रहेगा। क्योंकि हज़रत मसीह ख़ुदावन्दे कुद्दूस की स्प्रिट में मुजस्सम प्रेम, अफ़ू और दरगुज़र की तालीम देते हैं, जबकि वेदों के मज़कूरा बाला मंतरों का प्रकाशक (जैसा कि वेदों को इलहामी मानने वालों का ख़्याल है) निहायत ही कीना तोज़ बुग्ज़ व हसद व ग़ैज़ व ग़ज़ब का शिकार नज़र आता है।
रसूले अरबी हज़रत मुहम्मद स0अ0व0 साहब की मुक़द्दस और पाकीज़ा ज़िन्दगी से भी ऐसे बहुत से वाक़िआत पेश किये जा सकते हैं कि जिन लोगों ने आप को अनवाअ़ व अक़साम की तकालीफ़ दी थीं आप पर जादू चलाये थे, कीचड़ फेंका था, गालियाँ दी थीं, आपको मारा था, ज़ख़्मी किया था, आपके दाँत तोड़े थे और आप के क़त्ल के मनसूबे बाँधे थे, घर से बेघर कर दिया था, आप का और आप के असहाब का माल व दौलत और घर बार भी लूट लिया था, लेकिन जब इस क़िस्म के आपके दुशमन आपके सुपुर्द गिरफ़तार करके लाये गये या लाये जाते तो आप हमेशा उनको माफ़ कर देते और आपने कभी किसी दुशमन से बदला न लिया बल्कि उहद के मौके़ पर जबकि आपको दुशमनों ने ज़ख़्मी करके एक ग़ार में फेंक दिया तो आपके कई रफ़क़ा ने आप से अर्ज़ किया कि आप ख़ुदावन्दे कुद्दूस से ऐसे बदकिरदार दुशमनों की हलाकत के लिये बददुआ करें तो आप ने कमाले नर्मी और इसतक़लाल से फ़रमाया-
रसूले अरबी हज़रत मुहम्मद स0अ0व0 साहब की मुक़द्दस और पाकीज़ा ज़िन्दगी से भी ऐसे बहुत से वाक़िआत पेश किये जा सकते हैं कि जिन लोगों ने आप को अनवाअ़ व अक़साम की तकालीफ़ दी थीं आप पर जादू चलाये थे, कीचड़ फेंका था, गालियाँ दी थीं, आपको मारा था, ज़ख़्मी किया था, आपके दाँत तोड़े थे और आप के क़त्ल के मनसूबे बाँधे थे, घर से बेघर कर दिया था, आप का और आप के असहाब का माल व दौलत और घर बार भी लूट लिया था, लेकिन जब इस क़िस्म के आपके दुशमन आपके सुपुर्द गिरफ़तार करके लाये गये या लाये जाते तो आप हमेशा उनको माफ़ कर देते और आपने कभी किसी दुशमन से बदला न लिया बल्कि उहद के मौके़ पर जबकि आपको दुशमनों ने ज़ख़्मी करके एक ग़ार में फेंक दिया तो आपके कई रफ़क़ा ने आप से अर्ज़ किया कि आप ख़ुदावन्दे कुद्दूस से ऐसे बदकिरदार दुशमनों की हलाकत के लिये बददुआ करें तो आप ने कमाले नर्मी और इसतक़लाल से फ़रमाया-
अनुवादः ‘‘यानी मैं अपने दुशमनों पर लानत करने या उनके हक़ मे बद्दुआ करने के लिये नहीं भेजा गया बल्कि मुझे ख़ुदावन्दे कुद्दूस ने इस खि़दमत पर मामून किया है कि मैं उनको ख़ुदावन्द की तरफ़ बुलाऊँ और उनके हक़ में अबरे रहमत बनूँ। ऐ मेरे ख़ुदावन्द! तू मेरी क़ौम को हिदायत दे क्योंकि वह नहीं जानते कि मेरे साथ क्या सुलूक कर रहे हैं।’’
यक़ीनन् हज़रत मुहम्मद स0अ0व0 साहब की ये स्प्रिट हुस्ने अख़्लाक़ और दरगुज़र का एक नमूना है। लेकिन मुझे अफ़सोस के साथ इस बात का इक़बाल करना पड़ता है कि दुशमनों से दरगुज़र करने उनकी बहबूदी चाहने और उनसे प्रेम व मुहब्बत करने की तालीम का जो अमली नमूना महात्मा बुद्ध और हज़रत ईसा मसीह और हज़रत मुहम्मद स0अ0व0 साहब अपनी मुक़द्दस ज़िन्दगियों में दिखा गये, उसका यानी दुशमनों के साथ नेकी करने या उनसे दरगुज़र करने का वेद में कहीं नाम व निशान भी नहीं मिलता बल्कि जाबजा यही तालीम है कि दुशमनों की गर्दनें काटो, उनको ज़िन्दा आग में जला दो, शेरों से फड़वा दो, समन्दर में ग़र्क़ कर दो, दरिन्दों से चरवा दो, फाँसी पर चढ़ा दो वगै़रह वगै़रह। हालाँकि वेदों को ख़ुदा का कलाम कहा जाता है। अगर ख़ुदा का कलाम यही है तो यक़ीनन् गौतम बुद्ध और हज़रत ईसा मसीह और हज़रत मुहम्मद स0अ0व0 साहब की ज़ाते वाला सिफ़ात अरफ़अ़ व आला समझनी चाहिये। ऐसी सूरत में लाज़िम हो जाता है कि हम ऐसे ख़ुदा की बजाये अपनी इताअ़त व फ़रमांबरदारी का मुँह महात्मा बुद्ध या हज़रत ईसा मसीह या हज़रत मुहम्मद स0अ0व0 साहब की तरफ़ फेर दें या इस बात को तसलीम करें कि ख़ुदावन्दे कुद्दूस की ज़ात वाला सिफ़ात, उन इलज़ामों से मुबर्रा है जो कि मंत्रों में इस पर लगाये गये हैं और ये कि वेद किसी सूरत में ख़ुदावन्दे कुद्दूस का कलाम नहीं हैं। सिर्फ़ यही नहीं कि वेद में अपने दुशमनों के लिये सख़्त से सख़्त सज़ायें और कमीने से कमीना बद्दुआयें तजवीज़ की गयी हैं बल्कि ख़ौफ़नाक जंग व जदाल की भी तालीम दी गयी है। वह लोग जो वेदों को ख़ुदा का कलाम मानते हैं उनको ये दावा है कि दुनिया में इस वक्त जिस क़द्र जंग व जदल और कश्त व ख़ून हो रहे हैं वह उस वक्त तक मौकूफ़ नहीं होंगे जब तक कि वदों का प्रचार नहीं होगा और कि दुनिया में अगर आलमगीर अमन की बादशाहत क़ायम हो सकती है तो वह महज़ वेदों के प्रचार से ही हो सकती है, वेदों की तालीम की मौजूदगी में ये दावा ऐसा बे बुनियाद दावा मालूम होता है कि जिससे बढ़कर बेबुनियाद और झूठा दावा दुनिया में कोई नहीं होगा जो लोग ऐसा दावा करते हैं ग़ालिबन् उन्होंने वेदों का मुतालेअ़ नहीं किया होगा कम से कम वह स्वामी दयानन्द के यजुर्वेद भाष्य का ही मुतालेआ कर लें जिसको मैंने आम लेागों की वाक़िफ़यत के लिये उर्दू का जामा पहना दिया है तो उनका ये ख़्याल इस तरह उनके दिल से काफूर हो जायेगा। जिस तरह कि सूरज के सामने शबनम, पेशतर इसके कि मैं जंग व जदाल और कश्त व ख़ून के बारे में वेद मंत्रों को यहाँ पर दर्ज करूँ। मैं एक दूसरे दावे पर भी यहाँ पर चन्द जुमले लिख देना चाहता हूँ। चुनांचे वह लोग जो वेदों को ख़ुदा का कलाम मानते हैं वह ये भी कहते हैं कि इबतदाये आफ़रीनिश में भी इन्सान पैदा हुआ ही था कि इसकी रहबरी के लिये वेद नाज़िल हो गये। ये एक आम बात है कि पैदाइश के वक्त इन्सान का दिल बिल्कुल साफ़ और हर एक क़िस्म की शरारतों से पाक होता है। उस वक्त इसके दिल पर जो बात नक्श करना चाहो वह आसानी से नक़्श हो सकती है। इबतदाये आफ़रीनिश के बच्चों के दिल भी हस्बे क़ायदा तमाम शरारतों से पाक थे। और वह आपस में दंगा फ़साद कुश्त व ख़ून नहीं करते थे। इस वक्त अगर उनको किसी क़िस्म की तालीम की ज़रूरत थी तो वह आपस में प्रेम, मुहब्बत सुलह से रहने की तालीम की ज़रूरत थी, ये बात तो उनके कान तक भी नहीं पहुँचनी चाहिये थी कि तुम आपस में जंग करो, तीर कमान बनाओ, तोप और बन्दूक़ तैयार करो, फ़ौजें भर्ती करो, अपने दुशमनों की गर्दनें काटो, उन्हें ज़िन्दा आग में जला दो, मगर इबतदाये आफ़रीनिश में इन्सानों को कुश्त, ख़ून व जंग व जदल की मारधाड़, दुशमनी और अदावत की तालीम देने वाला अगर कोई हो सकता है तो वह वेदों के मंत्र थे जिनको पढ़कर वह उन ख़तरनाक बातों का शिकार हो गये और उन्होंने वेदों को पढ़कर तीर कमान, तोप, बन्दूक़, तलवार हथियार वगै़रह बनाने सीखे और ये ख़ुद उन लोगों का जो कि वेदों को सब से पहला इलहाम मानते है दावा है कि वेदों में इस क़िस्म के हथियार बनाने की तालीम मौजूद है। बनी नूए इन्सान का कोई बहीख़्वाह तोप और बन्दूक़ और दूसरे ख़तरनाक हथियारों के मौजूद या मुअल्लिम को मुबारकबाद देने के लिये तैयार नहीं होगा जबकि ये अम्रे वाक़िअ़ है कि इन चीज़ों ने ज़मीन के फ़र्श को इन्सानी ख़ून से रंग डाला और इन चीज़ों को इन्सानों के हक़ में लानत और शरारत बना दिया। बहुत से बनी नूए इन्सान के बही ख़्वाह ये तजावीज़ सोचने के लिये मजबूर हो रहे हैं कि इस शरारत और लानत को कयोंकर दूर या कम से कम घटाया जा सकता है। अगर ये दावे सच है कि वेदों का इलहाम इबतदाये आफ़रीनिश में हुवा। अगर ये दावा भी सच है कि वेदों ने ही सब से पहले अपने हम जिन्सों का गला काटने के लिये इस क़िस्म के हथियार बनाने की तालीम दी (जैसा कि वेदों को इलहामी मानने वाले बता रहे हैं) तो ज़मीन की मौजूदा लानत का सरचश्मा वेद को क़रार देना बिल्कुल मुनासिब और दुरूस्त होगा। लेकिन अगर ये कहा जाये कि वेदों के इज़हार से पेशतर दुनिया में इस क़िस्म के कुश्त व ख़ून और जंग व हदल जारी थे और कि वेदों की तालीम से पहले ही लोग तोप बन्दूक़ और तीर व कमान से एक दूसरे को हलाक कर रहे थे तो उनसे सिर्फ़ यही नहीं कि इस दावे की कि वेदों का इलहाम शुरू दुनिया में हुआ, तरदीद हो जाती है। बल्कि वेदों के सर पर ये इलज़ाम आयद हो जाता है कि जिस सूरत में कि ये जंग व हदल और कुश्त व ख़ून वेदों से पहले ही जारी थे तो वेदों ने अपनी तालीम से बजाये इनका ख़ात्मा करने या सुलह की तालीम देने के जलती आग पर और भी घी डाल दिया और जंग व जदल कुश्त व ख़ून करने फ़ौज भर्ती करने, तीर कमान, तोप बन्दूक़ और अनवाअ़ व अक़साम के आतिशीं और बिजली के असलहे तैयार करने की ऐसी ख़तरनाक तालीम दी कि तमाम दुनिया शोला-ए-ग़ार बन गयी, नमूने के तौर पर मैं इस निहायत ही ख़तरनाक कुश्त व ख़ून और जंग व जदल की तालीम देने वाले चन्द वेद मंतरों को यहाँ पर यजुर्वेद में से पेश करता हूँ -
(1) वह जो हवाई जहाज़ में बैठकर हवा में उड़ते हैं जिनके तीर हवा की मानिन्द चलने वाले हैं इन पुरानों की मानिन्द बहादुरों को हमारा सत्कार हो।’’ (यजुर्वेद 16/25)
(2) जिन के तीर बारिश की मानिन्द बरसने वाले हैं हम लोग दुशमनों को मारने वाले इन बहादुरों का सत्कार करते हैं।’’ (यजुर्वेद 16/51)
(3) ऐ सिपहसालार आप हम को दिली राहत देने वाले हों आप हमारी हिफ़ाज़त की ख़ातिर तलवार, तोप बन्दूक़ को ग्रहण करें। आप हिरन की खाल को पहने हुए हमारी हिफ़ाज़त के लिये आयें और दुशमनों की ज़बरदस्त फ़ौज को दरख़्त की मानिन्द काट कर फ़तह कीजिये। (16/51)
(4) ऐ सूर की मानिन्द सोने से नफ़रत करने वाले राजा! आप के जो अनवाअ़ व अक़साम के हथियार हैं वह हमारे सिवाये दुशमनों को मारने का मौजिब हों। (16/52)
(5) ऐ ख़ुश क़िस्मत सिपहसालार आप अपने ज़ोर आवर बाज़ुओं से बेशुमार हथियारों का कमाहिक़ा इस्तेमाल करने वाले हैं। (16/53)
(6) ऐ इन्सानो! जिस तरह हम लोग हज़ारों जीव जन्तुओं से भरी हुई और ज़मीन के हज़ारों पूजन लम्बे चौड़े देश व देशान्तर में अपनी कमान को चल्ले पर चढ़ाते हैं उसी तरह तुम भी करो। (16/54)
(7) हम लोग दुशमनों को मारने और उनको ताड़ने का काम करने वालों का सत्कार करते हैं। (16/45)
(8) हम लोग रूबरू होकर दुशमन को मारने वाले तीर बनाने वाले कमान बनाने वाले तीरो तफ़ंग चलाने वाले तुम लोगों का सत्कार करते हैं। (16/46)
(9) जो दुशमनों को पहले से ही घेर लेने और क़ैद कर लेने वाले और दुष्टों को मारने और उनकी बिल्कुल बेख़कनी करने वाले और दुशमनों को काटने वाले और हरे बालों वाले नौजवान या हरे दरख़्तों को अनाज और पानी देता है, वह सुख को प्राप्त करता है। (16/48)
(10) वह जो जंगल में रहने वालों को ऽह्नऽह्न तेज़ रफ़तार फ़ौज के सिपहसालार को तेज़ रफ़तार रथों के मालिक को कोचवान को दुशमनों को मारने वाले और उनको तितर बितर करने वाले बहादुरों और एलचियों को अनाज देते हैं वह फ़तह नसीब होते हैं। (16/34)
(11) ऐ राजा और प्रजा के पुरूषो! तुम लोग बलम और फ़तह लगाने वाले और उनका मुनासिब इस्तेमाल करने वाले पुरूषों का सत्कार करोऽह्न सिपहसालार और कमान अफ़सरों को बाजा बजाने वाले बैन्ड मास्टर का और बहादुरों को मैदाने जंग में जोश दिलाने के लिय ज़रीमा गीत गाने वाले का सत्कार करो। (16/35)
(12) राजा और प्रजा के पुरूषों को चाहिये कि वह बहुत से हथियारों से मुसल्लह और तीरों से भरे हुए तरकश वाले का सत्कार करें तेज़ हथियारों और तोप बन्दूक़ से मुसल्लह फ़ौज के सिपहसालार का सत्कार करें, ख़ूबसूरत हथियारों वाले और उमदा कमानों वाले पुरूषों और उनके मुहाफ़िज़ों को अनाज दें। (16/36)
(13) राजा अधीकारी पुरूषों को चाहिये कि वह दुशमनों को रूलाने वाले और दुशमनों की फ़ौज को मिट्टी में मिलाने वाले बहादुरों को अनाज वग़ैरह दें। (16/18)
(14) इन्सानेां को चाहिये कि जिसके पास तलवार, बन्दूक़ वगै़रह बहुत से हथियार हों उसको अनाज वगै़रह दें। (16/40)
(15) ऐ इन्सानो! तुम सबको बता दो कि हम लोग दुशमनों पर हथियार चलाने वाले को तुम में से दुशमनों को हथियार से मारने वालों को अनाज देंगे। (16/33)
(16) हम अदल व इन्साफ़ करने वाली स्त्रियों का और तुम में से सभा की रक्षा करने वाले राजाओं का सत्कार करेंगे, घोड़े की रक्षा करने वालों को, दुशमनों की फ़ौज को मारने वाली अपनी फ़ौज को और तुम में से जो स्त्रियाँ दुशमनों की फ़ौज के बहादुरों को मारने वाली हों और मुख़्तलिफ़ तरकों वाली हों और मैदाने जंग में दुशमनों को मारती हुई स्त्रियों को अनाज देंगे और उनको कमाहिक़ा इस्तेमाल करेंगे। (16/24)
(17) ऐ दुशमनों को मारने वाले राजा तेरे लिये अनाज प्राप्त हो, तेरे बाज़्ाुओं से दुशमनों को वज्र प्राप्त हो। (16/1)
(18) ऐ बादल की तरह तीरों की बारिश करने वाले सिपहसालार! तेरा तीर को हाथ में लेना और इसको चलाना मंगलकारी हो। (16/31)
(19) वह सिपहसालार जो गले में नीलम की माला पहने हुए है जो दुशमनो को रूलाने वाला है वह हम को सुख देने वाला हो। (16/7)
(20) ऐ बुलन्द इक़बाल सिपहसालार! तेरे हाथ में जो तीर हैं तू उनको कमान में रखकर कमान के दोनों गोशों को मिलाकर बड़े ज़ोर से दुशमन पर छोड़ और तीर दुशमन तुझ पर चलाये तो अपने आप को उनकी ज़द से दूर रखे। (16/9)
(21) ऐ फ़नून जंग में माहिर इनसानो! इस जटाधारी सिपहसालार की कमान कभी भी चल्ले से उतरने न पाये और इसके तीर की नोक कभी न टूटे इस मुसल्लह सिपहसालार का तरकश कभी भी तीरों से ख़ाली न होने पाये उसका तरकश हमेशा तीरों से भरा रहे। मगर इसका तरकश तीरों से ख़ाली हो जाये तो इसको नये तीरों से भर दो। (16/10)
(22) ऐ बहुत ज़्यादा देरिया सींचने वाले सिपहसालार! तेरे हाथ में जो तीर व कमान है तेरे मुतीअ़ जो फ़ौज है तू इस तीर व कमान और फ़तह नसीब फ़ौज केे ज़रिये हमारी सब तरफ़ से हिफ़ाज़त कर। (16/11)
(23) ऐ सिपह सालार! तू अपनी तीर अन्दाज़ कमान के साथ हमारी दूर और नज़दीक सब तरफ़ से रक्षा कर, आप हमारे नज़दीक ही अपने तरकश को तीरों से भरकर धारण कीजिय। (16/12)
(24) ऐ मैदान जंग में चारों तरफ़ नज़र दौड़ाने वाले तीर कमान से मुसल्लह फ़ौज के सिपहसालार तू अपनी कमान को फैला और नोकदार तीरों को दुशमनों पर चला और उनको हलाक करके हमें दिली राहत देने वाला हो।’’ (16/13)
(25) ऐ कुव्वते बाज़ू रखने वाले फ़ौज के सिपहसालार! तुझे हथियार प्राप्त हों। (16/17)
(26) ऐ राजा! आप हमारे ज़ोर आवर दुशमनों पर फ़तह हासिल कीजिये। (15/2)
(27) ऐ तेज़ हथियारों का इस्तेमाल करने वाले, मज़कूरा बाला औसाफ़ से मौसूफ़ सरदार जिस तरह सूरज की तेज़ किरणें सुबह के वक़्त रात को दूर करके दिन को प्रकाशित करती हैं। इसी तरह तू भी अपने तेज़ स्वभाव से रात की मानिन्द राक्षसों को यक़ीनन् भस्म कर। (15/37)
(28) ऐ राजा! आप हमारे लिये मैदान जंग में दुशमनों पर फ़तह पाने वाले हैंऽह्न आप की फ़ौज मैदाने जंग में कारहाये नुमायाँ करने वाली हो। (15/39)
(29) ऐ राजा! आप अपनी फ़ौज की ताक़त को मुस्तक़िल तौर पर बढ़ायें। (15/40)
(30) ऐ सिपेहसालार! आप अपना जवा दिखायें और मुल्क गीरी कीजिय। (15/52)
(31) ऐ सिपेहसालार! आप ताक़त हासिल करें और इस ज़मीन को अपने दाम तसर्रूफ़ में लायें। दुशमनों को मुँह के बल गिरायें हाथी और फ़ौज के मालिक राजा की मानिन्द आप अपने दुशमनों को निहायत ही दुख देने वाले हथियारों से मारते हुए उनके गले में फाँसी डालें और उनको रूबरू लानत फटकार करें। (13/9)
(32) ऐ सिपेहसालार! आपकी बहादुरों की फ़ौज बिजली की तरह कड़कती और चमकती हुई चारों तरफ़ से दुशमनों की फ़ौज पर हमलावर हो। ऐ सिपेहसालार तू अपनी फ़ौज की ताक़त को बढ़ा और उसको ख़ूब तरबियत कर जिस तरह आग पर घी डालने से शोले बुलन्द होते हैं उसी तरह तू दुशमनों की फ़ौज पर बिजली के हथियार चला। (13/10)
(33) ऐ मेरी बहादुर बीवी! दुशमन तेरी नज़र को नहीं सहार सकता तू अपने आप ही दुशमन की फ़ौज से लड़ती हुई दुशमन के हमलों को रोकती है। (13/26)
(34) ऐ आलिम बाअमल और पुर जलाल महात्मन् आप के घोड़े मंज़िल मक़सूद तक पहुँचाने वाले बड़े सधे हुए दुशमन पर हमला करने के लिये बड़े जोश और ताक़त के साथ रथ को खींचने वाले हैं। (13/39)
(35) ऐ आलिम बाअमल महात्मन्! आप के जिन घोड़ों को चाबुक सवारों ने सधाया हुआ है। आप उनको दुशमनों की फ़ौज के मुक़ाबले में रथ मे जोड़िये। (13/37)
(36) ऐ वेद के जानने वाले राजा! तुम अपने रिआ़या के दुशमनों को आग की मानिन्द तपाओ और अपनी रिआया की मदद से अपने दुशमनों पर फ़तह हासिल करो। (12/16)
(37) राजा को चाहिये कि आग की तरह दुशमनों को तबाह करे। (12/13)
(38) ऐ इन्सानो! तुम्हारा जो सिपहसालार है वह सूरज की मानिन्द आब व ताब वाला हो, वह दुशमनों के हक़ में बर्क़ दरख़्शां हो। ऐसा ही सिपहसालार हमारी फ़ौजों की कमान करे।
(39) जो इन्सान सूरज की मानिन्द दुशमनों से लड़ने वाला हो वही ग्रहस्त आश्रम में दाखि़ल होने के लायक़ है। (13/66)
(40) ऐ शान्ति स्वभाव पुरूष! आप दुशमनों को नीचा दिखने वाले फ़न जंग को सीखें। (12/13)
(41) ऐ राजा तेरा दुशमनों के मुक़ाबले पर जाना मुबारक हो तू अपनी ताक़तवर फ़ौज के साथ बद किरदार दुशमनों की फ़ौज पर हमला कर और उसको तहे तेग़ कर तू दुशमनों के मुल्क को पांमाल करता हुआ वापस आ तू हमें सुख दे। दुशमनों को रूलाने वाला तेरा सिपहसालार तेरे साथ हो। (11/15)
(42) ऐ राजा जिस तरह तेज़ रफ़तार घोड़ा! मैदाने जंग में अपनी जोलानी से ज़मीन को हिला देता है वैसे ही तू भी मैदाने जंग में धूम मचा। (12/18)
(43) ऐ राजा तू कमाले मुहर व मुहब्बत से अपने दुशमनों को पायमाल करके अपनी राज भूमि में इल्म की रोशनी फैलाने की ख़्वाहिश कर। (11/19)
(44) ऐ राजा! तू अपनी फ़ौज के साथ दुशमन के मुक़ाबले पर क़ायम हो। (11/20)
(45) ऐ राजा! जिस तरह हिफ़ाज़त करने वाले आलिम को पौत्र शागिर्द सुख देने वाले आग वगै़रह पदार्थों को हासिल करके वेदों के अर्थ को जानने वाला और तमाम उलूम में माहिर और दुशमनों को मारने वाला और दुशमनों के गाँव को तबाह करके आप के जाह व हशमत को दोबाला करना है, उसी तरह दीगर विद्वान लोग भी आपको विद्या और रोने से तरक़्क़ी दें। (11/33)
(46) ऐ पानी की मानिन्द नेक औसाफ़ रखने वाली स्त्रियो! अगर तुमको सुख भोगने की ख़्वाहिश है तो तुम बड़े बड़े लड़ाई के मैदानों और ताक़त व शुजाअ़त के हाथों में हमारे पहलू बा पहलू क़दम मारो। (11/50)
(47) ऐ सिपेहसालार! जिस तरह मैं मुक़ाबले पर आकर लड़ने वाले, मुख़्तलिफ़ क़िस्म की धमकियाँ देने वाली हथियारों से मुसल्लह हुई दुशमन की फ़ौज को जलती हुई आग की लपेट में गिराता हूँ उसी तरह तू भी ऐसे आदमियों को भस्म किया कर। (11/77)
(48) ऐ सभा और फ़ौज के स्वामी! जो लोग हम से दुशमनी करते हैैं जो हमारे साथ द्वेष करते हैं जो हमारी निन्दा करते हैं जो हम को धोखा दे और मक्कारी करे तो ऐसे तमाम इन्सानों का जलाकर भस्म कर डाल। (21/80)
(49) ऐ राजा! तेरा राज दुशमनों को हलाक करके तेरे लिये निहायत ही ख़ुशी का देने वाला हो। (9/4)
(50) ऐ वीर पुरूष! जिस मैदाने जंग मे तू जाहो हशमत वाले राजा के संगरा मूलका विभाग करने वाला, वज्र की मानिन्द दुशमनों को काटने वाला और प्रजा की रक्षा करने वला हो, इस मैदाने जंग का आप के साथ ये पुरूष इन्तज़ाम करे। (9/5)
(51) ऐ राजा! जिस तरह बाज़्ा हवा में चारों तरफ़ तेज़ी से उड़ता है उसी तरह आप भी हमारे लिये फ़ौज की ताक़त से ताक़तवर हो जाइये। (9/9)
(52) ऐ आलिम इन्सानो! तुम इस राजा की फ़नून जंग में वाक़िफ़यत को ज़्यादा करो ऐ दुशमनों की बेख़कनी करने वाले राजा! आप दुशमनों पर फ़तह हासिल करके इक़बाल मंद हों। (9/11)
(53) ऐ राजपुरूषो! तुम लोग जाह व हशमत के देने वाले सिपेहसालार को मैदाने जंग में फ़तह नसीब करो। (9/12)
(54) ऐ इल्म की ताक़त से आरास्ता मैदाने जंग को जीतने वाले चारों तरफ़ से दुश्मनों की देखभाल करके उनको घेरने वाले लोगो! जैसे तुम लोग चारों तरफ़ चलते हो वैसे ही हम भी चलें। (9/13)
(55) सिपेहसालार को चाहिये कि वह अपनी फ़ौज को तमाम कील काँटे से लैस करके बोली पर चलने के लिय तैयार रखे।
(56) ऐ राजा! मैं राक्षसों के नाश करने के लिय आपको ग्रहण करता हूँ जिस तरह तूने दुष्ट को मारा है वैसे ही हम भी दुष्टों को मारें वह दुष्ट नष्ट हो जाये वैसे हम लोग भी उन सब को नष्ट करें। (9/38)
(57) ऐ सभापति! आप अपनी फ़ौज के साथ अपनी हर एक क़िस्म की ताक़त को बढ़ायें। (8/29)
(58) ऐ काली घटा की मानिन्द फ़ौज के बहादुरो! तुम दोनेां इन तमाम दुश्मनों को जो हमारी फ़ौज से लड़ना चाहें तीर व तफ़ंग से हलाक करो और दुशमनों की जो फ़ौज तुम्हारे सामने आये और जो भी तुम्हारे सामने अकड़फूं करे तुम लोग उनको मार भगाओ। (8/53)
(59) मैदाने जंग में वैदिक विद्या को प्रकाश करने वाला हम को वैदिक और युद्ध की शिक्षा युक्त वाणी से आनन्द देने वाला हो, दूसरा बहादुर मैदान में दुशमनों को पामाल करता हुआ आगे आगे चले। तीसरा बहादुर मैदाने जंग में वीर रस से लड़ने वालों को जोश दिलाता रहे चौथा बहादुर कमाल आनन्द से धर्म के दुशमनों पर फ़तह हासिल करे। (7/44)
(60) ऐ राजन्! जिस तरह मैं बुरे काम करने वाले जीवों को गले काटता हूँ वैसे तू भी काट, मुझ से द्वेष या नफ़रत करने वाले दुशमनों को दूर कर जो मेरे सरीहन् दुशमन हैं उनको अलग कर। (6/1)
(61) ऐ सिपेहसालार! तू तमाम बहादुरों की फ़ौज के दुशमनों को चारों तरफ़ से घेरने के लिये शुमाल जुनूब, मशरिक़ मग़रिब में बाँट। (6/16)
(62) ऐ सभापति! जिस कर्म से बडे़ बड़े घमण्डी दुशमन मारे जायें, इस परम उत्तम दुशमनों को हलाक करने वालो काम के लिये आपको जो कि आला जाह व हशमत के धारण करने वाले हैं और युद्ध वग़ैरह कामों में बाज़ वग़ैरह जानवरों की मानिन्द लपेट मारने वाले हैं, हम लोग आप को स्वीकार करते हैं। (6/32)
(63) ऐ आलमे इन्सान जिस तरह तू धार्मिक विद्वानों में जलवा गर है उसी तरह तू राक्षसों बदकिरदारों को तबाह करने वाला हो जिस तरह तू सब जगह जलवागर होता है उसी तरह तू अपने दुशमनों को हलाक करने वाला बन।
(64) ऐ राजसभा के पालन करने वाले इन्सानो! मैं आप लोगों की पैरवी करता हुआ मैदाने जंग में घमण्डी को नीचा दिखाऊँ जैसे आप राक्षसों और बदकिरदारों को मारने वाले हैं वैसे ही मैं दुशमनों की फ़ौज की ताकत का पता लगाकर बदकिरदारों को दूर करूँ। (5/25)
(65) जैसे बहादुर आदमी मैदाने जंग में अपनी फ़ौज के साथ दुशमनों को पहले ही जाकर घेर लेता है। इसी तरह फ़न महारबा में माहिर ये सेनापति मैदाने जंग में मुकम्मल फ़तह हासिल करे ये सेनापति हर एक क़िस्म के ख़ौफ़ से अलग होकर बिल्कुल आनन्द से मैदाने जंग में क़वाइदान फ़ौज को अच्छी तरह से बोली देता हुआ फ़तह को हासिल करे। (5/27)
(66) ऐ दुशमनों को रूलाने वाले सिपेहसालार! तू मैदाने जंग के लिये अपने धनुष को फैलाने वाला हथियारों के ज़रिये अपने दुश्मनों की ताक़त को पीसकर अपनी रक्षा करने वाला, ज़रा बकतर लगाने वाला सब सुखो को देने वाला है ऐ बहादुर सेनापति! मंजघास से ढपे हुए पहाड़ों की दूसरी तरफ़ के मुल्क में दुशमनों को फ़तह कर। (3/61)
(67) मैं मादी आग और चन्द्र लोग के दुखों को बर्दाश्त करने के क़ाबिल दुशमनों को अच्छी तरह उमदा दलाईल से मुज़यन करूँ। (2/15)
(68) आक़िल इन्सान जीवन का हित करने वाली इस ज़मीन के सहारे से फ़ौज और असलहे सिलसिलावारलेकर जंगजुओं इन्सानों को अपना रोअब और अपनी हशमत दिखाते हुए दुशमनों के आज़ा काटने वाले मैदाने जंग में ग़नीम पर फ़तह पाकर राज को हासिल करते हैं। (1/28)
(69) मैं इस मैदाने जंग को जो निहायत वसीअ़ और दुशमनों को हलाक करने वाला है .... इस हंगामाखे़ज़ मैदाने जंग को अनाज वग़ैरह अशया से ताक़तवर की गयी फ़ौज के साथ जंग के तरीक़ों से अच्छी तरह पाक करता हूँ। (1/29)
(70) जिस तरह मैं इस जंग में जिसमें कि आलिम लोग अच्छे अच्छे पद्धार्थ या आला से आला विद्वानों की संगत को प्राप्त होते हैं। इस जंग में दुशमनों को मारता हूँ, वैसे तुम लोग भी मारो। (1/26)
(71) हम लोग तुम्हारे साथ आकर आला तरीक़े से ग़नीम को शिकस्त दें और भारी लड़ाइयों में सब तरह से फ़तह हासिल करें क्योंकि आप इल्म जंग के जानने वाले हैं। (1/16)
(72) जो बहादुर सवार होते वक़्त घोड़े को सीधा चलाता है और भूखा प्यासा मैदाने जंग में लड़ता और फ़तह पाता है वही राज करने के लायक़ होता है। (27/10)
(73) ऐ सभापति! तेरी मुसल्लह फ़ौज हमारे सिवाये दूसरों को दुख देने वाली हो। (17/11)
(74) ऐ राजा! आप के हथियार हम को छोड़कर बाक़ी दुशमनों को दुखी करने वाले हों। (17/15)
(75) वह जो तमाम इन्सानों में चुस्त व चालाक हो, ताक़तवर बेल की, मानिन्द ख़ौफ़ दिलाने वाला हो, दुशमनों को रात दिन मारने डराने, और रूलाने वाला जरदीद रोज़गार हो। ऐसा बहादुर हम लोगों में से दुशमनों पर फ़तह पाने वाली और दुशमनों को बाँधने वाली फ़ौजों का सिपेहसालार हो। (17/33)
(76) एक जंगजू बहादुरो! तुम हमेशा दुशमनो से लड़ते भिड़ते और उनको दुख देते रहे तुम्हारे हाथ में हमेंशा ही मज़बूत तीर रहें। (17/34)
(77) सिपेहसालार को चाहिये कि वह तोप बन्दूक तलवार और दीगर आतिशीं असलहे से मुसल्लह फ़ौज को हर वक़्त मुस्तैद रखे, वह तमाम असलहे का इस्तेमाल जानने वाला हो, ऐसा सिपेहसालार ही सामने आये हुए दुशमन पर फ़तह पाता है। इसकी कमान तेज़ होती है वह मैदाने जंग का आशिक़ होता है, वह ख़ूब हथियार चलाता और दुशमनों को मारता है ऐसा सिपेहसालार ही एक क़वाइदान फ़ौज के साथ दुशमनों पर फ़तह पाता है।
(78) तू रथ में सवार फ़ौज के साथ दुशमनों को चारों तरफ़ से काटता हुआ फ़तह हासिल कर। (17/36)
(79) ऐ सिपेहसालार! तू अपनी फ़ौज को बढ़ाने वाला है तू बड़ा बहादुर ताक़तवर और शास्त्रों को जानने वाला है तू सुख दुख को बर्दाश्त करने वाला और दुशमनों को बड़ी फुर्ती से मारने वाला है। मैदाने जंग में लड़ने वाले बहादुर आप की आँख के इशारे पर चलने वाले हैं। (17/37)
(80) वह सिपेहसालार जो कि अपनी अक़्ल और ताक़त के ज़ोर से दुशमनों के जत्थों को छिन्न्ा भिन्न्ा करता, उनकी जड़ काटता, उनकी ज़मीन को छीन लेता और अपने हाथ में हथियार लिये रहता है और मैदाने का कारेज़ार में अच्छी तरह दुशमनों को हलाक करता है और उन पर फ़तह पाता है ऐसे सिपेहसालार को तुम इस तरह से हौसला दो और जंग को शुरू करो। (17/38)
(81) इस मैदाने जंग में जहाँपर कि हर एक क़िस्म के जोड़ तोड़ किये जाते हों वह सिपेहसालार जो कि पूरी ताक़त के साथ दुशमनों का बीज नाश करता हुआ और उनको अच्छी तरह पाँव के नीचे रौंदता हुआ और उन पर किसी क़िस्म का रहम न करता हुआ और हर एक किस्म के ग़ैज़ व ग़जब से भरा हुआ दुशमनों की फ़ौज को मग़लूब करता है और उनको आइन्दा लड़ने के क़ाबिल नहीं रहने देता, ऐसा बहादुर शख़्स हमारी फ़ौजों की कमान करे और वही सिपेहसालार हो। (17/39)
(82) मैदाने जंग में दुशमन की फ़ौज को सब तरफ़ से मारती हुई और उन पर फ़तह पाती हुई क़वाइदान फ़ौज का सिपेहसालार उनके पीछे पीछे चले और फ़ौज के तमाम अधीकारों का रखने वाला दायीं तरफ़ और फ़ौज को जोश देने वाला बायीं तरफ़ चले और हवा की मानिन्द तेज़ रफ़तार और जंगजू बहादुर आगे आगे चलें। (17/40)
(83) सिपेहसालार को चाहिये कि सबसे पहले वह मैदाने जंग में जोश दिलाने वाला गीत बाजा के ज़रिये बुलन्द करवाये। (17/41)
(84) ऐ बादलों की तरह दुशमनों को छिन्न्ा भिन्न्ा करने वाले क़ाबिले तारीफ़ सिपेहसालार! आप हमारी फ़ौज के जंगजू बहादुरों के हथियारों को फ़तह नसीब कीजिये, हमारे फ़तह नसीब रथों से जय जय के नारे बुलन्द हों। (17/42)
(85) ऐ फ़तह पाने वाले आलिम लोगो! आप हमारे बूक़लमों रंगों वाले झंडों को अलेहदा अलेहदा रथों पर क़ायम कीजिये। फ़तह का ख़्वाहिशमंद सिपेहसालार और हमारी क़वाइदान फ़ौज दोनों के दोनों ही दुशमनों को मैदाने जंग में पसपा करें। (17/43)
(86) ऐ दुशमनों की जान लेने वाली रानी! तू अपनी औरतों की फ़ौज के दिलों में उत्साह पैदा करे तू उन औरतों की फ़ौज के मुख़्तलिफ़ दस्तों को ग्रहण कर तू अपनी फ़ौज पर अपने दिली मक़ासिद का इज़हार कर और दुशमनों को भस्म कर। (17/44)
(87) ऐ तीर अन्दाज़ी के इल्म में माहिर और वेदों के जानने वाले सिपेहसालार की स्त्री! तू मैदाने जंग की ख़्वाहिश करती हुई दूर देश मे जाकर दुशमनों से लड़ाई कर और उनको मारकर फ़तह हासिल कर तू उन दूर दराज़ के मुल्कों में रहने वाले दुशमनों में से एक को भी मारे बग़ैर मत छोड़। (17/45)
(88) दुशमनों की जो ज़बरदस्त फ़ौज जंग के इरादे से हमारे मुक़ाबले में आये हम इसको काटने वाले हथियारों और तोप वग़ैरह के धुऐं से इस तरह ढाँप दें कि ग़नीम की फ़ौज के सिपाही एक दूसरे को न पहचान सकें। (17/47)
(89) जिस मैदाने जंग में छोटे छोटे बच्चों की तरह चोटी वाले और बगै़र चोटी वाले तीरों की ख़ूब बारिश होती है। वहाँ पर सिपेहसालार ज़ख़्मियों को बख़ूबी ढाढस दे। (17/48)
(90) एक जंगजू बहादुर! मैं तेरे मैदाने जंग में चोट खाने वाले आज़ा को ज़राबकतर वग़ैरह से ढाँपता हूँ .... आलिम लोग तुझे दुशमनों के पायमाल करने के लिये जोश दिलायें। (17/49)
(91) दो सिपेहसालार बिजली और आग की मानिन्द मेरे मुख़ालिफ़ों को उठा उठाकर ज़मीन पर पटखें़। (17/64)
(92) ऐ बहादुरो! तुम बिजली से सुख हासिल करो और बर्तनों में पकाये हुए दाल कढ़ी वगै़रह को हाथ में लेकर जंग व जदल करो। (17/65)
(93) ऐ आलिमो की ताज़ीम के लायक़ और दुशमनों को मारने वाले सिपेहसालार! जिस तरह सूरज आकाश में रहने वाले गरजने वाले और चारों तरफ़ फैले हुए बादल को बगै़र हाथ पाँव के चकनाचूर कर देता है उसी तरह ऐ सिपेहसालार तू भी अपने दुशमनों को ताक़त से मार। (18/69)
(94) ऐ सिपेहसालार तू फ़तह नसीब हो, तेरी फ़ौज हमारे दुशमनों को मुँह के बल गिराये। (18/70)
(95) ऐ सूरज की मानिन्द सिपेहसालार! जिस तरह सूरज पानी से भरे हुए घंघोर घटा से अंधेरे में आकर बादलो को छिन्न्ा भिन्न्ा कर देता है, उसी तरह तू भी ऐसी फ़ौज हासिल कर जो चारों तरफ़ छाये हुए दुशमनों को तितर बितर करके तुझे फ़तह नसीब करे। (19/71)
(96) ऐ सिपेहसालार! जिस तरह सूरज पानी को ऊपर उठाता है उसी तरह तू अपनी फ़ौज को तैयार कर। (20/38)
(97) ऐ सिपेहसालार तू मोर के बालों की मानिन्द बाल रखने वाले उम्दा घोड़ों के साथ दुशमनों पर फ़तह पाने के लिये जा। जानवरों को पकड़ने वाले शिकारी की तरह दुशमन तुझे अपनी कमंद में न फाँस सके तू अपने तीर व कमान के साथ दुशमनों पर फ़तह पाकर वापस आना। (20/53)
(98) ऐ वीर पुरूष! जिस तरह हम हथियारों के ज़रिये दुशमनों के मनसूबों को ख़ाक में मिलाते मुल्कों को फ़तह करते, मैदान जंग में कामयाब होते, दुशमनों की तेज़ रफ़तार फ़ौज को तितर बितर करते हुए चारों तरफ़ फ़तह व नुसरत का डंका बजाते हैं उसी तरह तुम भी फ़तह हासिल करो। (29/39)
(99) ऐ वीर पुरूष! ये जो चल्ले पर चढ़ी हुई कमान के ऊपर लगी हुई ताँत है जो इस तरह से बोलती है जिस तरह कि पढ़ी लिखी बाशऊर स्त्री बोलती है जिसकी तारीफ़ की जाती है और जो इस तरह प्यारी आवाज़ निकालती है। ये जो मैदाने जंग में फ़तह दिलाने वाली है। तुम इसका बाँधना और चलाना सीखो। (29/40)
(100) ऐ वीर पुरूष! जिस तरह लिखी पढ़ी स्त्री प्राण की मानिन्द प्यारे पति को और माता अपने पुत्र को धारण करती है इसी तरह कमान की दो ताँतें दुशमनों को मुन्तशिर करने और दूर भगाने में कामयाब होती हैं। (29/41)
(101) ऐ वीर पुरूष! जो बहुत से ताँतों वाले कमान का मालिक होता है। वह कमान से सम्बन्ध रखने वाले तीरों को तरकश में डाल कर पीठ के पीछे रखता है। मैदाने जंग में ये कमान और ताँत और तीर वग़ैरह चीं चीं की आवाज़ निकालते हैं इसी से बहादुर आदमी चारों तरफ़ फैली हुई दुशमनों की फ़ौज पर फ़तह हासिल करता है। (29/43)
(102) ऐ वीर पुरूषो! वह जिनके बेल ख़ूब मोटे ताज़े और हाथों की मानिन्द हिफ़ाज़त करने वाले और रथों को तेज़ी से ले जाने वाले ख़ूबसूरत रफ़तार वाले और दुशमनों को धमकाते हुए तेज़ रफ़तार हिनहिनाने वाले घोड़े हैं। दुशमनों को हलाक करने वाले ऐसे बहादुरों को तुम लोग दिल व जान से प्यार करो। (29/44)
(103) ऐ वीर पुरूषो! इस जंगजू बहादुर के रथ में ग्रहण करने के क़ाबिल अग्नि, ईंधन, जल वग़ैरह पद्धार्थ और तोप बन्दूक़ और क़बीह वग़ैरह हथियार जिस क़द्र भी हैं उनको देख भालकर रथ में रख ऐसे सुख देने वाले रथ को हम लोग रोज़ प्राप्त हों। (29/45)
(104) ऐ वीर पुरूष! जिस फ़ौज में सिपेहसालार उम्दा हो रथ वग़ैरह तमाम सामान मज़बूत हों जहाँ कस्तूरी वाली गाय के मानिन्द हिरन हों। वहाँ भली प्रकार तीर चलते हैं जो क़वाइद दान फ़ौज बोली पर इधर उधर चलती और बैठती और दौड़ती है। इस फ़ौज के बहादुर पुरूष हमारे लिये ख़ास तौर पर सुख देने का मौजब हों। (29/48)
(105) ऐ घोड़ों को सधाने वाली रानी! जिस तरह वीर पुरूष घोड़ों के जिस्म पर चाबुक लगाकर चलाते हैं और बहादुरों को मैदाने जंग में लड़ाते हैं इसी तरह तू भी मैदाने जंग में जाकर सधे हुए घोड़ों से काम ले। (29/50)
(106) ऐ नक़्क़ारे की तरह गरजने वाले फ़ौज के सिपेहसालार! आप हमारे उयूब को दूर करते हुए हमें बल और पराक्रम दीजिये। फ़ौज को तरतीब दीजिये, दुष्टों को कुत्तों की मौत मारिये आप अपनी फ़ौज को बिजली के हथियारों से मुसल्लह कीजिये। (29/56)
(107) ऐ राजपुरूष! आप हिनहिनाते हुए घोड़ों वाली फ़ौज से हमारी हिफ़ाज़त कीजिये और हमारे रथों पर चढ़े हुए बहादुर पुरूष दुशमनों पर फ़तह हासिल करें। (29/57)
(108) ऐ राजा जिस तरह आप मैदाने जंग में दुशमनों की तमाम फ़ौजों को पसपा करते हैं, दुष्टों को मार कर सुख देने वाले और फ़तह नसीब हुए है, इसी तरह आप सदा ही उनको मारते रहें। (33/66)
(109) ऐ दुशमनों को मारने वाले राजा! आप दुशमनों को मारने वाले और उनको सखाने वाले हैं आप के क्रेाध से दुशमनों की फ़ौज मारी जाती है। (33/67)
(110) हे पाप के दूर करने वाले और रोशनी देने वाले परमातन! आपको नमश्कार हो ऐ परस्तिश के लायक़ परमातन आपको नमश्कार हो, आप की न टलने वाली देवस्था हमारे सिवाये दूसरे दुशमनों को दुख देने वाली हो, आप हम को पवित्र कीजिये।
मैं ज़रूरत नहीं समझता कि जंग व हदल और मार धाड़ के बारे में ज़्यादा मंतर पेश करूँ। मज़कूरा बाला सौ से ज़्यादा मंत्र सिर्फ़ नमूने के तौर पर मैंने यजुर्वेद में से पेश किये हैं और तर्जुमा वही दिया है जो कि स्वामी दयानन्द ने किया है। यजुर्वेद में से इससे कई गुना ज़्यादा मंत्र इसी क़िस्म के कुश्त व ख़ून और जंग व जदल के बारे में मौजूद हैं। ये तो एक वेद का हाल है इसी पर बाक़ी के तीन वेदों का अन्दाज़ा लगाया जा सकता है। कि इनमें एक दूसरे के साथ दंगा फ़साद करने की किस क़द्र तालीम मौजूद होगी। मज़कूरा बाला मंत्रों का सरसरी मुतालेअ़ा करने से ही इस बात का पता लग जाता है कि वेदों में सबसे ज़्यादा तारीफ़ उन्ही लोगों की गयी है जो जंग व जदल करने वाले और अपने दुशमनों के गले काटने वाले हों। जाबजा तीर, तफ़ंग, तोप बन्दूक़ और दीगर आतिशीं असलहे के बनाने और इस्तेमाल करने की ताकीद की गयी है और राजा को हुक्म दिया गया है कि वह ज़्यादा से ज़्यादा फ़ौज भर्ती करे। न सिर्फ़ मर्दों की ही फ़ौज भर्ती करे बल्कि औरतों की फ़ौज भी भर्ती करे ख़ुद भी मैदान में जाकर लड़े। इसकी बीवी और दूसरी औरतें भी जाकर लड़ें। औरतें मर्दों को लड़ाई के लिये तैयार करें और उनको जोश दिलायें। गोली बारूद तीरों की ज़्यादा से ज़्यादा मिक़दार बहम पहुँचायें। तोप बन्दूक़ देने वाली हों इस जंग व जदल में वह ख़ुदा से भी यही दुआ करती जायें कि उनकी ही फ़तह हो और दुशमनों की शिकस्त हो। इन तमाम बातों के मुतालऐ से वेद हमारे सामने मारधाड़ और कुश्त व ख़ून का एक निहायत ही ख़ौफ़नाक मंज़र पेश करता है। हमारे सामने एक ऐसे मैदान जंग का नक़्शा खोल देता है। जिसमें कुश्तों के पश्ते लग रहे हों और चारों तरफ़ मुर्दों की लाशें मरने वालों की चीख़ पुकार, इन्सानों की नीम कटी गर्दनें, उनके टूटे हुए आज़ा मर्दो के क़त्ल विधवाओं की आह वज़ारी यतीमों की फ़रियाद, गाँव की बरबादी, हैवानों की हलाकत, खेतों का जलना, दुशमन की पार्टी के पीने के पानियों में ज़ेहर का मिला देना, खाने की चीज़ों को भी ज़ेहर आलूदा कर देना वग़ैरह वगै़रह तमाम ऐसी ख़तरनाक और वहशीपन की बातें हैं जिनकी कि वेद तालीम देता है। अगर वेद ख़ुदा का कलाम होता तो वह बनी नूए इन्सान के लिये इसी तरह अब्रे रहमत होता जिस तरह कि ख़ुद ख़ुदावन्दे कुद्दूस हज़रत ईसा मसीह के अल्फ़ाज़ में अपने सूरज को नेकों और बदों पर यकसाँ उगाता और उनकी परवरिश करता है। अगर वेद ख़ुदा का कलाम होता तो वह गौतम बुद्ध, हज़रत ईसा मसीह और हज़रत मुहम्मद स0अ0व0 साहब से बढ़कर दुशमनों के साथ शान्ति, दरगुज़र, बुरदबारी, तहम्मुल, प्रेम और मुहब्बत की तालीम देता ताकि दुनिया पर कुश्त व ख़ून का दरवाज़ा बन्द हो जाता और बनी नूए इन्सान आपस में एक दूसरे के साथ मुहब्बत और सुलह से रहना पसन्द करते। ये मारधाड़, कुश्त व ख़ून, दंगा फ़साद, जंग व जदल तो दुनिया मे पहले से ही चला आता है। और अब भी चारों तरफ़ जारी है। अपने हम जिन्सों को हलाक करने के लिये रोज़ नये से नये तरीक़े सोचे जा रहे हैं और नये से नये हथियार तोप, बन्दूक़ गोला, बरछी ईजाद किये जा रहे हैं। ख़तरनाक जहाज़ बनाये जा रहे हैं। खुश्की तरी और हवा में जंग व जदल करने और अपने भाईयों के गले काटने के लिये रोज़ नयी से नयी ईजादें की जा रही हैं। हम अपने चारों तरफ़ आग के उन शोलों को आसमान की तरफ़ बुलन्द हुआ देखते हैं। इन्सानी दुनिया में चारों तरफ शोर महशर बरपा हे। वेद सिर्फ़ यही नहीं कि इस फ़अ़ल के बरखि़लाफ़ आवाज़ नहीं उठाता बल्कि वह इसकी ताईद करता है और तालीम देता है कि अपने हम जिन्सों को क़त्ल करने के लिये नये से नये हथियार, तोप बन्दूक़ जहाज़ गोला बारूद बनाओ, ज़्यादा से ज़्यादा फ़ौज भर्ती करो और अपने दुशमनों की गर्दनें काटो लुत्फ़ की बात ये है कि इधर इस पार्टी को उस पार्टी की गर्दन काटने की तालीम है और इस तालीम को ख़ुदा की तरफ़ मनसूब किया जाता है जो कि दोनों पार्टियों के लिये महकमा रसद रसानी या कसरेट का काम कर रहा है जब ऐसी तालीम को ख़ुदावन्द कुद्दूस की तरफ़ मनसूब किया जाता है तो अक़्लमंदों, मुंसिफ़ मिज़ाजों, सुलह और अमन के तालिबों बनी नूए इन्सान के बही ख़्वाहों के लिये वेद नफ़रत की चीज़ हो जाते हैं। मगर सोचने वाले जब इस बात पर विचार करते हैं कि वाक़ई अगर ख़ुदा इसी क़िस्म का इल्हाम देने वाला है और ऐसी तालीम देकर लोगों को आपस में लड़ाकर तमाशा देखता है तो ऐसे ख़ुदा को स्वामी दयानन्द के अल्फ़ाज़ में दूर से ही सलाम कर देना चाहिये। हमें ऐसे ख़ुदा की मतलक़ ज़रूरत नहीं है। इस तरह बअज़ अमन पसन्द, रहम दिल, मुन्सिफ़ मिज़ाज इन्सान इलहामी कहलाने वाली किताब के अलावा इलहाम देने वाले ख़ुदा को भी साथ ही धक्का दे देते और ख़ुदा की हस्ती से मुनकिर हो जाते हैं। मगर वह लोग जो ख़ुदा की हस्ती पर आज़ादाना विचार करते हैं वह इसकी हस्ती से मुनकिर होने की बजाये इस क़िस्म की किताब को ख़ुदा की किताब नहीं बल्कि वह महज़ इन्सानी दिमाग़ की इख़्तराअ़ बताकर इसको वही पोज़िशन देते हैं जिसकी कि वह दरहक़ीक़त मुस्तहिक़ है। मेरे ख़्याल में ये दूसरा तरीक़ा पहले से ज़्यादा अच्छा और महफूज़ है। जब मैं वेद मे इस क़िस्म की तालीम देखता हूँ जिसका कि ऊपर ज़िक्र किया गया है तो मेरे दिल में सवाल पैदा होता है कि अगर ये ख़तरनाक तालीम दरहक़ीक़त ख़ुदा की तरफ़ से ही दी गयी है तो मुझे इस किताब के साथ ऐसे ख़ुदा को भी परे फेंक देना चाहिये। ये बेहतर है कि मैं दुनिया में जंग व हदल कुश्त व ख़ून मारधाड़, क़त्ल व ग़ारत, लूट मार की तालीम देने वाले, तीर कमान, तोप, बन्दूक और दीगर आतिशीं असलहे के ज़रिये बनी नूअ इन्सान का ख़ून बहाने के लिये इन हथियारों के बनाने की हिदायत करने वाले मर्दों को क़त्ल करवाने, औरतों को विधवा बनाने, बच्चों को यतीम करवाने और मर्दों के साथ औरतों को भी लड़वाने, क़त्ल करवाने, गाँवों को जलाने, खेतों को जलाने, शेरों से फड़वाने, समन्दर में ग़र्क़ करने, दरिन्दों से चिरवाने और अनवाअ़ व अक़साम की अज़ीयतें देकर मार डालने की हिदायत करने वाले ख़ुदा और ख़ुदा की इस क़िस्म की किताब पर ईमान लाने के बगै़र ज़िन्दगी बसर करूँ और ऐसे ख़ुदा और उसकी इस क़िस्म की ख़तरनाक किताब पर लात मार कर नास्तिक, लमहद, देहरिया, और काफ़िर रहकर अमन की ज़िन्दगी बसर करता हुआ मर जाऊँ, बनिस्बत इसके कि मैं इस क़िस्म के ख़ुदा और उसकी इस क़िस्म की ख़ूनी किताब के बोझ को अपने ज़मीर पर रखकर स्वामी दयानन्द के अल्फ़ाज़ में हैवान या दरिन्दा बनूँ। ये पहला ख़्याल है जो कि मेरे दिल में इस वक़्त पैदा होता है जबकि मैं उन लोगों की आवाज़ को सुनता हूँ जो ये कहते हैं कि वेद ख़ुदा का कलाम है लेकिन इसके बाद दूसरा ख़्याल मेरे दिल में पैदा होता है कि मुझे इस क़िस्म की खूनी किताब को ख़ुदावन्दे कुद्दूस की तरफ़ मनसूब नहीं करना चाहिये, बल्कि इन दोनों के दर्मियान एक हद फ़ासिल क़ायम करके वेद पर तो बेशक लात मार देनी चाहिये। लेकिन मुझे इस ज़ाते पाक की हस्ती से मुनकिर नहीं होना चाहिये जो कि मेरी रूह का आख़री सहारा है और जो उन उयूब और इलज़ामात से पाक है जो कि उस पर इस किताब में लगाये जा रहे हैं। ये ख़्याल मेरे लिये ज़्यादा शान्ति दायक है। पस ख़ुदावन्दे कुद्दूस की ज़ाते पाक और वेद जैसी किताब के दर्मियान हद फ़ासिल क़ायम करना मेरा पहला फ़र्ज़ है इस हद फ़ासिल को क़ायम करके मेरे लिये ये लाज़मी हो जाता है कि मैं वेद को मानूँ या ख़ुदा को। मगर जैसा कि हज़रत ईसा मसीह ने कहा है कि तुम ख़ुदा और मादह परस्ती या रोशनी और तारीकी की एक साथ पूजा नहीं कर सकते हो। इसी तरह मैं ख़ुदावन्दे कुद्दूस और वेद को एक साथ नहीं मान सकता। क्योंकि ये दोनों मुतज़ाद हैं। ख़ुदावन्दे कुद्दूस अगर रोशनी है तो वेद तारीकी है। जैसा कि ऊपर दिखा चुका है। मुझे या तो रोशनी में चलना पड़ेगा या तारीकी में ठोकरें खानी पड़ेंगी। मैं रोशनी को तारीकी पर तरजीह देता हूँ और हर एक आक़िल आदमी ऐसा ही करता है पस मैं ख़ुदावन्दे कुद्दूस की ज़ाते पाक को वेद पर तरजीह देता हूँ। और इस ज़ाते पाक को अपने लिये काफ़ी समझकर वेद को परे फेंकता हूँ क्योंकि ऐसी किताब को ख़ुदावन्द की तरफ़ मनसूब करना या उसको इसका कलाम बताना निहायत ही ख़तरनाक इलहाद, ख़ौफ़नाक, देहरियत और शर्मनाक झूठ है। जिससे कि हर एक दयानतदार रूह को परहेज़ करना चाहिये।
छठी फ़सल
वेदों पर ईमान की बुनियाद की कमज़ोरी
ऊपर के तमाम मज़मून को पढ़कर कोई दयानतदार शख़्स ये कहने का हौसला नहीं कर सकता कि वेदों के प्रचार से दुनिया में अमन और चैन की बादशाहत क़ायम हो सकती है जबकि वेदों में कुश्त व ख़ून जंग व जदल और मार धाड़ की तालीम मौजूद हो। लेकिन हमारे मुल्क में ऐसे ख़ुश ऐतक़ाद लेाग भी हैं जो अभी तक वेदों को ख़ुदा का कलाम माने हुए उनको दुनिया की अशान्ति दूर करने के मुजर्रब नुस्ख़ा बता रहे हैं। अभी कल का ज़िक्र है कि मैं एक हिन्दी रिसाले का मुतालेअ़ा कर रहा था। इसमें एक ग्रेजूएट का मज़मून मेरी नज़र से गुज़रा जिसके चन्द फ़क़रात का तर्जुमा मुफ़स्सला ज़ैल है
महर्षि दयानन्द का वेद भाष्य हमारे लिये एक बेशबहा मौरूसी जायदाद है जो बनी नूए इन्सान के लिये इस क़द्र मुफ़ीद है कि इसकी क़ीमत लगाना इन्सानी ताक़त से बाहर है इस मज़मून के लिखने वाले को यक़ीन है कि इसकी तरह पढ़ने वालों में बड़ी तादाद ऐसे आला दिमाग़ों की भी होगी कि जिनके डगमगाते हुए ईमान को इस भाष्य ने सहारा दिया होगा। ये सच है कि संसार की मौजूदा शान्ति इस वक़्त दूर होगी जबकि वेद भगवान का प्रकाश दुनिया के हर एक कौने में पहुँच जाये तो ये भी सही है कि ऋषि दयानन्द का वेद भाष्य इस क़िस्म का पायोनियर होने के बाइस इस आलमगीर शान्ति का पेश ख़ेमा होगा। गो आर्य समाज ने इस भाष्य को हर दिल अजीज़ बनाने के बारे मेें अपना फ़र्ज़ अदा किया है मगर फिर भी वह वक़्त दूर नहीं कि वेद का हर एक जगह ने वेद भाषीय की एक कापी को लाज़मी दिलाबदी समझेगा। और मौजूदा ज़माने के वेद भाष्य कार को प्रेम, प्रतिष्ठा और शुक्रगुज़ारी के भाव के साथ याद रखेगा। (नवजीवन बनारस सितम्बर 1912 ई0)
मज़कूरा बाला मज़मून को पढ़कर जो कि एक क़िस्म की ख़ुश एतक़ादी का नतीजा है। कोई भी दयानतदार दरहक़ीक़त शनास शख़्स अफ़सोस किये बगै़र नहीं रह सकता मज़मून निगार इस बात को अपनी ज़िन्दगी का एक लाज़मी जुज़ू क़रार देता है वह इस ईमान को जो कि दरिया के किनारे की रेत पर क़ायम है, घास के तिनकों के बन्द बाँधकर सहारा देने का तालिब हो और वह इस बात पर रज़ामन्द नहीं है कि अपने ईमान की बुनियाद को रेत पर से हटाकर चट्टान पर क़ायम करे। अगर वह इस बात को तसलीम कर ले कि वेद ख़ुदा का कलाम नहीं है बल्कि वह हमारे प्राचीन आबाव अजदाद के ख़्यालात का मजमूअ़ा है जिनमे से बअज़ ख़्यालात बहुत अच्छे हैं और बअज़ बिल्कुल नाक़िस और वहशियाना हैं तो इसके ईमान की बुनियाद हमेशा के लिये एक चट्टान पर रखी जा सकती है मगर चूँकि इसका ईमान ये है कि वेद ख़ुदा का कलाम है। इसलिये जब इसके सामने कोई ऐसी बात वेद में निकलती है जो ख़ुदा की ज़ात पर बदनुमा धब्बा हो तो वह अंधेरे में इधर उधर हाथ पाँव मारता और सहारा ढूँढता है। ताकि इसका ईमान डगमगा न जाये ये एक सख़्त क़ाबिले रहम और तरसनाक हालत है। इससे भी बढ़कर हंसी की बात ये है कि स्वामी दयानन्द का भाष्य डगमगाते हुए ईमान को सहारा देता है। मैं कह सकता हूँ कि स्वामी दयानन्द के भाषीय का कमाहिक़ा मुतालेअ़ करने से पेशतर वेदों पर मेरा ईमान बड़ा मज़बूत था। लेकिन जिस वक्त मुझे स्वामी दयानन्द के भाषीय का तर्जुमा करना पड़ा और इसके लफ़ज़ लफ़ज़ को अपने क़लम में से गुज़ारना पड़ा तो वेदों के ख़ुदा का कलाम होने पर मेरा जो विश्वास था वह काफूर हो गया। ये शायद मुबालेग़ा नहीं होगा अगर मैं ये कहूँ कि स्वामी दयानन्द के वेद भाषीय को बग़ैर पढ़कर कोई भी दयानतदार शख़्स वेदों को ख़ुदा का कलाम नहीं मान सकेगा। तावक्तेकि वह रियाकारी से काम न ले नामानिगार मज़कूर का ये ख़्याल कि दुनिया की मौजूदा अशान्ति इसी वक्त दूर होगी जबकि वेद भगवान का प्रकाश दुनिया के कोने काने मे पहुँच जायेगा एक ऐसा ख़्याल है कि जिसको बेबुनियाद साबित करने के लिये कुछ ज़्यादा दूर जाने की ज़रूरत नहीं है। क्योंकि इस क़िस्म के ख़्याल की तरदीद मैं ऊपर बयान कर चुका हूँ वह लोग जो दिल के मज़बूत और सच्चाई के तालिब नहीं हैं जो इस उसूल को नहीं मानते कि सच्चाई को क़बूल करना चाहिये और झूठ को छोड़ देना चाहिये, जब उनको स्वामी दयानन्द के वेद भाष्य में ऐसी बातों का पता लगता है जिनसे कि उनके ईमान को लग़ज़िश होती हो तो वह अपने ईमान की बोसीदगी पर ग़ौर नहीं करते बल्कि वह स्वामी दयानन्द पर ये फ़तवे देते हुए सुने जाते हैं कि स्वामी दयानन्द मोटी अक़्ल का आदमी था और कि वह दरअसल वेदों को नहीं समझा था। ये ख़्याल मुहकिक़क़ लोगों का ख़्याल नहीं है बल्कि ऐसे लोगों का ख़्याल है जो वेद को मुल्की नसली और पैदाईशी जज़्बात की बिना पर इसी तरह गोद से लगाये रखना चाहते हैं जिस तरह कि मामता की मारी हुई माँ अपने मुर्दा बच्चे को अपनी छाती से अलग करने के लिये तैयार नहीं होती ख़्वाह इसको ये भी मालूम हो जाये कि बच्चा मर चुका है वह लोग जो ऐसी मामता का शिकार हो चुके हैं वह इस बात पर रज़ामंद हैं कि स्वामी दयानन्द को मोटी बुद्धि का आदमी बतायें लेकिन वह इस बात के लिए मुतलक़ तैयार नहीं होंगे कि वेदों के कलामे इलाही होने में शक करें मिस्टर ह्यूम स्पेन्सर के अल्फ़ाज़ में पैदाईशी या नस्ली तअस्सुब की ये एक उम्दा मिसाल है और इसमें वह जज़्बात भी शामिल हैं जो कि पुरोहितों की ग़्ाुलामी की वजह से पैदा हुए हैं। मिस्टर हरबर्ट के अल्फ़ाज़ में वेदों की कुंजी हमेशा पुरोहितों के हाथ में रही और उन्होंने इस बात को कभी गवारा नहीं किया कि इस क़िफ़ल को उनके सिवाये कोई दूसरा शख़्स हाथ लगा सके पुरोहित क्लास ने अवामुन्नास को अपनी ग़्ाुलामी की ज़ंजीरों में जकड़ने के लिये इस ढकोसले को हमेशा बतौर हथियार के इस्तेमाल किया कि वेद एक ऐसी किताब है जिसको कि ख़ुदा बोलता है और कि वेद को पढ़ने का इस्तहक़ाक़ सिवाये उनके किसी दूसरे को नहीं स्वामी दयानन्द ने बड़ी जुरअत और दिलेरी से इस क़िफ़ल पर हाथ डाला और इसको तोड़ कर रख दिया। स्वामी दयानन्द की ये दिलेरी बनी नूए इन्सान के शुक्रिया की मुस्तहिक़ है। मगर स्वामी दयानन्द के बाद नयी पुरोहित क्लास पैदा हुई। इसने वेदों के साथ स्वामी दयानन्द के भाष्य को भी अज़सरे नौ क़िफ़ल लगा दिया और ये ढकोंसला घड़ा कि स्वामी दयानन्द के भाष्य को समझने के लिये भी वेद, वेदांग, दर्शन शास्त्र, दुनिया की पुरानी ज़बानें, मग़रिबी फ़लसफ़े और साईन्स तमाम तवारीख़ वग़ैरह पढ़ने की ज़रूरत है। स्वामी दयानन्द के भाष्य को समझने के लिये उन्होंने इसी क़िस्म की दूसरी शराईत भी पेश कीं जिनका मतलब सिवाये उसके कुछ नहीं था कि न नौ मन तेल हो न राधा नाचे, इसी तरह वेद बदस्तूर साबिक़ अंधे ईमान की चीज़ बने रहे इसमें शक नहीं कि अगर स्वामी दयानन्द के वेद भाषीय का दुनिया की आम फ़ह ज़बानों में तर्जुमा हो जाये, तो ये इस अंधे ऐतक़ाद को उड़ाने के लिये कि वेद ख़ुदा का कलाम है बड़ा ज़बरदस्त ज़रिया साबित होगा। उस अन्धे ऐतक़ाद का ही नतीजा था कि वुस्ता ज़माने में हिन्दुस्तान में जिस क़द्र बुरे से बुरे फ़िरके़ पैदा हुए उन्होंने अपनी बदअख़्लाक़ी की बुनियाद वेद के ही किसी न किसी मंतर पर क़ायम की थी जिसका कि वह अपनी मर्ज़ी के मुताबिक़ तर्जुमा करते थे और जिन लेागों ने बुद्धों को महज़ इस बिना पर तबाह किया था कि वह वेदों से मुनकिर थे उन्होंने भी अपने इस क़िस्म के फ़तवों के लिये वेदों को ही बतौर हथियार के इस्तेमाल किया। स्वामी दयानन्द ने अगरचे पुरानी तफ़ासीर को वाम मार्गियों की तफ़ासीर कहकर रद किया है। लेकिन ख़ुद स्वामी दयानन्द ने वेदों को जिस शक्ल मे पेश किया है वह सख़्त ख़तरनाक है गो मौजूदा हालात हैं इसका ख़तरा चन्दाँ महसूस न किया जाता हो लेकिन अगर ये तालीम ऐसी क़ौम के हाथ में आ जाये जो कि बरसरे हुकूमत हो या इस तालीम को मानने वाली क़ौम बरसरे हुकूमत हो जाये तो इस वक़्त स्वामी दयानन्द का भाषीय दो धारी तल्वार का काम देगा क्यांेकि इसमें उन लोगों के क़त्ल के लिये काफ़ी से ज़्यादा फ़तवे मौजूद हैं जो कि वेदोंके मानने वालों के दुशमन हों या जिनको वेदों के मानने वाले अपना दुशमन समझते हों यहाँ तक कि ऐसे दुशमनाने धर्म को उलटा करके ज़िन्दा आग में जलाने शेरों से फड़वाने और दरिन्दों से चरवाने की सज़ा तजवीज़ की गयी है जैसा कि मैं पीछे दिखा चुका हूँ। इस ख़तरे की शिद्दत और भी दोबाला हो जाती है जबकि इस बात पर ग़ौर किया जाता है कि वेदों के मंत्र एक ऐसी ज़बान में हैं जिसको वेद को ख़ुदा का कलाम मानने वाले ‘‘यौगिक’’ कहते हैं। अगर मुझे यौगिक के लिये उर्दू का कोई आम फ़हम लफ़ज़ इस्तेमाल करना हो तो मैं इसके लिये ‘‘मोम की नाक’’ का लफ़ज़ इस्तेमाल करूँगा। मिस्टर ह्यूम के अल्फ़ाज़ में इबारत की इस पैचीदगी की चाबी हमेशा पुरोहित के हाथ में रहती है और पुरोहित का इख़्तियार है कि वह इस मोम की नाक को जिस तरफ़ चाहे फेर दे स्वामी दयानन्द ने ऋग्वेद आदि भाष्य भूमिका में इस बात पर जो बहस की है वह एक दिलचस्प मुतालेअ़ा है जब महीधर एक मंत्र पर से पर्दा उठाता है तो वह हमारे सामने एक निहायत ही फ़हश नज़ारा पेश करता है। जब इसी मंत्र पर से साइन आचारज पर्दा उठाता है तो वह कुछ और ही दिखाता है जब इसी मंत्र पर से स्वामी दयानन्द पर्दा उठाता है तो वह कुछ और ही नज़ारा पेश करता है हक़ व हक़ानियत का मितलाशी जब एक ही मंतर को मुख़्तलिफ़ पुरोहितों के हाथ में छलावे की तरह रंग बदलता हुआ देखता है तो वह इस नतीजे पर पहुँचने के बगै़र नहीं रहता कि ये महज़ भानुमति का सा तमाशा है जिसमें कि खेलने वाले अपने हाथ की चालाकी से एक ही गोली के मुख़्तलिफ़ रंग बदल कर दिखा रहे हों। पुरोहित लोग वेद मंतर की इस बूक़ल्मूनी को इबारत के ‘‘यौगिक’’ होने की तरफ़ मनसूब करते हैं लेकिन अगर बग़ौर देखा जाये तो कहना पड़ता है कि ये एक ऐसी बात है जो वेद मंतरों के सख़्त धोखे देह और सख़्त नाक़ाबिले ऐतबार होने पर दलील है और कि ऐसी किताब पर जो छलावे की तरह रंग बदल सकती हो अपने ईमान की बुनियाद रखना या उसको ख़ुदा का कलाम मानना सख़्त मुज़िर और ख़तरनाक खेल है। स्वामी दयानन्द ने इस हर वक़्त लर्ज़ा रहने वाली छत को अपने वेद भाष्य के ज़रिये थोनियों और बल्लियों से क़ायम करने की कोशिश की है। लेकिन बअज़ मुक़ामात पर स्वामी दयानन्द ने भी वेद मंतरों के इस नंग को ढाँपने में जो कि दरहक़ीक़त वहाँ पर मौजूद है अपने आप को बेदस्त व पा पाया है इसकी कुछ मिसालें ऊपर दी जा चुकी हैं। यहाँ पर चन्द मिसालें और पेश करता हूँ यजुर्वेद का चौबीसवाँ अध्याय स्वामी दयानन्द के अल्फ़ाज़ में यूँ है।
चौबीसवाँ अध्याय
मंत्र 1 -
तेज़ रफ़तार घोड़े, मारख़ोर बकरे, नील गाय का देवता सूरज है। काली गर्दन वाले पशु का देवता अग्नि है। दाग़दार पैशानी वाली भेड़ का देवता सरस्वती है, नीची गर्दन करके, तिर्छी टाँगें करके चलने वाले पुशओं का देवता अश्वनी है सोम और पूशन है काले रंग वाले तन्दख़ू बायें और दायें तरफ़ सफ़ेद धारियों वाले या बिल्कुल सियाह धारियों वाले पशुओं का देवता यम है पाँव जोड़ों के पास बहुत से बाल रखने वाले पशुओं का देवता तूशटा है जिसकी दुम पर सफ़ेद दाग़ हों इस पशु का देवता दायू है। बगै़र बहार आये के साँडे जुफ़ती करके हमल असक़ात करने वाली गाय का और छोटे क़द और टेढ़े तिरछे आज़ाओं वाले पशु का देवता विष्णु है। इन तमाम पशुओं को अच्छे कर्म करने वाले इन्सान की जाहो हशमत के लिये कमाहिक़ा काम में लाना चाहिये।
मंत्र 2 -
सुर्ख़ और सुर्ख़ी माइल सियाह रंग वाले और बेर की मानिन्द अरग़वानी रंग वाले पशुओं का देवता सोम है। नेवले की मानिन्द ख़ाकी रंग वाले या तोते की मानिन्द हरे रंग वाले पशुओं का देवता वरूण है। जौड़ों पर सफ़ेद दाग़ों वाले, सारे जिस्म पर सफ़ेद छींटों वाले और कहीं सफ़ेद दाग़ों वाले पशुओं का देवता ब्रहस्पति है जिनके तमाम जिस्म पर छींट की मानिन्द दाग़ हों जिनके रंग बिरंग के दाग़ हों जिनके मोटे मोटे दाग़ हों उन सब पशुओं का देवता मित्र और वरूण है।
मंत्र 3 -
ख़ूबसूरत बालों वाले, बिल्कुल पाक व साफ़ बालों वाले, चमकदार बालों वाले पशुओं का देवता सूरज और चाँद है। सफ़ेद रंग वाले, सफ़ेद आँखों वाले सुखर रंग वाले पशुओं का देवता पशुपति रूद्र है। जिनसे काम लिया जाता है ऐसे पशुओं का देवता वायु है। मोटे जिस्म वालों का देवता प्राण वायु है। आसमानी रंग वाले पशुओं का देवता मेघ है।
मंत्र 4 -
पूछने के लायक़ दायें बायें नीचे ऊपर से आहट पाकर चौंकन्ने हो जाने वाले पशुओं का देवता वायु है। फलों को खाने वाले, लाल परों वाले चंचल आँखों वाले पशुओं का देवता सरस्वती है जिसके कान पर इंजीर की तरह के दाग़ हों जिसके कान सूखे हुए हों जिसके कान सुनहरी रंग के हों, ऐसे तमाम पशुओं का देवता तुष्टा है। काली गर्दन वाले सफ़ेद जोड़ों वाले, मोटी टाँगों वाले, पशुओं का देवता पोल और बिजली है। मसताना चाल वाले, आहिस्ता आहिस्ता चलने वाले तेज़ चलने वाले पशुओं का देवता औशाम है।
मंत्र 5 -
तमाम सनअ़त व हरफ़त में काम आने वाली ख़ूबसूरत भेड़ों का देवता दशोये देव है। नीची आवाज़ वाली ऊँची आवाज़ वाली और मध्यम आवाज़ वाली तीनों क़िस्म की भेड़ों का देवता आदनी (पृथ्वी) है। नामालूम भेड़ और धारण करने के लायक़ एक ही रंग वाली छोटी छोटी बछड़ियाँ विद्वानों की स्त्रियों के लिये जाननी चाहियें।
मंत्र 6 -
अकड़ी हुई गर्दन वाले पशुओं का देवता रूद्र है। मुफ़ीद रंग वाले और आगे से टक्कर मारने वाले पशुओं का देवता आदित्य है। आबनी रंग वाले पशुओं का देवता मेघ है।
मंत्र 7 -
बुलन्द क़द ख़ूबसूरत और छोटे क़द वाले पशुओं का देवता बिजली और पून है। ऊँचे क़द वाले शेहज़ारे और बारीक पीठ वाले पशुओं का देवता सूरज और वायु है। तोते के रंग वाले तेज़ रफ़तार चितकबरे पशुओं का देवता मारूत है, काले रंग वाले पशुओं का देवता पूशन (मेघ) है।
मंत्र 8 -
मज़कूरा बाला दो रंगों वाले पशुओं का देवता वायु और बिजली है। छोटे क़द वाले बेलों का देवता सोम और अग्नि है। बांझ गाय का देवता मित्र और वरूण है इधर उधर से हाथ लगी हुई गाय का देवता मित्र है।
मंत्र 9 -
काले रंग वालों का देवता अग्नि है। नेवले के रंग वाले पशुओं का देवता सोम है। सफ़ेद रंग वाले पशुओं का देवता वायु है। जिन पर कोई ख़ास निशान न हो उनका देवता अदिति है। जिनका सिर्फ़ एक ही रंग हो उनका देवता पवन है। छोटे बछड़े और बछड़ियों का सूरज वग़ैरह की किरणों से काम लेने वाला जानना चाहिये।
मंत्र 10 -
काले रंग वाले पशु का देवता भूमि है। धुयें के रंग वालों का देवता अंतरिक्ष है। अच्छी आदतों वाले, पढ़ने वाले सफे़दी माइल पशुओं का देवता बिजली है। जो मंगल कारी पशु हैं वह दुख से पार उतारने वाले हैं।
मंत्र 11 -
मौसम बसन्त में धुऐं के रंग वाले मौसम गर्म में सफ़ेद रंग वाले मौसम बरसात में काले रंग वाले, मौसम सर्मा में लाल रंग वाले, बर्फ़ के मौसम में मोटे ताज़े और निकलती सर्दी में ज़र्दी माइल सुर्ख़ रंग वाले पदार्थों को हासिल करना चाहिये।
मंत्र 12 -
तीन भेड़ों वाले गायत्री के लिये पाँच भेड़ों वाले त्रिअष्टप अर्थात् जिस्म मन और आत्मा के लिये विनाश न होने वाली और संसार में सुख को देने वाली क्रिया करें जिनके तीन बछड़ें हों वह अनोष्टप अर्थात पीछे से जो क्रिया की जाती है उसको रोकने के लिये तीन करें और जो अपने पशुओं से ज़िन्दगी की चौथी मंज़िल को हासिल करने वाले हैं वह वही काम करें जिनसे कि आनन्द बढ़े।
मंत्र 13 -
जो इन्सान वार्ट छन्द के ला दो जानवरों को, ब्रहमी छन्द के लिये साँड को, ककूप छन्द के लिये दूध देने वाली गाय को स्वीकार करते हैं वह सुख को हासिल करते हैं।
मंत्र 14 -
काली गर्दन वाले पशुओं का देवता अग्नि है, सबका धारण पोषण करने वाले पशुओं का देवता सोम है। नीची गर्दन करके चलने वाले पशुओं का देवता सादता है। छोटी छोटी बछड़ियों का देवता सरस्वती है। काले रंग वालों का देवता पोषण है। जो पूछने के क़ाबिल हैं उनका देवता मारूत (मनुष) है जो बहुत से रंगों वाले हैं उनका देवता दुशवाये देवा तमाम विद्वान हैं जो ख़ूब चमकदार हैं उनका आकाश और पृथ्वी है।
मंत्र 15 -
मज़कूरा बाला अच्छी तरह चलने वाले पशुओं का देवता इन्द्र और रागनी है जो ज़मीन जोतनेवाले हैं उनका देवता वरूण है। जो इन्सान की तरह मुख़्तलिफ़ अक़साम व निशान वाले और ईज़ा रसाँ पशु हैं उनका देवता प्रजापति है।
मंत्र 16 -
इन सब जानवरों का देवता वायु और बिजली है। अच्छे सींग वालों का देवता महेन्द्र है। मुख़्तलिफ़ रंग वाले पशुओं का देवता विश्वकर्मा है। सब को अच्छे साफ़ सुथरे रास्तों में आना जाना चाहिये।
मंत्र 17 -
शान्ति स्वभाव पैदा करने वाले, माता पिता के लिये नेवले की मानिन्द ख़ाकी रंग वाले और सभा में बैठने वाले बुज़्ाुर्गों के लिये काले रंग वाले और धुऐं के रंग वाले और ताक़त देने वाले जिन्होंने अग्नि विद्या ग्रहण की है। उन बुज़्ाुर्गों के लिये काले रंग वाले और ख़ूब मोटे ताज़े तीन क़िस्म के निशान वाले पशु हैं।
मंत्र 18 -
ऐ इन्सानो! तुम को जो शोना सेर देवता वाले, खेती करने वाले, आने जाने वाले, हवा की मानिन्द गुण रखने वाले रंग वाले, सूरज की मानिन्द प्रकाशमान, सफ़ेद रंग वाले पशु बताये हैं, उनको अपने कारोबार में लाओ।
मंत्र 19 -
जानवरों को जानने वाला मौसम बसन्त के लिये टटीरी, मौसम गर्मा के लिये चिड़ियों, मौसम बरसात के लिये तीतरों, मौसम सर्मा के लिये बत्तख़ों, बर्फ़ के मौसम के लिये कीकर नाम के जानवरों और निकलती सर्दी के लिये बकर नाम के जानवरों को भली प्रकार हासिल करता है।
मंत्र 20 -
जिस तरह समन्दर जानवरों को जानने वाला अपने बच्चों को मारने वाले शिशुमार जानवरों को और मेख के लिये मेंढकों को पानी के लिय मछलियों को और कलीप के नाम के जानवरों को सूरज के लिये और मगरमच्छ और घड़ियाल को वरूण देवता के लिये हासिल करता है। इसी तरह तुम भी हासिल करो।
मंत्र 21 -
ऐ इन्सानो! जिस तरह जानवरों के गुणों को ज्ञान रखने वाला मनुष चाँद या सोम के लिये हन्स को हवा के लिये, बगुलों को इन्द्र और रागनी के लिये, सारसों को मित्र के लिये, जल काग को वरूण के लिये, चकवे चकवी को भली प्रकार हासिल करता है, इसी तरह तुम भी करो।
मंत्र 22 -
ऐ इन्सानो! जिस तरह जानवरों के गुणों को जानने वाला मनुष आग के लिये मुर्ग़ों को बगै़र फूल के दरख़्तों के लिये आतुओं को रागनी और साम के लिये नीलकंठ को सूरज और चाँद के लिये मोरों को, मित्र और दो दिन के लिये कबूतरों को अच्छी तरह हासिल करता है इसी तरह तुम भी करो।
मंत्र 23 -
ऐ इन्सानो! जिस तरह जानवरों का काम जानने वाला मनुष्य जाहो हशमत के लिये बटेरों को प्रकाश के लिय कालक नाम जानवर को, विद्वानों की स्त्रियों के लिये गौओं को मारने वाले जानवरों और विद्वानों की बहनों के लिये कोलेक नाम के जानवरों और आग की मानिन्द वर्तमान और घर वालों की परवरिश करने के लिये राशन पक्षनों को हासिल करता है, उसी तरह तुम भी करो।
मंत्र 24 -
ऐ इन्सानो! जिस तरह वक़्त का जानने वाला दिन के लिये नर्म और आवाज़ निकालने वाले कबूतरों, रात के लिए सीचापू नाम जानवरों, दिन रात के मिलने के दोनों वक़्तों के लिये जतू नाम के जानवरों, महीनों के लिये काले कौओं और साल के लिये बड़े ख़ूबसूरत परों वाले पक्षियों को अच्छी तरह हासिल करता है इसी तरह तुम भी करो।
मंत्र 25 -
ऐ इन्सानो! जिस तरह भूमि के जानवरों के गुण जानने वाला पुरूष ज़मीन के लिये चूहों, अंतरिक्ष के लिए एक क़तार के उड़ने वाले पक्षियों प्रकाश के नाम के जानवरों, पूरब वग़ैहर दिशाओं के लिये नेवलों और कोनों की दिशाओं के भूरे रंग के नेवलों को भली प्रकार हासिल करता है, उसी तरह तुम भी करो।
मंत्र 26 -
ऐ इन्सानो! जिस तरह पशुओं के गुण को जानने वाला अग्नि वगै़रह के लिये रश जानी के हिरणों, प्राण वगै़रह रोरों के लिये रूजा नामी पशुओं बारह महीनों के लिये नेंगों नाम के पशुओं, तमाम विद्वानों के लिये पृष्ट जाती के हिरनों और सधी को हासिल करने वाले विद्वानों के लिए कलंकों को अच्छी तरह हासिल करता है, उसी तरह तुम भ्ी करो।
मंत्र 27 -
ऐ राजा! जो इन्सान साहबे कुदरत के लिये और आप के लिय प्रशिष्ट नामी हिरन को सतर के लिये सफ़ेद रंग के हिरनों को वरूण के लिय भेंसों को ब्रहस्पति के लिय, नील गाय को और तूष्टा के लिये ऊँटों को भली प्रकार हासिल करता है, वह माला माल होता है।
मंत्र 28 -
जो इन्सान प्रजा पाने वाले राजा के लिये पुरूषों और हाथियों को बानी के लिय पलशी नाम के जीवन आँख के लिये मुशकान नामी जन्तुओं का उनके भँवरों को हासिल करता है वह मज़बूत हिसों वाला होता है।
मंत्र 29 -
प्रजा की पालना करने वाले और इसके सम्बन्धियों के लिये वायु और वायु से सम्बन्ध रखने वाले पद्धार्थों के लिये नील गाय, वरूण देवता के लिय जंगल का मेंढा, इन्साफ़ करने वाले के लिये काला हिरन, राजा के लिए शर के लिये बन्द और लाल हिरन श्रेष्ठ इन्सान के लिये नील गाय, बाज़ के लिय बत्तख़, नीले रंग के छोटे कीड़े के लिए छोटा, कीड़ा, बालकों को मारने, वाले शिशुमार समन्दर देवता के लिये और सरबफ़लक पहाड़ों के लिय हाथी बनाया गया है।
मंत्र 30 -
क़ाबिले नफ़रत इन्सान का देवता प्रजापति है। छोटे कीड़े शेर और बिल्ली धारण करने वाले के लिये हैं। आकाशा में उड़ने वाली सफ़ेद चील, धंकश जानवर का देवता अग्नि है। चड़ूटा क़िस्म की चिड़ियों, लाल साँप जो कि तालाब में रहता है, उनका देवता तूष्टा है। और सारस बानी के लिए जानना चाहिये।
मंत्र 31 -
कलिंग, जंगली बकरा, नेवला, इन सबका देवता सोम है, ख़ास ताक़त रखने वाले पशुओं का देवता पोषण है। ख़ास और आम गीदड़ जाहो हशमत वाले पुरूष के लिए गोरा हिरन, ख़ास क़िस्म का हिरन या किसी दूसरी क़िस्म का हिरन और ककट नाम का हिरन और चकूमी अगर उनवासी के लिये या सने पीछे सनाने वाले के लिय कमत किये जायें तो बहुत काम करने क़ाबिल हों।
मंत्र 32 -
बगुली का देवता सूरज है, पपीहे, सरज, शयांडक, जानवरों का देवता मित्र है, तोती और तोते का देवता सरस्वती है। ख़रगोशनी का देवता भूमि है। शरे का भेड़िया या साँप सबके सब ग़्ाुस्से वाले हैं। शुद्धि करने वाला शिवा जानवर और इन्सान की तरह बोलने वाले जानवर का देवता समन्दर है।
मंत्र 33 -
ख़ूबसूरत परों वाले जानवर का देवता मेघ है। अज़्दहा, कठफोड़े का देवता वायु है। पंज राज नामी जानवर बड़े बड़े पदार्थों और कलाम की हिफ़ाज़त करने वाले के लिये हैं अलज नाम के जानवर का देवता अंतरिक्ष है। बत्तख़ जल काग मछली वग़ैरह का देवता समन्दर है। कछवे का देवता प्रकाश और भूमि है।
मंत्र 34 -
पुर्ष मुर्ग का देवता चाँद है। गोह और सारस दरख़्तों से तअल्लुक़ रख्ने वाला कठफोड़ा मुर्गा़ वग़ैरह का देवता सावता है। हंस का देवता वायु है। मगरमच्छ के बच्चे और मगरमच्छ और दीगर आबी जानवरों का देवता समन्दर है। ख़रगोशनी लजा के लिये जाननी चाहिये।
मंत्र 35 -
हिरनी दिन के लिए, मेंढक, चूहा, तीतरी, साँपों के लिये जंगल के लोपाश नामी जानवरों का देवता अश्व है। काले रंग का हिरन रात के लिये है। रीछ और जतू नाम का पुश्वा और शोशीलका पक्षी वे सब इन्सानों के लिये अंगों के सुकेड़ने वाला जानवर विष्णु देवता के लिये।
मंत्र 36 -
कोकिला पक्षी पन्द्रहवाड़ों के लिय रश जाती का हिरन और ख़ूबसूरत परों वाला मोर को देवता गंधरू है। आबी जानवरों का देवता जल है। कछवे मुर्ग कंुडर नाची और गोतिनका जंगली पशुओं का देवता सूरज है। काले रंग के पशुओं को मरीतों के लिये जानना चाहिये।
मंत्र 37 -
बारिश को बुलाने के वाली मेंढकी मौसम बसन्त के लिये चोमिया है। कश नाम का पशु और मांथाल नामी पशु पालना करने वालों के लिये हैं, बिल के लिय बड़ा साँप है, टटीरी, कबूतर, उल्लू, ख़रगोश, जंगली मेंढा, दरों देवता के लिय जानना चाहिये।
मंत्र 38 -
ख़ूबसूरत परों वाले जानवरों को मौसमों के बतलाने के लिये ऊँट और दीगर ज़ोरआवर पशु, लटकन वाला बकरा सबके सब बुद्धि के लिये जानने चाहियें नील गाय, जंगल के ख़ास हिरन, रूद्रदेवता वाले हैं। कोई नाम का जानवर, मुर्ग़ा कव्वा, घोड़ों के लिये और कोकिला भली प्रकार काम लेने के लिय जानना चाहिये।
मंत्र 39 -
आपिये और तेज़ सींगों वाला गेंडा, तमाम विद्वानों के लिये काले रंग का कुत्ता, बड़े कानों वाला गधा, और सियाह गोश सब के सब दुष्टों के लिये सूर राजा के लिये शेर मारूत देवता के लिये गिरगिट पपीहा, और दीगर जानवर चाँद मारी करने वालों के लिये और पृष्ट की क़िस्म के हिरन विद्वानों के लिये जानना चाहियें।’’
यजुर्वेद का ये तमाम अध्याय एक अजीब क़िस्म की चैस्तान है। कोई नहीं कह सकता कि पुरोहित के हाथ में पड़कर ये दोधारी तलवार किस तरफ़ चल सकती है। ख़ुद स्वामी दयानन्द भी इस पर कोई रोशनी नहीं डालना चाहता, या नहीं डाल सका। वह सिर्फ़ इतना ही कह कर चुप हो जाता है कि इस पृकरन में देवता पद से इस पद के गुण पोग से पशु जानने चाहियें। स्वामी दयानन्द का ये क़ौल भी बज़ाते ख़ुद एक चैस्तान है। अगर पुराने मुफ़स्सिरीन में से किसी मुफ़स्सिर की बात पर ऐतबार किया जाये तो वह हमें इस का फ़ौरी हल ये बतायेगा कि इस अध्याय में मुख़्तलिफ़ देवताओं के नाम पर हैवानों के ज़िबह करने की तालीम है। स्वामी दयानन्द ने भी अपनी इबतदाई तसानीफ़ में इस हल की ताईद की है। अगर इस हल को सही न माना जाये तो इस अध्याय का एक एक मंतर मतलाशी हक़ के सामने दर्जनों ऐतराज़ पैदा करने का मोजब होता है। जिसका तसल्ली बख़्श जवाब न तो स्वामी दयानन्द दे सकता है न कोई दूसर मुफ़स्सिर मसलन् अध्याय के पहले ही मंतर में मुख़्तलिफ़ देवताओं की तरफ़ मुख़्तलिफ़ रंग के पशुओं को मनसूब किया गया है। और ऐसी गाय को जो हामला होने की सूरत में साँड से हफ़ती करके हमल असक़ात करवा देती हो, इसको विष्णु देवता के सुपुर्द किया गया है।
अब सवाल पैदा होता है कि ऐसी गाय को विष्णु के सुपुर्द क्यों किया गया। क्या विष्णु देवता इसको धर्म का उपदेश करेगा कि तू आइन्दा ऐसा फ़अ़ल मत करना या विष्णु देवता इसको कोई सज़ा देगा। या इससे क्या सुलूक करेगा ग़र्ज़ ये कि इस क़िस्म के बीसियों सवाल पैदा होत हैं जिन को कोई तसल्ली बख़्श जवाब स्वामी दयानन्द के भाष्य में नहीं मिल सकता। लेकिन जिस वक़्त स्वामी दयानन्द की इब्तदाई तसानीफ़ पर नज़र डाली जाती है तो हमें इस का हल दो टूक मिल जाता है चुनांचे स्वामी दयानन्द ने सत्यार्थ प्रकाश मतबूआ बनारस 1875 ई0 के दसवें समुल्लास में ऐसी गाय को यज्ञ में कुर्बानी कर देने की तालीम दी है और वह इसकी ताईद में ब्रहमन ग्रन्थों का हवाला भी देते हैं। ये तो स्वामी दयानन्द का ख़्याल है लेकिन जब हम दूसरी स्मृतियों और शास्त्रों को तलाश करते हैं तो वहाँ से भी हमें इस बात के हक़ में शहादत मिलती है। मसलन् मनु स्मृति के पाँचवें अध्याय में साफ़ अल्फ़ाज़ में लिखा है कि देवताओं के नाम से यज्ञ में फ़लां फलां हैवान को ज़िबह करना चाहिये। इन परिन्दों और चरिन्दों की वहाँ पर यजुर्वेद के मज़कूरा बाला अध्याय की तरह एक बहुत लम्बी चौड़ी फ़हरिस्त दी गयी है और लुत्फ़ की बात ये है कि इस फ़हरिस्त में कसरत से वही जानवर बतलाये गये हैं जो कि मज़कूरा बाला अध्याय में बताये गये हैं। उनमें गाय बेल वगै़रह का मारना भी शामिल है और इसको सवाब का बाइस बताया गया है। अला हाज़ल क़यास व्यास संहिता, विशिष्ट संहिता, विष्णु संहिता में भी यज्ञ के लिये परिन्दों और चरिन्दों का मारना लिखा है। ख़ुद ब्रहदार नेक उपनिषद अध्याय 8 ब्रहमन 4 मंतर 18 में लिखा है कि जो पुरूष ये चाहे कि मेरा पुत्र पंडित प्रख्यात, प्रगल्भ, सुन्दर अर्थ वाली का बोलने वाला चारों वेदों का वक्ता सम्पूर्ण आयु का भोगने वाला हो, वह पुरूष जवान बेल, अथवा इससे कुछ ज़्यादा उम्र वाले बेल का माँस चावलों के साथ पकाकर इसमे घी डालकर अपनी औरत के साथ खाये। स्वामी दयानन्द ने भी अपनी तसनीफ़ संस्कार विधि में इसको बतौर सनद के पेश किया है। अलावा अज़ीं यजुर्वेद के इक्कीसवें अध्याय के उन्तीसवें मंतर का भाष्य करते हुए, स्वामी दयानन्द ने यज्ञ के लिए हंसा को ज़रूरी समझा है और काले रंग के मेंढे वग़ैरह जानवरो को यज्ञ की सामग्री के लिये लाज़मी जुज़्ा क़रार दिया है। और इस बात के बताने की तो चन्दाँ ज़रूरत ही नहीं है कि स्वामी दयानन्द ने सत्यार्थ प्रकाश मतबूआ बनारस 1875 ई0 में नरमीदा और गौमीदा यज्ञ में बेल वग़ैरह नर जानवरों को मारने की तालीम अज़रूए ब्रहमन ग्रन्थ वग़ैरह दी है। इन बातो के पेश करने से मेरा मतलब इस बात पर बहस करना नहीं है कि जानवरों का देवताओं के नाम पर मारना पाप है या पुण्य। बल्कि इस बात पर बहस करना है कि यजुर्वेद के चौबीसवें अध्याय में जो मुख़्तलिफ़ देवताओं के नाम के साथ मुख़्तलिफ़ जानवर लगाये गये हैं, उनका हल सिवाये इसके और कुछ नहंी हो सकता कि इन देवताओं के नाम पर इन जानवरों को फ़लां फ़लां क़िस्म के मर्द व औरत ज़िबह करें। स्वामी दयानन्द अगरचे अपनी पहली किताब सत्यार्थ प्रकाश मतबूआ बनारस 1875 ई0 में इस बात की ताईद कर चुका है और साफ़ अल्फ़ाज़ में लिख चुका है कि यज्ञ में बेल गाय और दीगर जानवरों का ज़िबह करना कोई पाप की बात नहीं है। वह अपने इस ख़्याल की ताईद में पुराने शास्त्रों के हवाले जात और अपनी दलाईल भी पेश करता है। और इसने कहीं भी इस बात का ऐलान नहीं किया कि यज्ञ में गाय बेल वग़ैरह ज़िबह करने की जो इबारत सत्यार्थ प्रकाश 1875 ई0 में दर्ज है वह इसकी नहीं है बल्कि वह इसको दुरूस्त तसलीम करते हुए सिर्फ़ इस बात का ऐलान करता है कि इस किताब मे जो मुर्दों का श्राद्ध लिखा है उसकी बजाये जिन्दों का श्राद्ध समझना चाहिये। और बस चुनांचे इस तमाम मामले में मुफ़स्सल बहस कर चुका हूँ जिस शख़्स को देखना मनज़्ाूर हो वह इस सत्यार्थ प्रकाश के जवाब को जो मैंने उर्दू में शाये कर दिया है पढ़कर अपनी तसल्ली कर सकता है। मगर बावजूद ये कि स्वामी दयानन्द के ऐसे ख़्यालात थे लेकिन जब इसको यजुर्वेद के चौबीसवें अध्याय से वास्ता पड़ा तो इसको एक ऐसा वसीअ छेद नज़र आया जिसको देखने के साथ ही वह बक़ौल
तन हमा दाग़ दाग़ शद पनबा कजा कजा नहम
इस मोर्चे को बन्द करने या इसके बन्द करने की कोई तजवीज़ समझाने के बगै़र ही आगे निकल गया अगर वह ऐसा न करता तो इसको सख़्त मुश्किल का सामना करना पड़ता क्यों बोद्ध और जैनी पहले से ही शोर मचा रहे थे कि वेदों में जानवरों की कुर्बानी की तालीम है। इधर बुद्धों और जैनियो के ज़बरदस्त प्रचार की बदौलत आज कल के हिन्दू भी इस क़िस्म की कुर्बानियों की तालीम को वेदों में से निकलते देखकर ख़ुशी हासिल नहीं कर सकते थे। क्यों कि अगर बग़ौर देखा जाये तो मौजूदा हिन्दुओं में जो जानवरों की कुर्बानी के खि़लाफ़ जज़्बा देखा जाता है वह बुद्धों और जैनियों के ही प्रचार का नतीजा है। स्वामी दयानन्द इस मुश्किल को बख़ूबी जान गया था। इसलिये इसका हल उसको इसके सिवाये कुछ नहीं सूझा कि वह इस अध्याय पर नज़र बन्द करके आगे निकल गया। वरना अम्र वाक़िअ़ा तो ये है कि यजुर्वेद का चौबीसवाँ अध्याय, गाय, बेल, भेंस, भेड़, बकरी, हिरन, ग़र्ज़ेकि मुख़्तलिफ़ क़िस्म के जानवरों की कुर्बानी का एक ख़ूनी मुज़बह या कुर्बान गाह है। जिसकी ताईद बहुत से पुराने और ज़माना हाल के मुफ़स्सिरीन भी करते हें। इस कुर्बान गाह या मुज़बह पर पर्दा डालने के लिये स्वामी दयानन्द इस अध्याय को जूँ का तूँ बतौर एक चैसतान के छोड़ जाता है और असलियत को छुपाने की इसने जो नाकामयाब कोशिश की है वह ऐसी मुज़हिका खे़ज़ है कि इसके एक एक फ़िक़रे पर बीसियों ऐतराज़ो की बोछार होती है। मसलन् नामालूम भेड़ और धारन करने के लायक़ एक ही रंग वाली छोटी छोटी बछड़ियाँ विद्वानों की स्त्रियों के लिये जाननी चाहियें। (मंतर 5)
सवाल पैदा होता है कि नामालूम क्या बला है और विद्वानों की स्त्री इसको लेकर क्या करे और बछड़ियों को विद्वानों की स्त्रियों से क्या तअल्लुक़ वह बछड़ियों को क्या करें। इनकी पूजा करे या उनसे जंग करें या उनका दूध दोहें जबकि वह दूध देने के क़ाबिल नहीं हैं या उनके पाँव धोकर पियें या क्या करें। इसी तरह मंतर 18 में माता पिता के लिये ख़ाकी रंग वाले अमीरों वज़ीरों के लिये काले रंग वाले और गनी विद्या को जानने वालों के लिये मौअे ताजे़ पशु मुक़र्रर किये गये हैं। उसमें क्या राज़ है। इसी तरह मंतर 23 में मुर्ग़ाें, उल्लुओं, मोरों, कबूतरों का हाल लिखा है। और मंतर 24 में विद्वानों की स्त्रियों के लिए तो गौओं को मारने वाले जानवर और विद्वानों की बहनों के लिये कोलीक नाम के जानवर मुक़र्रर किये हैं। ये बहुत अजीम मुअम्मा है। इसी तरह मंतर 30 में मुख़्तलिफ़ इन्सानों के लिए मुख़्तलिफ़ क़िस्म के जानवर मसलन् नील गाय, जंगली मेंढा, काला हिरन बत्तख़ वगै़रह मुक़र्रर किये गये हैं। अला हाज़ल क़यास मंतर चालीस में विद्वानों के लिए गेंडा और दुष्टों के लिये काले रंग का कुत्ता गधा और सियाह गोश। राजा के लिये सुअर और चाँदमारी करने वालों के लिये गिरगिट पपीहा मुक़र्रर किये गये हैं। इसी तरह उन्तीसवें अध्याय के मंतर 59 में लिखा है
ऐ इन्सानो! तुम क़ाबिले तारीफ़ फ़ौज वाले, विज्ञान युक्त, सिपेहसालार के लिये लाल वसूल वाला बेल, सूरज के गुण वाले नीचे हसूल में सफ़ेद रंग वाले ताक़त देने वाले सुनहरी नाफ़ वाले विद्वानों के सम्बन्धी जंगली बकरे और पीले रंग के पशु वायु देवता वाले ख़ाकी रंग वाले अग्नि देवता वाला काला बकरा। बानी के गुनों वाली भेड़ और जल के गुणों वाला तेज़ रफ़तार पशु काम में लाओ।
अब सवाल पैदा होता है कि सिपेहसालार के साथ बेल, ताक़त देने वाले जंगली बकरों, काले रंग के बकरों, भेड़ों का क्या तअल्लुक़ है। ये जानवर सिपेहसालार के लिये किस तरह काम में लाये जायें। स्वामी दयानन्द इसका जवाब नहीं देता। मगर इसका जवाब विशिष्ट स्मृति मुतर्जमा पंडित भीमसेन सफ़हा 120 पर दिया गया है।
अगर ब्रहमन, खशतरी या राजा मेहमान आ जाये तो घर वाला इसके लिये बेल और बड़े बकरे का माँस पकावे।
ग़ालिबन् विशिष्ट स्मृति में वेद के इसी अध्याय या मज़कूरा बाला मंतर की तरफ़ ही इशारा है। स्मृति और श्रुति को जब पहलू बा पहलू रखकर देखा जाता है। तो मतलब बिल्कुल साफ़ हो जाता है। इसी तरह आपस्थबा सोत्र के प्रथम प्रश्न की पाँचवीं टपल की अठारहवीं कांडका में गाय के मारने की इजाज़त दी गयी है। महाभारत के दिन पर्व के अध्याय 207 में लिखा है कि रंती देव राजा, रोज़ दो हज़ार गाय ज़िबह किया करता था और ऋषि मुनी इसके हाँ भोजन पाया करते थे और ये राजा मरने के बाद स्वर्ग में गया।
विष्णु पर इन मतबूआ बंग बासी 1956 सफ़हा 313, 314 पर लिखा है कि गौ माँस से पुत्र लोग ग्यारह माह तक तृप्त रहते थे चुनांचे शुप्राण अध्याय 63 में कोशिक के पुत्र गर्ग ऋषि के शागिर्दों को श्राद्ध में गौ माँस खाने का ज़िक्र आता है। इसी तरह विष्णु संहिता अध्याय 80 में मुख़्तलिफ़ देवताअें या पुत्रों के नाम पर मुख़्तलिफ़ जानवरों की कुर्बानी और उनके माँस से उन उन देवताओं या पुत्रों का मुख़्तलिफ़ अर्से तक तृप्त रहना बताया गया है। इन बातों ंप मेरी मुराद इस बात पर बहस करना नहीं है कि पुत्रों या श्राध के बारे में स्वामी दयानन्द की जो पोज़िशन है वह ग़लत है। या सही बल्कि इस बात पर बहस करना है कि जिस सूरत में कि स्वामी दयानन्द ख़ुद अपनी इबतदाई तसानीफ़ में ये मान चुका हो कि यज्ञ में जानवरों की कुर्बानी करनी चाहिये और जिस सूरत में कि दीगर शास्त्र भी इसकी शहादत देते हों। इस सूरत में स्वामी दयानन्द ने इस सीधे रास्ते को छोड़कर यजुर्वेद की चौबीसवें अध्याय की असलियत पर पर्दा डालने की जो कोशिश की है। इसमें ख़ुद स्वामी दयानन्द क़तई बेदस्त व पा रह गया है और ये तमाम का तमाम अध्याय बज़ाते ख़ुद एक चैस्तान बन गया है जिसके सर पैर का कुछ पता नहीं लग सकता।
अब सवाल ये पैदा होता है कि अगर वेद ख़ुदा का कलाम हैं और वह इन्सानों की रहबरी के लिये नाज़िल हुए हैं तो क्या वजह है कि इन्सान शुरू दुनिया से लेकर आज तक उनकी असली मअ़नों को समझने से क़ासिर रहे हैं। यहाँ तक कि ख़ुद स्वामी दयानन्द के लिये भी जो कि बक़ौल प्रोफ़ेसर मैक्स मूलर वेदों के पीछे पागल था। वेदों के अक्सर मक़ामात सेहराये आज़म साबित हुए हैं और वह उन पर कुछ रोशनी नहीं डाल सका जैसा कि मज़कूरा बाला अध्याय में दिखाया गया है। ऐसे हालात में कोई दयनतदार शख़्स इस बात के लिये तैयार नहीं हो सकता कि वह वेदों को ख़ुदा का कलाम माने जो कि इन्सानों की रहबरी के लिये नाज़िल हुआ। हालांकि सही पोज़िशन ये है कि वेद पुराने ज़माने के पुरोहितों के गीत हैं। उनमें से बअज़ अच्छे और बहुत अच्छे हैं लेकिन बअज़ महज़ बच्चों की बातें और बअज़ सख़्त वहशियाना ख़्यालात का मदफ़न हैं जो कि उन पुरोहितों के सीने मे मोजज़न थे ऐसी सूरत में वेदों को ख़ुदा का कलाम मानना और उन पर अपने दीन व ईमान की बुनियाद क़ायम करना इन्सान की रूह पर सख़्त ज़्ाुल्म करना है क्योंकि इस सूरत में इन्सान की तमाम रूहानी आज़ादी पुरोहितों के हाथ में बिक जाती है और वह इससे आगे परवाज़ नहीं कर सकती। जहाँ तक कि इन पुरोहितों ने परवाज़ किया है। अगर उसको उनमें कोई ग़लत या वहशियाना बात नज़र आती है तो ऐसी ग़्ाुलाम रूह ये कहने की ताक़त नहीं रखती कि वह बात दरहक़ीक़त ग़लत और वहशियाना है। बल्कि वह यह कहकर अपनी तसल्ली कर लेती है कि ये मेरी अक़्ल का क़सूर है कि मैं इस मुअम्मे को समझ नहीं सकता ये किस क़द्र ख़तरनाक रूहानी ग़्ाुलामी है इसके बरअक्स अगर ये तस्लीम कर लिया जाये कि वेद ख़ुदा का कलाम नहीं है बल्कि वह पुराने ज़माने के इन्सानों के ख़्यालात का मजमूआ है तो इस सूरत में हमें ये कामिल आज़ादी हासिल रहती है कि हम उनमें से मुफ़ीद ख़्यालात को लेलें और मुज़िर ख़्यालात को परे फेंक दें। इस तरह हमारी ज़ेहनी और रूहानी तरक़्क़ी का रास्ता बराबर खुला रहता है और हम पुरोहितों की ग़्ाुलामी का शिकारी बनने की बजाये अपनी आज़ादी को बराबर क़ायम रख सकते हैं जो लोग ये प्रचार कर रहे हैं कि वेद ख़ुदा का कलाम है वह सिर्फ़ यही नहीं कि रूहानी आज़ादी के गले पर छुरी रख रहे हैं बल्कि वह आने वाली नस्लों के लिये रियाकारी, अलहाद और देहरियत के महल का बुनियादी पत्थर क़ायम कर रहे हैं।
क्योंकि ये लाज़मी अम्र है कि जिस वक़्त भी किसी दयानतदार इन्सान को इस ख़ौफ़नाक तालीम का पता लगेगा जिसकी चन्द मिसालें मैं ऊपर दर्ज कर चुका हूँ वह उसी वक़्त या तो इस ख़ुदा की तरफ़ से मुँह फेर लेगा जो कि इस क़िस्म का इलहाम दे सकता है। या वह वेदों को हाथ से फेंक देगा। इसकी ज़िन्दा मिसाल मैं मौजूद हूँ। जो इस बात का पता लगने के साथ ही कि वेदों में इस क़िस्म की ख़तरनाक तालीम भी मौजूद है। उनको हाथ से फेंक रहा हूँ और उनको ख़ुदा का कलाम तसलीम करने के लिये तैयार नहीं हूँ। हालांकि इससे पेशतर मैं वेदों को दिल व जान से ख़ुदा का कलाम मानता और ऐसा ही प्रचार करता था। लेकिन अब मेरे लिये नामुम्किन है कि मैं ऐसी तालीम को वेदों में देखकर जो कि स्वामी दयानन्द के अपने ही अल्फ़ाज़ में महज़ जिहालत की तालीम है। उनको ख़ुदा का कलाम मानूं तावक़्ते कि मैं रियाकारी से काम न लूँ लेकिन मैं रियाकार बनने के लिये तैयार नहीं हूँ। लिहाज़ा मेरे लिये लाज़मी हो जाता है कि मैं वेदों के बोझे को सर से उतार कर फेंक दूँ। इस बात पर रोशनी डालने के लिये कि इस मसअले ने लोगों को किस क़द्र रियाकार बना रखा है। यहाँ पर आर्य समाज के एक अख़्बार में से चन्द सतरें नक़ल करता हूँ। आर्य समाज का एक लीडर लिखता है
जो सवाल आप के रूबरू पेश किया जाता है वह गोश्त ख़ोरी के सवाल से कई दर्जे बढ़कर है क्या नास्तिक यानी वेदों को ईश्वर कृत न मानने वाले आर्य समाज के लीडर और बड़े बड़े अधीकारी हो सकते हैं ? एक अधीकारी महाशय से कुछ अर्सा हुआ मैं ने दर्याफ़त किया कि आप वेदों को ईश्वरकृत मानते हैं। जवाब दिया कि जैसा दस उसूलों में लिखा है वैसा मानता हूँ उसूलों में ‘‘वेद ईश्वरकृत हैं’’ ऐसा मतलब है या नहीं। अगर है तो सवाल का जवाब हाँ होना चाहिये था अगर सूरत दोयम हो तो सवाल नहीं होता अगर अक्सर असहाब को सीधा हाँ या न करने में ताम्मुल होता है। उमूमन् इसी क़िस्म के जवाब होते हैं जैसा कि मज़कूरा मुझको मिला है। आप से सच कहता हूँ कि मुझको कभी ख़्याल तक भी नहीं गुज़रा कि उसूलों में लफ़ज़ ईश्वरकृत न होने से कुछ और भी इसका मतलब हो सकता है। जहाँ तक स्वामी जी का ज़ाती यक़ीन इसके बारे में है वह किसी से पोशीदा नहीं। स्वामी जी लिखते हैं कि चारों वेदों को धर्मयुक्त, ईश्वर परिणित संहिता मनुभाग को ही निरा भ्रान्त सोता प्रमाण मानता हूँ चूंकि स्वामी जी इन नियमों का अपनी ज़िन्दगी में प्रचार किया इससे इसका मतलब स्वामी जी के निज सिद्धान्तों के बरखि़लाफ़ नहीं हो सकता। पस जो पुरूष इस सवाल का जवाब ये न देवें कि हाँ मैं वेदों को ईश्वरकृत मानता हूँ ज़रूर उसूलों के कुछ और अर्थ करते हैं और वेदों को उन्हें ईश्वरकृत समाज के बड़े मिम्बर और अधीकारी हो सकते हैं तो किस का मक़दूर है कि माँस भक्षण को नाजायज़ ठहराये। वेद आर्य समाज की बुनियाद है। जब वेदों को ही उड़ा दिया तो मूल की अदम मौजूदगी से शाख़ पत्ते कहाँ रह सकते हैं ऐसा मानने वाले एक नहीं बल्कि अग़लब है कि बहुत से होंगे। (सत्ता धर्म प्रचारक 2 अक्तूबर 1912 ई0)
मज़कूराबाला तहरीर आर्य समाज के एक लीडर की तरफ़ से शाये होती है। इससे मेरे इस बयान की ज़बरदस्त अल्फ़ाज़ में ताईद होती है कि इस मसअले ने कि ‘‘वेद ईश्वरकृत’’ हैं सोसायटी में रियाकारों का एक ख़ासा गिरोह पैदा करने में मदद दी है जो दिल से वेदों को ख़ुदा का कलाम नहीं मानते। लेकिन पुरोहित क्लास से वह इस क़द्र डरते हैं कि अपने ख़्यालात को वह आज़ादाना तौर पर ज़ाहिर करने की अख़्लाक़ी जुरअत नहीं रखते इसका नतीजा सिवाये इसके और क्या निकाला जा सकता है कि वेद उनको बजाये दयानतदार बनाने के रियाकार बना रहे हैं। फट पड़े सोना जो छेदे कान। रियाकार बनने की बजाये बेहतर है कि वेदों को ही उठाकर अलग रख दिया जाये इसीलिये मैंने इस ना मरग़्ाूब बोझ को सरसे उतार फेंका है। मगर बिला वजह नहंी बल्कि संगीन वाक़िअ़ात और ज़बरदस्त वजूहात की बिना पर मैं वेदों को ख़ुदा के कलाम के दर्जे से साक़ित करके पुराने ज़माने के पुरोहितों के गीतों की सतह पर रखता हूँ उनमें से बअ़ज़ गीत अच्छे हैं लेकिन बअज़ सख़्त वहशियाना और ख़तरनाक हैं। अब मैं वेदों को न तो कलामे इलाही मानता हूँ न ही मैं इस बात का क़ायल हूँ कि वेदों के प्रचार से दुनिया में आलमगीरी शान्ति की बादशाहत क़ायम हो सकती है बल्कि जैसा कि मैं ऊपर दिखा चुका हूँ वेदों में जिस क़द्र जंग व जदल कुश्त व ख़ून, मार धाड़, दंगा फ़साद, लूट, ग़ारत, क़त्ले आम, अपने धर्म के मुख़ालिफ़ों को उल्टा करके ज़िन्दा आग में जलाने, अपने दुशमनों को शेरों से फड़वाने, समन्दर में ग़र्क़ करने, दरिन्दों से चरवाने और अनवाअ़ व अक़साम की सफ़ाकियों से मरवाने की तालीम है वह निहायत ही ख़तरनाक बल्कि शर्मनाक है। ऐसी तालीम को ख़ुदावन्दे कुद्दूस की ज़ाते पाक की तरफ़ मनसूब करना सख़्त कुफ्ऱ ख़ौफ़नाक देहरियत और शर्मनाक इलहाद है। और ये कहना कि ऐसी तालीम के प्रचार से दुनिया में अमन की बादशाहत क़ायम हो सकती है एक लासानी झूठ है। सच तो ये है कि दुनिया को ऐसे वैदिक धर्म की ज़रूरत नहीं है बल्कि वैदिक धर्म के नीचे से निजात पाने की ज़रूरत है। क्योंकि वैद जिस क़िस्म की ख़ूंरेज़ी की तालीम देते हैं वह तो चारों तरफ़ हो रही है। और वेदों की तालीम के मुताबिक़ तोप, बन्दूक़ तीरेा तफ़ंग, आतिशीं असलहे की भरमार, जंग व जदल, कुश्त व ख़ून, दंगा फ़साद मारधाड़, क़त्ल व ग़ारत, फ़ौज की कसरत, बमसाज़ी, मशीनगन, क्रूपगन, डरेडनाट, डिस्टरायर, क्रूज़र, टारपीडो, बर्री, बहरी, और हवाई जंग, गाँव के जलाने, दुशमनों को क़त्ल करने, चीरने, फाड़ने, ग़र्क़ करने, और बअज़ हालात में ज़िन्दा आग में जलाने अपने दुशमनों की तबाही चाहने और उनकी बरबादी के लिये ख़ुदा से दुआऐं मांगने, उनको ज़ेहर देने, उनकी गर्दने काटने, उनका बीज नाश करने, उनके घरों को लूटने उनके खेतों को आग लगाने की बदौलत जैसा कि वेद मंतरों से ऊपर साबित किया जा चुका है। तमाम दुनिया शौला-ए-नार बन रही है। और चारों तरफ़ वेदों की इस ख़तरनाक तालीम के ख़ौफ़नाक शौले ज़मीन से उठकर आसमान की तरफ़ जा रहे हैं और दुनिया इस अमली वैदिक धर्म के भारी बोझ के नीचे पिस्ती जा रही है। और मर रही है। वैदिक धर्म की इस अमली प्रचार की आग में घी की आहूति डालना मिस्टर ह्यूम के अल्फ़ाज़ में बनी नूए इन्सान के साथ ग़द्दारी करना है। स्वामी दयानन्द ने वेदों को उठाया, नतीजा ये निकला कि उन्होंने सिवाये उनके जो वेदों को ख़ुदा का कलाम मानते थे बाक़ी तमाम मज़हबी दुनिया को और तमाम मज़ाहिब के मुक़द्दसीन को तलवार से नहीं बल्कि शमशीरे से बेदरीग़ तहे तेग़ कर दिया। जिसने वेदों के सामने सर झुकाया उसी ने सारी मज़हबी दुनिया के साथ हंगामा कारज़ार शुरू कर दिया। वह सोसाइटी जो वेदों को खुदा का कलाम मान रही है। वह सिर्फ यही नहीं कि बाकी तमाम मज़ाहिब को अपना दुश्मन खयाल करके वेदों की तालीम के मुताबिक उनकी बीखकुनी में मसरूफ है बल्कि उसी तालीम का बदौलत उसके मेम्बर आपस में भी एक दूसरे के जिल्लत और तहक़ीर, तज़हीक और तज़लील में रात-दिन कोशां रहते और तहरीर और तक़रीर के ज़रिये एक दूसरे की तबाही और बरबादी के मन्सूबे सोचते रहते हैं, चूंकि वेदों में जाबजा यही तालीम दी गयी है कि वह जो हम से दूश्मनी करते हैं वह फना हो जायें और जिन से हम दुश्मनी करते हैं वह भी फना हो जायें, इस लिए इन दुआओं को इलाही दुआयें मानने वाले एक दूसरे की तबाही और बरबादी, जिल्लत और तहक़ीर में रात दिन कोशां नज़र आते हैं, बस वेदों की अन्दरूनी तालीम और उसके बदीही नताईज पर नज़र करके में यह नतीजा निकालने के लिए मजबूर हुआ हू कि ज़हरीले दरखत का फल कदरतन ज़हरीला होता है। ऐसी तालीम को खुदावन्द कुद्दूस की ज़ात वाल की सिफात की तरफ मन्सूब करना मिस्टर हयूम के अल्फाज़ में महज शरारत फेलाना है।
समाप्त
(1) वह जो हवाई जहाज़ में बैठकर हवा में उड़ते हैं जिनके तीर हवा की मानिन्द चलने वाले हैं इन पुरानों की मानिन्द बहादुरों को हमारा सत्कार हो।’’ (यजुर्वेद 16/25)
(2) जिन के तीर बारिश की मानिन्द बरसने वाले हैं हम लोग दुशमनों को मारने वाले इन बहादुरों का सत्कार करते हैं।’’ (यजुर्वेद 16/51)
(3) ऐ सिपहसालार आप हम को दिली राहत देने वाले हों आप हमारी हिफ़ाज़त की ख़ातिर तलवार, तोप बन्दूक़ को ग्रहण करें। आप हिरन की खाल को पहने हुए हमारी हिफ़ाज़त के लिये आयें और दुशमनों की ज़बरदस्त फ़ौज को दरख़्त की मानिन्द काट कर फ़तह कीजिये। (16/51)
(4) ऐ सूर की मानिन्द सोने से नफ़रत करने वाले राजा! आप के जो अनवाअ़ व अक़साम के हथियार हैं वह हमारे सिवाये दुशमनों को मारने का मौजिब हों। (16/52)
(5) ऐ ख़ुश क़िस्मत सिपहसालार आप अपने ज़ोर आवर बाज़ुओं से बेशुमार हथियारों का कमाहिक़ा इस्तेमाल करने वाले हैं। (16/53)
(6) ऐ इन्सानो! जिस तरह हम लोग हज़ारों जीव जन्तुओं से भरी हुई और ज़मीन के हज़ारों पूजन लम्बे चौड़े देश व देशान्तर में अपनी कमान को चल्ले पर चढ़ाते हैं उसी तरह तुम भी करो। (16/54)
(7) हम लोग दुशमनों को मारने और उनको ताड़ने का काम करने वालों का सत्कार करते हैं। (16/45)
(8) हम लोग रूबरू होकर दुशमन को मारने वाले तीर बनाने वाले कमान बनाने वाले तीरो तफ़ंग चलाने वाले तुम लोगों का सत्कार करते हैं। (16/46)
(9) जो दुशमनों को पहले से ही घेर लेने और क़ैद कर लेने वाले और दुष्टों को मारने और उनकी बिल्कुल बेख़कनी करने वाले और दुशमनों को काटने वाले और हरे बालों वाले नौजवान या हरे दरख़्तों को अनाज और पानी देता है, वह सुख को प्राप्त करता है। (16/48)
(10) वह जो जंगल में रहने वालों को ऽह्नऽह्न तेज़ रफ़तार फ़ौज के सिपहसालार को तेज़ रफ़तार रथों के मालिक को कोचवान को दुशमनों को मारने वाले और उनको तितर बितर करने वाले बहादुरों और एलचियों को अनाज देते हैं वह फ़तह नसीब होते हैं। (16/34)
(11) ऐ राजा और प्रजा के पुरूषो! तुम लोग बलम और फ़तह लगाने वाले और उनका मुनासिब इस्तेमाल करने वाले पुरूषों का सत्कार करोऽह्न सिपहसालार और कमान अफ़सरों को बाजा बजाने वाले बैन्ड मास्टर का और बहादुरों को मैदाने जंग में जोश दिलाने के लिय ज़रीमा गीत गाने वाले का सत्कार करो। (16/35)
(12) राजा और प्रजा के पुरूषों को चाहिये कि वह बहुत से हथियारों से मुसल्लह और तीरों से भरे हुए तरकश वाले का सत्कार करें तेज़ हथियारों और तोप बन्दूक़ से मुसल्लह फ़ौज के सिपहसालार का सत्कार करें, ख़ूबसूरत हथियारों वाले और उमदा कमानों वाले पुरूषों और उनके मुहाफ़िज़ों को अनाज दें। (16/36)
(13) राजा अधीकारी पुरूषों को चाहिये कि वह दुशमनों को रूलाने वाले और दुशमनों की फ़ौज को मिट्टी में मिलाने वाले बहादुरों को अनाज वग़ैरह दें। (16/18)
(14) इन्सानेां को चाहिये कि जिसके पास तलवार, बन्दूक़ वगै़रह बहुत से हथियार हों उसको अनाज वगै़रह दें। (16/40)
(15) ऐ इन्सानो! तुम सबको बता दो कि हम लोग दुशमनों पर हथियार चलाने वाले को तुम में से दुशमनों को हथियार से मारने वालों को अनाज देंगे। (16/33)
(16) हम अदल व इन्साफ़ करने वाली स्त्रियों का और तुम में से सभा की रक्षा करने वाले राजाओं का सत्कार करेंगे, घोड़े की रक्षा करने वालों को, दुशमनों की फ़ौज को मारने वाली अपनी फ़ौज को और तुम में से जो स्त्रियाँ दुशमनों की फ़ौज के बहादुरों को मारने वाली हों और मुख़्तलिफ़ तरकों वाली हों और मैदाने जंग में दुशमनों को मारती हुई स्त्रियों को अनाज देंगे और उनको कमाहिक़ा इस्तेमाल करेंगे। (16/24)
(17) ऐ दुशमनों को मारने वाले राजा तेरे लिये अनाज प्राप्त हो, तेरे बाज़्ाुओं से दुशमनों को वज्र प्राप्त हो। (16/1)
(18) ऐ बादल की तरह तीरों की बारिश करने वाले सिपहसालार! तेरा तीर को हाथ में लेना और इसको चलाना मंगलकारी हो। (16/31)
(19) वह सिपहसालार जो गले में नीलम की माला पहने हुए है जो दुशमनो को रूलाने वाला है वह हम को सुख देने वाला हो। (16/7)
(20) ऐ बुलन्द इक़बाल सिपहसालार! तेरे हाथ में जो तीर हैं तू उनको कमान में रखकर कमान के दोनों गोशों को मिलाकर बड़े ज़ोर से दुशमन पर छोड़ और तीर दुशमन तुझ पर चलाये तो अपने आप को उनकी ज़द से दूर रखे। (16/9)
(21) ऐ फ़नून जंग में माहिर इनसानो! इस जटाधारी सिपहसालार की कमान कभी भी चल्ले से उतरने न पाये और इसके तीर की नोक कभी न टूटे इस मुसल्लह सिपहसालार का तरकश कभी भी तीरों से ख़ाली न होने पाये उसका तरकश हमेशा तीरों से भरा रहे। मगर इसका तरकश तीरों से ख़ाली हो जाये तो इसको नये तीरों से भर दो। (16/10)
(22) ऐ बहुत ज़्यादा देरिया सींचने वाले सिपहसालार! तेरे हाथ में जो तीर व कमान है तेरे मुतीअ़ जो फ़ौज है तू इस तीर व कमान और फ़तह नसीब फ़ौज केे ज़रिये हमारी सब तरफ़ से हिफ़ाज़त कर। (16/11)
(23) ऐ सिपह सालार! तू अपनी तीर अन्दाज़ कमान के साथ हमारी दूर और नज़दीक सब तरफ़ से रक्षा कर, आप हमारे नज़दीक ही अपने तरकश को तीरों से भरकर धारण कीजिय। (16/12)
(24) ऐ मैदान जंग में चारों तरफ़ नज़र दौड़ाने वाले तीर कमान से मुसल्लह फ़ौज के सिपहसालार तू अपनी कमान को फैला और नोकदार तीरों को दुशमनों पर चला और उनको हलाक करके हमें दिली राहत देने वाला हो।’’ (16/13)
(25) ऐ कुव्वते बाज़ू रखने वाले फ़ौज के सिपहसालार! तुझे हथियार प्राप्त हों। (16/17)
(26) ऐ राजा! आप हमारे ज़ोर आवर दुशमनों पर फ़तह हासिल कीजिये। (15/2)
(27) ऐ तेज़ हथियारों का इस्तेमाल करने वाले, मज़कूरा बाला औसाफ़ से मौसूफ़ सरदार जिस तरह सूरज की तेज़ किरणें सुबह के वक़्त रात को दूर करके दिन को प्रकाशित करती हैं। इसी तरह तू भी अपने तेज़ स्वभाव से रात की मानिन्द राक्षसों को यक़ीनन् भस्म कर। (15/37)
(28) ऐ राजा! आप हमारे लिये मैदान जंग में दुशमनों पर फ़तह पाने वाले हैंऽह्न आप की फ़ौज मैदाने जंग में कारहाये नुमायाँ करने वाली हो। (15/39)
(29) ऐ राजा! आप अपनी फ़ौज की ताक़त को मुस्तक़िल तौर पर बढ़ायें। (15/40)
(30) ऐ सिपेहसालार! आप अपना जवा दिखायें और मुल्क गीरी कीजिय। (15/52)
(31) ऐ सिपेहसालार! आप ताक़त हासिल करें और इस ज़मीन को अपने दाम तसर्रूफ़ में लायें। दुशमनों को मुँह के बल गिरायें हाथी और फ़ौज के मालिक राजा की मानिन्द आप अपने दुशमनों को निहायत ही दुख देने वाले हथियारों से मारते हुए उनके गले में फाँसी डालें और उनको रूबरू लानत फटकार करें। (13/9)
(32) ऐ सिपेहसालार! आपकी बहादुरों की फ़ौज बिजली की तरह कड़कती और चमकती हुई चारों तरफ़ से दुशमनों की फ़ौज पर हमलावर हो। ऐ सिपेहसालार तू अपनी फ़ौज की ताक़त को बढ़ा और उसको ख़ूब तरबियत कर जिस तरह आग पर घी डालने से शोले बुलन्द होते हैं उसी तरह तू दुशमनों की फ़ौज पर बिजली के हथियार चला। (13/10)
(33) ऐ मेरी बहादुर बीवी! दुशमन तेरी नज़र को नहीं सहार सकता तू अपने आप ही दुशमन की फ़ौज से लड़ती हुई दुशमन के हमलों को रोकती है। (13/26)
(34) ऐ आलिम बाअमल और पुर जलाल महात्मन् आप के घोड़े मंज़िल मक़सूद तक पहुँचाने वाले बड़े सधे हुए दुशमन पर हमला करने के लिये बड़े जोश और ताक़त के साथ रथ को खींचने वाले हैं। (13/39)
(35) ऐ आलिम बाअमल महात्मन्! आप के जिन घोड़ों को चाबुक सवारों ने सधाया हुआ है। आप उनको दुशमनों की फ़ौज के मुक़ाबले में रथ मे जोड़िये। (13/37)
(36) ऐ वेद के जानने वाले राजा! तुम अपने रिआ़या के दुशमनों को आग की मानिन्द तपाओ और अपनी रिआया की मदद से अपने दुशमनों पर फ़तह हासिल करो। (12/16)
(37) राजा को चाहिये कि आग की तरह दुशमनों को तबाह करे। (12/13)
(38) ऐ इन्सानो! तुम्हारा जो सिपहसालार है वह सूरज की मानिन्द आब व ताब वाला हो, वह दुशमनों के हक़ में बर्क़ दरख़्शां हो। ऐसा ही सिपहसालार हमारी फ़ौजों की कमान करे।
(39) जो इन्सान सूरज की मानिन्द दुशमनों से लड़ने वाला हो वही ग्रहस्त आश्रम में दाखि़ल होने के लायक़ है। (13/66)
(40) ऐ शान्ति स्वभाव पुरूष! आप दुशमनों को नीचा दिखने वाले फ़न जंग को सीखें। (12/13)
(41) ऐ राजा तेरा दुशमनों के मुक़ाबले पर जाना मुबारक हो तू अपनी ताक़तवर फ़ौज के साथ बद किरदार दुशमनों की फ़ौज पर हमला कर और उसको तहे तेग़ कर तू दुशमनों के मुल्क को पांमाल करता हुआ वापस आ तू हमें सुख दे। दुशमनों को रूलाने वाला तेरा सिपहसालार तेरे साथ हो। (11/15)
(42) ऐ राजा जिस तरह तेज़ रफ़तार घोड़ा! मैदाने जंग में अपनी जोलानी से ज़मीन को हिला देता है वैसे ही तू भी मैदाने जंग में धूम मचा। (12/18)
(43) ऐ राजा तू कमाले मुहर व मुहब्बत से अपने दुशमनों को पायमाल करके अपनी राज भूमि में इल्म की रोशनी फैलाने की ख़्वाहिश कर। (11/19)
(44) ऐ राजा! तू अपनी फ़ौज के साथ दुशमन के मुक़ाबले पर क़ायम हो। (11/20)
(45) ऐ राजा! जिस तरह हिफ़ाज़त करने वाले आलिम को पौत्र शागिर्द सुख देने वाले आग वगै़रह पदार्थों को हासिल करके वेदों के अर्थ को जानने वाला और तमाम उलूम में माहिर और दुशमनों को मारने वाला और दुशमनों के गाँव को तबाह करके आप के जाह व हशमत को दोबाला करना है, उसी तरह दीगर विद्वान लोग भी आपको विद्या और रोने से तरक़्क़ी दें। (11/33)
(46) ऐ पानी की मानिन्द नेक औसाफ़ रखने वाली स्त्रियो! अगर तुमको सुख भोगने की ख़्वाहिश है तो तुम बड़े बड़े लड़ाई के मैदानों और ताक़त व शुजाअ़त के हाथों में हमारे पहलू बा पहलू क़दम मारो। (11/50)
(47) ऐ सिपेहसालार! जिस तरह मैं मुक़ाबले पर आकर लड़ने वाले, मुख़्तलिफ़ क़िस्म की धमकियाँ देने वाली हथियारों से मुसल्लह हुई दुशमन की फ़ौज को जलती हुई आग की लपेट में गिराता हूँ उसी तरह तू भी ऐसे आदमियों को भस्म किया कर। (11/77)
(48) ऐ सभा और फ़ौज के स्वामी! जो लोग हम से दुशमनी करते हैैं जो हमारे साथ द्वेष करते हैं जो हमारी निन्दा करते हैं जो हम को धोखा दे और मक्कारी करे तो ऐसे तमाम इन्सानों का जलाकर भस्म कर डाल। (21/80)
(49) ऐ राजा! तेरा राज दुशमनों को हलाक करके तेरे लिये निहायत ही ख़ुशी का देने वाला हो। (9/4)
(50) ऐ वीर पुरूष! जिस मैदाने जंग मे तू जाहो हशमत वाले राजा के संगरा मूलका विभाग करने वाला, वज्र की मानिन्द दुशमनों को काटने वाला और प्रजा की रक्षा करने वला हो, इस मैदाने जंग का आप के साथ ये पुरूष इन्तज़ाम करे। (9/5)
(51) ऐ राजा! जिस तरह बाज़्ा हवा में चारों तरफ़ तेज़ी से उड़ता है उसी तरह आप भी हमारे लिये फ़ौज की ताक़त से ताक़तवर हो जाइये। (9/9)
(52) ऐ आलिम इन्सानो! तुम इस राजा की फ़नून जंग में वाक़िफ़यत को ज़्यादा करो ऐ दुशमनों की बेख़कनी करने वाले राजा! आप दुशमनों पर फ़तह हासिल करके इक़बाल मंद हों। (9/11)
(53) ऐ राजपुरूषो! तुम लोग जाह व हशमत के देने वाले सिपेहसालार को मैदाने जंग में फ़तह नसीब करो। (9/12)
(54) ऐ इल्म की ताक़त से आरास्ता मैदाने जंग को जीतने वाले चारों तरफ़ से दुश्मनों की देखभाल करके उनको घेरने वाले लोगो! जैसे तुम लोग चारों तरफ़ चलते हो वैसे ही हम भी चलें। (9/13)
(55) सिपेहसालार को चाहिये कि वह अपनी फ़ौज को तमाम कील काँटे से लैस करके बोली पर चलने के लिय तैयार रखे।
(56) ऐ राजा! मैं राक्षसों के नाश करने के लिय आपको ग्रहण करता हूँ जिस तरह तूने दुष्ट को मारा है वैसे ही हम भी दुष्टों को मारें वह दुष्ट नष्ट हो जाये वैसे हम लोग भी उन सब को नष्ट करें। (9/38)
(57) ऐ सभापति! आप अपनी फ़ौज के साथ अपनी हर एक क़िस्म की ताक़त को बढ़ायें। (8/29)
(58) ऐ काली घटा की मानिन्द फ़ौज के बहादुरो! तुम दोनेां इन तमाम दुश्मनों को जो हमारी फ़ौज से लड़ना चाहें तीर व तफ़ंग से हलाक करो और दुशमनों की जो फ़ौज तुम्हारे सामने आये और जो भी तुम्हारे सामने अकड़फूं करे तुम लोग उनको मार भगाओ। (8/53)
(59) मैदाने जंग में वैदिक विद्या को प्रकाश करने वाला हम को वैदिक और युद्ध की शिक्षा युक्त वाणी से आनन्द देने वाला हो, दूसरा बहादुर मैदान में दुशमनों को पामाल करता हुआ आगे आगे चले। तीसरा बहादुर मैदाने जंग में वीर रस से लड़ने वालों को जोश दिलाता रहे चौथा बहादुर कमाल आनन्द से धर्म के दुशमनों पर फ़तह हासिल करे। (7/44)
(60) ऐ राजन्! जिस तरह मैं बुरे काम करने वाले जीवों को गले काटता हूँ वैसे तू भी काट, मुझ से द्वेष या नफ़रत करने वाले दुशमनों को दूर कर जो मेरे सरीहन् दुशमन हैं उनको अलग कर। (6/1)
(61) ऐ सिपेहसालार! तू तमाम बहादुरों की फ़ौज के दुशमनों को चारों तरफ़ से घेरने के लिये शुमाल जुनूब, मशरिक़ मग़रिब में बाँट। (6/16)
(62) ऐ सभापति! जिस कर्म से बडे़ बड़े घमण्डी दुशमन मारे जायें, इस परम उत्तम दुशमनों को हलाक करने वालो काम के लिये आपको जो कि आला जाह व हशमत के धारण करने वाले हैं और युद्ध वग़ैरह कामों में बाज़ वग़ैरह जानवरों की मानिन्द लपेट मारने वाले हैं, हम लोग आप को स्वीकार करते हैं। (6/32)
(63) ऐ आलमे इन्सान जिस तरह तू धार्मिक विद्वानों में जलवा गर है उसी तरह तू राक्षसों बदकिरदारों को तबाह करने वाला हो जिस तरह तू सब जगह जलवागर होता है उसी तरह तू अपने दुशमनों को हलाक करने वाला बन।
(64) ऐ राजसभा के पालन करने वाले इन्सानो! मैं आप लोगों की पैरवी करता हुआ मैदाने जंग में घमण्डी को नीचा दिखाऊँ जैसे आप राक्षसों और बदकिरदारों को मारने वाले हैं वैसे ही मैं दुशमनों की फ़ौज की ताकत का पता लगाकर बदकिरदारों को दूर करूँ। (5/25)
(65) जैसे बहादुर आदमी मैदाने जंग में अपनी फ़ौज के साथ दुशमनों को पहले ही जाकर घेर लेता है। इसी तरह फ़न महारबा में माहिर ये सेनापति मैदाने जंग में मुकम्मल फ़तह हासिल करे ये सेनापति हर एक क़िस्म के ख़ौफ़ से अलग होकर बिल्कुल आनन्द से मैदाने जंग में क़वाइदान फ़ौज को अच्छी तरह से बोली देता हुआ फ़तह को हासिल करे। (5/27)
(66) ऐ दुशमनों को रूलाने वाले सिपेहसालार! तू मैदाने जंग के लिये अपने धनुष को फैलाने वाला हथियारों के ज़रिये अपने दुश्मनों की ताक़त को पीसकर अपनी रक्षा करने वाला, ज़रा बकतर लगाने वाला सब सुखो को देने वाला है ऐ बहादुर सेनापति! मंजघास से ढपे हुए पहाड़ों की दूसरी तरफ़ के मुल्क में दुशमनों को फ़तह कर। (3/61)
(67) मैं मादी आग और चन्द्र लोग के दुखों को बर्दाश्त करने के क़ाबिल दुशमनों को अच्छी तरह उमदा दलाईल से मुज़यन करूँ। (2/15)
(68) आक़िल इन्सान जीवन का हित करने वाली इस ज़मीन के सहारे से फ़ौज और असलहे सिलसिलावारलेकर जंगजुओं इन्सानों को अपना रोअब और अपनी हशमत दिखाते हुए दुशमनों के आज़ा काटने वाले मैदाने जंग में ग़नीम पर फ़तह पाकर राज को हासिल करते हैं। (1/28)
(69) मैं इस मैदाने जंग को जो निहायत वसीअ़ और दुशमनों को हलाक करने वाला है .... इस हंगामाखे़ज़ मैदाने जंग को अनाज वग़ैरह अशया से ताक़तवर की गयी फ़ौज के साथ जंग के तरीक़ों से अच्छी तरह पाक करता हूँ। (1/29)
(70) जिस तरह मैं इस जंग में जिसमें कि आलिम लोग अच्छे अच्छे पद्धार्थ या आला से आला विद्वानों की संगत को प्राप्त होते हैं। इस जंग में दुशमनों को मारता हूँ, वैसे तुम लोग भी मारो। (1/26)
(71) हम लोग तुम्हारे साथ आकर आला तरीक़े से ग़नीम को शिकस्त दें और भारी लड़ाइयों में सब तरह से फ़तह हासिल करें क्योंकि आप इल्म जंग के जानने वाले हैं। (1/16)
(72) जो बहादुर सवार होते वक़्त घोड़े को सीधा चलाता है और भूखा प्यासा मैदाने जंग में लड़ता और फ़तह पाता है वही राज करने के लायक़ होता है। (27/10)
(73) ऐ सभापति! तेरी मुसल्लह फ़ौज हमारे सिवाये दूसरों को दुख देने वाली हो। (17/11)
(74) ऐ राजा! आप के हथियार हम को छोड़कर बाक़ी दुशमनों को दुखी करने वाले हों। (17/15)
(75) वह जो तमाम इन्सानों में चुस्त व चालाक हो, ताक़तवर बेल की, मानिन्द ख़ौफ़ दिलाने वाला हो, दुशमनों को रात दिन मारने डराने, और रूलाने वाला जरदीद रोज़गार हो। ऐसा बहादुर हम लोगों में से दुशमनों पर फ़तह पाने वाली और दुशमनों को बाँधने वाली फ़ौजों का सिपेहसालार हो। (17/33)
(76) एक जंगजू बहादुरो! तुम हमेशा दुशमनो से लड़ते भिड़ते और उनको दुख देते रहे तुम्हारे हाथ में हमेंशा ही मज़बूत तीर रहें। (17/34)
(77) सिपेहसालार को चाहिये कि वह तोप बन्दूक तलवार और दीगर आतिशीं असलहे से मुसल्लह फ़ौज को हर वक़्त मुस्तैद रखे, वह तमाम असलहे का इस्तेमाल जानने वाला हो, ऐसा सिपेहसालार ही सामने आये हुए दुशमन पर फ़तह पाता है। इसकी कमान तेज़ होती है वह मैदाने जंग का आशिक़ होता है, वह ख़ूब हथियार चलाता और दुशमनों को मारता है ऐसा सिपेहसालार ही एक क़वाइदान फ़ौज के साथ दुशमनों पर फ़तह पाता है।
(78) तू रथ में सवार फ़ौज के साथ दुशमनों को चारों तरफ़ से काटता हुआ फ़तह हासिल कर। (17/36)
(79) ऐ सिपेहसालार! तू अपनी फ़ौज को बढ़ाने वाला है तू बड़ा बहादुर ताक़तवर और शास्त्रों को जानने वाला है तू सुख दुख को बर्दाश्त करने वाला और दुशमनों को बड़ी फुर्ती से मारने वाला है। मैदाने जंग में लड़ने वाले बहादुर आप की आँख के इशारे पर चलने वाले हैं। (17/37)
(80) वह सिपेहसालार जो कि अपनी अक़्ल और ताक़त के ज़ोर से दुशमनों के जत्थों को छिन्न्ा भिन्न्ा करता, उनकी जड़ काटता, उनकी ज़मीन को छीन लेता और अपने हाथ में हथियार लिये रहता है और मैदाने का कारेज़ार में अच्छी तरह दुशमनों को हलाक करता है और उन पर फ़तह पाता है ऐसे सिपेहसालार को तुम इस तरह से हौसला दो और जंग को शुरू करो। (17/38)
(81) इस मैदाने जंग में जहाँपर कि हर एक क़िस्म के जोड़ तोड़ किये जाते हों वह सिपेहसालार जो कि पूरी ताक़त के साथ दुशमनों का बीज नाश करता हुआ और उनको अच्छी तरह पाँव के नीचे रौंदता हुआ और उन पर किसी क़िस्म का रहम न करता हुआ और हर एक किस्म के ग़ैज़ व ग़जब से भरा हुआ दुशमनों की फ़ौज को मग़लूब करता है और उनको आइन्दा लड़ने के क़ाबिल नहीं रहने देता, ऐसा बहादुर शख़्स हमारी फ़ौजों की कमान करे और वही सिपेहसालार हो। (17/39)
(82) मैदाने जंग में दुशमन की फ़ौज को सब तरफ़ से मारती हुई और उन पर फ़तह पाती हुई क़वाइदान फ़ौज का सिपेहसालार उनके पीछे पीछे चले और फ़ौज के तमाम अधीकारों का रखने वाला दायीं तरफ़ और फ़ौज को जोश देने वाला बायीं तरफ़ चले और हवा की मानिन्द तेज़ रफ़तार और जंगजू बहादुर आगे आगे चलें। (17/40)
(83) सिपेहसालार को चाहिये कि सबसे पहले वह मैदाने जंग में जोश दिलाने वाला गीत बाजा के ज़रिये बुलन्द करवाये। (17/41)
(84) ऐ बादलों की तरह दुशमनों को छिन्न्ा भिन्न्ा करने वाले क़ाबिले तारीफ़ सिपेहसालार! आप हमारी फ़ौज के जंगजू बहादुरों के हथियारों को फ़तह नसीब कीजिये, हमारे फ़तह नसीब रथों से जय जय के नारे बुलन्द हों। (17/42)
(85) ऐ फ़तह पाने वाले आलिम लोगो! आप हमारे बूक़लमों रंगों वाले झंडों को अलेहदा अलेहदा रथों पर क़ायम कीजिये। फ़तह का ख़्वाहिशमंद सिपेहसालार और हमारी क़वाइदान फ़ौज दोनों के दोनों ही दुशमनों को मैदाने जंग में पसपा करें। (17/43)
(86) ऐ दुशमनों की जान लेने वाली रानी! तू अपनी औरतों की फ़ौज के दिलों में उत्साह पैदा करे तू उन औरतों की फ़ौज के मुख़्तलिफ़ दस्तों को ग्रहण कर तू अपनी फ़ौज पर अपने दिली मक़ासिद का इज़हार कर और दुशमनों को भस्म कर। (17/44)
(87) ऐ तीर अन्दाज़ी के इल्म में माहिर और वेदों के जानने वाले सिपेहसालार की स्त्री! तू मैदाने जंग की ख़्वाहिश करती हुई दूर देश मे जाकर दुशमनों से लड़ाई कर और उनको मारकर फ़तह हासिल कर तू उन दूर दराज़ के मुल्कों में रहने वाले दुशमनों में से एक को भी मारे बग़ैर मत छोड़। (17/45)
(88) दुशमनों की जो ज़बरदस्त फ़ौज जंग के इरादे से हमारे मुक़ाबले में आये हम इसको काटने वाले हथियारों और तोप वग़ैरह के धुऐं से इस तरह ढाँप दें कि ग़नीम की फ़ौज के सिपाही एक दूसरे को न पहचान सकें। (17/47)
(89) जिस मैदाने जंग में छोटे छोटे बच्चों की तरह चोटी वाले और बगै़र चोटी वाले तीरों की ख़ूब बारिश होती है। वहाँ पर सिपेहसालार ज़ख़्मियों को बख़ूबी ढाढस दे। (17/48)
(90) एक जंगजू बहादुर! मैं तेरे मैदाने जंग में चोट खाने वाले आज़ा को ज़राबकतर वग़ैरह से ढाँपता हूँ .... आलिम लोग तुझे दुशमनों के पायमाल करने के लिये जोश दिलायें। (17/49)
(91) दो सिपेहसालार बिजली और आग की मानिन्द मेरे मुख़ालिफ़ों को उठा उठाकर ज़मीन पर पटखें़। (17/64)
(92) ऐ बहादुरो! तुम बिजली से सुख हासिल करो और बर्तनों में पकाये हुए दाल कढ़ी वगै़रह को हाथ में लेकर जंग व जदल करो। (17/65)
(93) ऐ आलिमो की ताज़ीम के लायक़ और दुशमनों को मारने वाले सिपेहसालार! जिस तरह सूरज आकाश में रहने वाले गरजने वाले और चारों तरफ़ फैले हुए बादल को बगै़र हाथ पाँव के चकनाचूर कर देता है उसी तरह ऐ सिपेहसालार तू भी अपने दुशमनों को ताक़त से मार। (18/69)
(94) ऐ सिपेहसालार तू फ़तह नसीब हो, तेरी फ़ौज हमारे दुशमनों को मुँह के बल गिराये। (18/70)
(95) ऐ सूरज की मानिन्द सिपेहसालार! जिस तरह सूरज पानी से भरे हुए घंघोर घटा से अंधेरे में आकर बादलो को छिन्न्ा भिन्न्ा कर देता है, उसी तरह तू भी ऐसी फ़ौज हासिल कर जो चारों तरफ़ छाये हुए दुशमनों को तितर बितर करके तुझे फ़तह नसीब करे। (19/71)
(96) ऐ सिपेहसालार! जिस तरह सूरज पानी को ऊपर उठाता है उसी तरह तू अपनी फ़ौज को तैयार कर। (20/38)
(97) ऐ सिपेहसालार तू मोर के बालों की मानिन्द बाल रखने वाले उम्दा घोड़ों के साथ दुशमनों पर फ़तह पाने के लिये जा। जानवरों को पकड़ने वाले शिकारी की तरह दुशमन तुझे अपनी कमंद में न फाँस सके तू अपने तीर व कमान के साथ दुशमनों पर फ़तह पाकर वापस आना। (20/53)
(98) ऐ वीर पुरूष! जिस तरह हम हथियारों के ज़रिये दुशमनों के मनसूबों को ख़ाक में मिलाते मुल्कों को फ़तह करते, मैदान जंग में कामयाब होते, दुशमनों की तेज़ रफ़तार फ़ौज को तितर बितर करते हुए चारों तरफ़ फ़तह व नुसरत का डंका बजाते हैं उसी तरह तुम भी फ़तह हासिल करो। (29/39)
(99) ऐ वीर पुरूष! ये जो चल्ले पर चढ़ी हुई कमान के ऊपर लगी हुई ताँत है जो इस तरह से बोलती है जिस तरह कि पढ़ी लिखी बाशऊर स्त्री बोलती है जिसकी तारीफ़ की जाती है और जो इस तरह प्यारी आवाज़ निकालती है। ये जो मैदाने जंग में फ़तह दिलाने वाली है। तुम इसका बाँधना और चलाना सीखो। (29/40)
(100) ऐ वीर पुरूष! जिस तरह लिखी पढ़ी स्त्री प्राण की मानिन्द प्यारे पति को और माता अपने पुत्र को धारण करती है इसी तरह कमान की दो ताँतें दुशमनों को मुन्तशिर करने और दूर भगाने में कामयाब होती हैं। (29/41)
(101) ऐ वीर पुरूष! जो बहुत से ताँतों वाले कमान का मालिक होता है। वह कमान से सम्बन्ध रखने वाले तीरों को तरकश में डाल कर पीठ के पीछे रखता है। मैदाने जंग में ये कमान और ताँत और तीर वग़ैरह चीं चीं की आवाज़ निकालते हैं इसी से बहादुर आदमी चारों तरफ़ फैली हुई दुशमनों की फ़ौज पर फ़तह हासिल करता है। (29/43)
(102) ऐ वीर पुरूषो! वह जिनके बेल ख़ूब मोटे ताज़े और हाथों की मानिन्द हिफ़ाज़त करने वाले और रथों को तेज़ी से ले जाने वाले ख़ूबसूरत रफ़तार वाले और दुशमनों को धमकाते हुए तेज़ रफ़तार हिनहिनाने वाले घोड़े हैं। दुशमनों को हलाक करने वाले ऐसे बहादुरों को तुम लोग दिल व जान से प्यार करो। (29/44)
(103) ऐ वीर पुरूषो! इस जंगजू बहादुर के रथ में ग्रहण करने के क़ाबिल अग्नि, ईंधन, जल वग़ैरह पद्धार्थ और तोप बन्दूक़ और क़बीह वग़ैरह हथियार जिस क़द्र भी हैं उनको देख भालकर रथ में रख ऐसे सुख देने वाले रथ को हम लोग रोज़ प्राप्त हों। (29/45)
(104) ऐ वीर पुरूष! जिस फ़ौज में सिपेहसालार उम्दा हो रथ वग़ैरह तमाम सामान मज़बूत हों जहाँ कस्तूरी वाली गाय के मानिन्द हिरन हों। वहाँ भली प्रकार तीर चलते हैं जो क़वाइद दान फ़ौज बोली पर इधर उधर चलती और बैठती और दौड़ती है। इस फ़ौज के बहादुर पुरूष हमारे लिये ख़ास तौर पर सुख देने का मौजब हों। (29/48)
(105) ऐ घोड़ों को सधाने वाली रानी! जिस तरह वीर पुरूष घोड़ों के जिस्म पर चाबुक लगाकर चलाते हैं और बहादुरों को मैदाने जंग में लड़ाते हैं इसी तरह तू भी मैदाने जंग में जाकर सधे हुए घोड़ों से काम ले। (29/50)
(106) ऐ नक़्क़ारे की तरह गरजने वाले फ़ौज के सिपेहसालार! आप हमारे उयूब को दूर करते हुए हमें बल और पराक्रम दीजिये। फ़ौज को तरतीब दीजिये, दुष्टों को कुत्तों की मौत मारिये आप अपनी फ़ौज को बिजली के हथियारों से मुसल्लह कीजिये। (29/56)
(107) ऐ राजपुरूष! आप हिनहिनाते हुए घोड़ों वाली फ़ौज से हमारी हिफ़ाज़त कीजिये और हमारे रथों पर चढ़े हुए बहादुर पुरूष दुशमनों पर फ़तह हासिल करें। (29/57)
(108) ऐ राजा जिस तरह आप मैदाने जंग में दुशमनों की तमाम फ़ौजों को पसपा करते हैं, दुष्टों को मार कर सुख देने वाले और फ़तह नसीब हुए है, इसी तरह आप सदा ही उनको मारते रहें। (33/66)
(109) ऐ दुशमनों को मारने वाले राजा! आप दुशमनों को मारने वाले और उनको सखाने वाले हैं आप के क्रेाध से दुशमनों की फ़ौज मारी जाती है। (33/67)
(110) हे पाप के दूर करने वाले और रोशनी देने वाले परमातन! आपको नमश्कार हो ऐ परस्तिश के लायक़ परमातन आपको नमश्कार हो, आप की न टलने वाली देवस्था हमारे सिवाये दूसरे दुशमनों को दुख देने वाली हो, आप हम को पवित्र कीजिये।
मैं ज़रूरत नहीं समझता कि जंग व हदल और मार धाड़ के बारे में ज़्यादा मंतर पेश करूँ। मज़कूरा बाला सौ से ज़्यादा मंत्र सिर्फ़ नमूने के तौर पर मैंने यजुर्वेद में से पेश किये हैं और तर्जुमा वही दिया है जो कि स्वामी दयानन्द ने किया है। यजुर्वेद में से इससे कई गुना ज़्यादा मंत्र इसी क़िस्म के कुश्त व ख़ून और जंग व जदल के बारे में मौजूद हैं। ये तो एक वेद का हाल है इसी पर बाक़ी के तीन वेदों का अन्दाज़ा लगाया जा सकता है। कि इनमें एक दूसरे के साथ दंगा फ़साद करने की किस क़द्र तालीम मौजूद होगी। मज़कूरा बाला मंत्रों का सरसरी मुतालेअ़ा करने से ही इस बात का पता लग जाता है कि वेदों में सबसे ज़्यादा तारीफ़ उन्ही लोगों की गयी है जो जंग व जदल करने वाले और अपने दुशमनों के गले काटने वाले हों। जाबजा तीर, तफ़ंग, तोप बन्दूक़ और दीगर आतिशीं असलहे के बनाने और इस्तेमाल करने की ताकीद की गयी है और राजा को हुक्म दिया गया है कि वह ज़्यादा से ज़्यादा फ़ौज भर्ती करे। न सिर्फ़ मर्दों की ही फ़ौज भर्ती करे बल्कि औरतों की फ़ौज भी भर्ती करे ख़ुद भी मैदान में जाकर लड़े। इसकी बीवी और दूसरी औरतें भी जाकर लड़ें। औरतें मर्दों को लड़ाई के लिये तैयार करें और उनको जोश दिलायें। गोली बारूद तीरों की ज़्यादा से ज़्यादा मिक़दार बहम पहुँचायें। तोप बन्दूक़ देने वाली हों इस जंग व जदल में वह ख़ुदा से भी यही दुआ करती जायें कि उनकी ही फ़तह हो और दुशमनों की शिकस्त हो। इन तमाम बातों के मुतालऐ से वेद हमारे सामने मारधाड़ और कुश्त व ख़ून का एक निहायत ही ख़ौफ़नाक मंज़र पेश करता है। हमारे सामने एक ऐसे मैदान जंग का नक़्शा खोल देता है। जिसमें कुश्तों के पश्ते लग रहे हों और चारों तरफ़ मुर्दों की लाशें मरने वालों की चीख़ पुकार, इन्सानों की नीम कटी गर्दनें, उनके टूटे हुए आज़ा मर्दो के क़त्ल विधवाओं की आह वज़ारी यतीमों की फ़रियाद, गाँव की बरबादी, हैवानों की हलाकत, खेतों का जलना, दुशमन की पार्टी के पीने के पानियों में ज़ेहर का मिला देना, खाने की चीज़ों को भी ज़ेहर आलूदा कर देना वग़ैरह वगै़रह तमाम ऐसी ख़तरनाक और वहशीपन की बातें हैं जिनकी कि वेद तालीम देता है। अगर वेद ख़ुदा का कलाम होता तो वह बनी नूए इन्सान के लिये इसी तरह अब्रे रहमत होता जिस तरह कि ख़ुद ख़ुदावन्दे कुद्दूस हज़रत ईसा मसीह के अल्फ़ाज़ में अपने सूरज को नेकों और बदों पर यकसाँ उगाता और उनकी परवरिश करता है। अगर वेद ख़ुदा का कलाम होता तो वह गौतम बुद्ध, हज़रत ईसा मसीह और हज़रत मुहम्मद स0अ0व0 साहब से बढ़कर दुशमनों के साथ शान्ति, दरगुज़र, बुरदबारी, तहम्मुल, प्रेम और मुहब्बत की तालीम देता ताकि दुनिया पर कुश्त व ख़ून का दरवाज़ा बन्द हो जाता और बनी नूए इन्सान आपस में एक दूसरे के साथ मुहब्बत और सुलह से रहना पसन्द करते। ये मारधाड़, कुश्त व ख़ून, दंगा फ़साद, जंग व जदल तो दुनिया मे पहले से ही चला आता है। और अब भी चारों तरफ़ जारी है। अपने हम जिन्सों को हलाक करने के लिये रोज़ नये से नये तरीक़े सोचे जा रहे हैं और नये से नये हथियार तोप, बन्दूक़ गोला, बरछी ईजाद किये जा रहे हैं। ख़तरनाक जहाज़ बनाये जा रहे हैं। खुश्की तरी और हवा में जंग व जदल करने और अपने भाईयों के गले काटने के लिये रोज़ नयी से नयी ईजादें की जा रही हैं। हम अपने चारों तरफ़ आग के उन शोलों को आसमान की तरफ़ बुलन्द हुआ देखते हैं। इन्सानी दुनिया में चारों तरफ शोर महशर बरपा हे। वेद सिर्फ़ यही नहीं कि इस फ़अ़ल के बरखि़लाफ़ आवाज़ नहीं उठाता बल्कि वह इसकी ताईद करता है और तालीम देता है कि अपने हम जिन्सों को क़त्ल करने के लिये नये से नये हथियार, तोप बन्दूक़ जहाज़ गोला बारूद बनाओ, ज़्यादा से ज़्यादा फ़ौज भर्ती करो और अपने दुशमनों की गर्दनें काटो लुत्फ़ की बात ये है कि इधर इस पार्टी को उस पार्टी की गर्दन काटने की तालीम है और इस तालीम को ख़ुदा की तरफ़ मनसूब किया जाता है जो कि दोनों पार्टियों के लिये महकमा रसद रसानी या कसरेट का काम कर रहा है जब ऐसी तालीम को ख़ुदावन्द कुद्दूस की तरफ़ मनसूब किया जाता है तो अक़्लमंदों, मुंसिफ़ मिज़ाजों, सुलह और अमन के तालिबों बनी नूए इन्सान के बही ख़्वाहों के लिये वेद नफ़रत की चीज़ हो जाते हैं। मगर सोचने वाले जब इस बात पर विचार करते हैं कि वाक़ई अगर ख़ुदा इसी क़िस्म का इल्हाम देने वाला है और ऐसी तालीम देकर लोगों को आपस में लड़ाकर तमाशा देखता है तो ऐसे ख़ुदा को स्वामी दयानन्द के अल्फ़ाज़ में दूर से ही सलाम कर देना चाहिये। हमें ऐसे ख़ुदा की मतलक़ ज़रूरत नहीं है। इस तरह बअज़ अमन पसन्द, रहम दिल, मुन्सिफ़ मिज़ाज इन्सान इलहामी कहलाने वाली किताब के अलावा इलहाम देने वाले ख़ुदा को भी साथ ही धक्का दे देते और ख़ुदा की हस्ती से मुनकिर हो जाते हैं। मगर वह लोग जो ख़ुदा की हस्ती पर आज़ादाना विचार करते हैं वह इसकी हस्ती से मुनकिर होने की बजाये इस क़िस्म की किताब को ख़ुदा की किताब नहीं बल्कि वह महज़ इन्सानी दिमाग़ की इख़्तराअ़ बताकर इसको वही पोज़िशन देते हैं जिसकी कि वह दरहक़ीक़त मुस्तहिक़ है। मेरे ख़्याल में ये दूसरा तरीक़ा पहले से ज़्यादा अच्छा और महफूज़ है। जब मैं वेद मे इस क़िस्म की तालीम देखता हूँ जिसका कि ऊपर ज़िक्र किया गया है तो मेरे दिल में सवाल पैदा होता है कि अगर ये ख़तरनाक तालीम दरहक़ीक़त ख़ुदा की तरफ़ से ही दी गयी है तो मुझे इस किताब के साथ ऐसे ख़ुदा को भी परे फेंक देना चाहिये। ये बेहतर है कि मैं दुनिया में जंग व हदल कुश्त व ख़ून मारधाड़, क़त्ल व ग़ारत, लूट मार की तालीम देने वाले, तीर कमान, तोप, बन्दूक और दीगर आतिशीं असलहे के ज़रिये बनी नूअ इन्सान का ख़ून बहाने के लिये इन हथियारों के बनाने की हिदायत करने वाले मर्दों को क़त्ल करवाने, औरतों को विधवा बनाने, बच्चों को यतीम करवाने और मर्दों के साथ औरतों को भी लड़वाने, क़त्ल करवाने, गाँवों को जलाने, खेतों को जलाने, शेरों से फड़वाने, समन्दर में ग़र्क़ करने, दरिन्दों से चिरवाने और अनवाअ़ व अक़साम की अज़ीयतें देकर मार डालने की हिदायत करने वाले ख़ुदा और ख़ुदा की इस क़िस्म की किताब पर ईमान लाने के बगै़र ज़िन्दगी बसर करूँ और ऐसे ख़ुदा और उसकी इस क़िस्म की ख़तरनाक किताब पर लात मार कर नास्तिक, लमहद, देहरिया, और काफ़िर रहकर अमन की ज़िन्दगी बसर करता हुआ मर जाऊँ, बनिस्बत इसके कि मैं इस क़िस्म के ख़ुदा और उसकी इस क़िस्म की ख़ूनी किताब के बोझ को अपने ज़मीर पर रखकर स्वामी दयानन्द के अल्फ़ाज़ में हैवान या दरिन्दा बनूँ। ये पहला ख़्याल है जो कि मेरे दिल में इस वक़्त पैदा होता है जबकि मैं उन लोगों की आवाज़ को सुनता हूँ जो ये कहते हैं कि वेद ख़ुदा का कलाम है लेकिन इसके बाद दूसरा ख़्याल मेरे दिल में पैदा होता है कि मुझे इस क़िस्म की खूनी किताब को ख़ुदावन्दे कुद्दूस की तरफ़ मनसूब नहीं करना चाहिये, बल्कि इन दोनों के दर्मियान एक हद फ़ासिल क़ायम करके वेद पर तो बेशक लात मार देनी चाहिये। लेकिन मुझे इस ज़ाते पाक की हस्ती से मुनकिर नहीं होना चाहिये जो कि मेरी रूह का आख़री सहारा है और जो उन उयूब और इलज़ामात से पाक है जो कि उस पर इस किताब में लगाये जा रहे हैं। ये ख़्याल मेरे लिये ज़्यादा शान्ति दायक है। पस ख़ुदावन्दे कुद्दूस की ज़ाते पाक और वेद जैसी किताब के दर्मियान हद फ़ासिल क़ायम करना मेरा पहला फ़र्ज़ है इस हद फ़ासिल को क़ायम करके मेरे लिये ये लाज़मी हो जाता है कि मैं वेद को मानूँ या ख़ुदा को। मगर जैसा कि हज़रत ईसा मसीह ने कहा है कि तुम ख़ुदा और मादह परस्ती या रोशनी और तारीकी की एक साथ पूजा नहीं कर सकते हो। इसी तरह मैं ख़ुदावन्दे कुद्दूस और वेद को एक साथ नहीं मान सकता। क्योंकि ये दोनों मुतज़ाद हैं। ख़ुदावन्दे कुद्दूस अगर रोशनी है तो वेद तारीकी है। जैसा कि ऊपर दिखा चुका है। मुझे या तो रोशनी में चलना पड़ेगा या तारीकी में ठोकरें खानी पड़ेंगी। मैं रोशनी को तारीकी पर तरजीह देता हूँ और हर एक आक़िल आदमी ऐसा ही करता है पस मैं ख़ुदावन्दे कुद्दूस की ज़ाते पाक को वेद पर तरजीह देता हूँ। और इस ज़ाते पाक को अपने लिये काफ़ी समझकर वेद को परे फेंकता हूँ क्योंकि ऐसी किताब को ख़ुदावन्द की तरफ़ मनसूब करना या उसको इसका कलाम बताना निहायत ही ख़तरनाक इलहाद, ख़ौफ़नाक, देहरियत और शर्मनाक झूठ है। जिससे कि हर एक दयानतदार रूह को परहेज़ करना चाहिये।
छठी फ़सल
वेदों पर ईमान की बुनियाद की कमज़ोरी
ऊपर के तमाम मज़मून को पढ़कर कोई दयानतदार शख़्स ये कहने का हौसला नहीं कर सकता कि वेदों के प्रचार से दुनिया में अमन और चैन की बादशाहत क़ायम हो सकती है जबकि वेदों में कुश्त व ख़ून जंग व जदल और मार धाड़ की तालीम मौजूद हो। लेकिन हमारे मुल्क में ऐसे ख़ुश ऐतक़ाद लेाग भी हैं जो अभी तक वेदों को ख़ुदा का कलाम माने हुए उनको दुनिया की अशान्ति दूर करने के मुजर्रब नुस्ख़ा बता रहे हैं। अभी कल का ज़िक्र है कि मैं एक हिन्दी रिसाले का मुतालेअ़ा कर रहा था। इसमें एक ग्रेजूएट का मज़मून मेरी नज़र से गुज़रा जिसके चन्द फ़क़रात का तर्जुमा मुफ़स्सला ज़ैल है
महर्षि दयानन्द का वेद भाष्य हमारे लिये एक बेशबहा मौरूसी जायदाद है जो बनी नूए इन्सान के लिये इस क़द्र मुफ़ीद है कि इसकी क़ीमत लगाना इन्सानी ताक़त से बाहर है इस मज़मून के लिखने वाले को यक़ीन है कि इसकी तरह पढ़ने वालों में बड़ी तादाद ऐसे आला दिमाग़ों की भी होगी कि जिनके डगमगाते हुए ईमान को इस भाष्य ने सहारा दिया होगा। ये सच है कि संसार की मौजूदा शान्ति इस वक़्त दूर होगी जबकि वेद भगवान का प्रकाश दुनिया के हर एक कौने में पहुँच जाये तो ये भी सही है कि ऋषि दयानन्द का वेद भाष्य इस क़िस्म का पायोनियर होने के बाइस इस आलमगीर शान्ति का पेश ख़ेमा होगा। गो आर्य समाज ने इस भाष्य को हर दिल अजीज़ बनाने के बारे मेें अपना फ़र्ज़ अदा किया है मगर फिर भी वह वक़्त दूर नहीं कि वेद का हर एक जगह ने वेद भाषीय की एक कापी को लाज़मी दिलाबदी समझेगा। और मौजूदा ज़माने के वेद भाष्य कार को प्रेम, प्रतिष्ठा और शुक्रगुज़ारी के भाव के साथ याद रखेगा। (नवजीवन बनारस सितम्बर 1912 ई0)
मज़कूरा बाला मज़मून को पढ़कर जो कि एक क़िस्म की ख़ुश एतक़ादी का नतीजा है। कोई भी दयानतदार दरहक़ीक़त शनास शख़्स अफ़सोस किये बगै़र नहीं रह सकता मज़मून निगार इस बात को अपनी ज़िन्दगी का एक लाज़मी जुज़ू क़रार देता है वह इस ईमान को जो कि दरिया के किनारे की रेत पर क़ायम है, घास के तिनकों के बन्द बाँधकर सहारा देने का तालिब हो और वह इस बात पर रज़ामन्द नहीं है कि अपने ईमान की बुनियाद को रेत पर से हटाकर चट्टान पर क़ायम करे। अगर वह इस बात को तसलीम कर ले कि वेद ख़ुदा का कलाम नहीं है बल्कि वह हमारे प्राचीन आबाव अजदाद के ख़्यालात का मजमूअ़ा है जिनमे से बअज़ ख़्यालात बहुत अच्छे हैं और बअज़ बिल्कुल नाक़िस और वहशियाना हैं तो इसके ईमान की बुनियाद हमेशा के लिये एक चट्टान पर रखी जा सकती है मगर चूँकि इसका ईमान ये है कि वेद ख़ुदा का कलाम है। इसलिये जब इसके सामने कोई ऐसी बात वेद में निकलती है जो ख़ुदा की ज़ात पर बदनुमा धब्बा हो तो वह अंधेरे में इधर उधर हाथ पाँव मारता और सहारा ढूँढता है। ताकि इसका ईमान डगमगा न जाये ये एक सख़्त क़ाबिले रहम और तरसनाक हालत है। इससे भी बढ़कर हंसी की बात ये है कि स्वामी दयानन्द का भाष्य डगमगाते हुए ईमान को सहारा देता है। मैं कह सकता हूँ कि स्वामी दयानन्द के भाषीय का कमाहिक़ा मुतालेअ़ करने से पेशतर वेदों पर मेरा ईमान बड़ा मज़बूत था। लेकिन जिस वक्त मुझे स्वामी दयानन्द के भाषीय का तर्जुमा करना पड़ा और इसके लफ़ज़ लफ़ज़ को अपने क़लम में से गुज़ारना पड़ा तो वेदों के ख़ुदा का कलाम होने पर मेरा जो विश्वास था वह काफूर हो गया। ये शायद मुबालेग़ा नहीं होगा अगर मैं ये कहूँ कि स्वामी दयानन्द के वेद भाषीय को बग़ैर पढ़कर कोई भी दयानतदार शख़्स वेदों को ख़ुदा का कलाम नहीं मान सकेगा। तावक्तेकि वह रियाकारी से काम न ले नामानिगार मज़कूर का ये ख़्याल कि दुनिया की मौजूदा अशान्ति इसी वक्त दूर होगी जबकि वेद भगवान का प्रकाश दुनिया के कोने काने मे पहुँच जायेगा एक ऐसा ख़्याल है कि जिसको बेबुनियाद साबित करने के लिये कुछ ज़्यादा दूर जाने की ज़रूरत नहीं है। क्योंकि इस क़िस्म के ख़्याल की तरदीद मैं ऊपर बयान कर चुका हूँ वह लोग जो दिल के मज़बूत और सच्चाई के तालिब नहीं हैं जो इस उसूल को नहीं मानते कि सच्चाई को क़बूल करना चाहिये और झूठ को छोड़ देना चाहिये, जब उनको स्वामी दयानन्द के वेद भाष्य में ऐसी बातों का पता लगता है जिनसे कि उनके ईमान को लग़ज़िश होती हो तो वह अपने ईमान की बोसीदगी पर ग़ौर नहीं करते बल्कि वह स्वामी दयानन्द पर ये फ़तवे देते हुए सुने जाते हैं कि स्वामी दयानन्द मोटी अक़्ल का आदमी था और कि वह दरअसल वेदों को नहीं समझा था। ये ख़्याल मुहकिक़क़ लोगों का ख़्याल नहीं है बल्कि ऐसे लोगों का ख़्याल है जो वेद को मुल्की नसली और पैदाईशी जज़्बात की बिना पर इसी तरह गोद से लगाये रखना चाहते हैं जिस तरह कि मामता की मारी हुई माँ अपने मुर्दा बच्चे को अपनी छाती से अलग करने के लिये तैयार नहीं होती ख़्वाह इसको ये भी मालूम हो जाये कि बच्चा मर चुका है वह लोग जो ऐसी मामता का शिकार हो चुके हैं वह इस बात पर रज़ामंद हैं कि स्वामी दयानन्द को मोटी बुद्धि का आदमी बतायें लेकिन वह इस बात के लिए मुतलक़ तैयार नहीं होंगे कि वेदों के कलामे इलाही होने में शक करें मिस्टर ह्यूम स्पेन्सर के अल्फ़ाज़ में पैदाईशी या नस्ली तअस्सुब की ये एक उम्दा मिसाल है और इसमें वह जज़्बात भी शामिल हैं जो कि पुरोहितों की ग़्ाुलामी की वजह से पैदा हुए हैं। मिस्टर हरबर्ट के अल्फ़ाज़ में वेदों की कुंजी हमेशा पुरोहितों के हाथ में रही और उन्होंने इस बात को कभी गवारा नहीं किया कि इस क़िफ़ल को उनके सिवाये कोई दूसरा शख़्स हाथ लगा सके पुरोहित क्लास ने अवामुन्नास को अपनी ग़्ाुलामी की ज़ंजीरों में जकड़ने के लिये इस ढकोसले को हमेशा बतौर हथियार के इस्तेमाल किया कि वेद एक ऐसी किताब है जिसको कि ख़ुदा बोलता है और कि वेद को पढ़ने का इस्तहक़ाक़ सिवाये उनके किसी दूसरे को नहीं स्वामी दयानन्द ने बड़ी जुरअत और दिलेरी से इस क़िफ़ल पर हाथ डाला और इसको तोड़ कर रख दिया। स्वामी दयानन्द की ये दिलेरी बनी नूए इन्सान के शुक्रिया की मुस्तहिक़ है। मगर स्वामी दयानन्द के बाद नयी पुरोहित क्लास पैदा हुई। इसने वेदों के साथ स्वामी दयानन्द के भाष्य को भी अज़सरे नौ क़िफ़ल लगा दिया और ये ढकोंसला घड़ा कि स्वामी दयानन्द के भाष्य को समझने के लिये भी वेद, वेदांग, दर्शन शास्त्र, दुनिया की पुरानी ज़बानें, मग़रिबी फ़लसफ़े और साईन्स तमाम तवारीख़ वग़ैरह पढ़ने की ज़रूरत है। स्वामी दयानन्द के भाष्य को समझने के लिये उन्होंने इसी क़िस्म की दूसरी शराईत भी पेश कीं जिनका मतलब सिवाये उसके कुछ नहीं था कि न नौ मन तेल हो न राधा नाचे, इसी तरह वेद बदस्तूर साबिक़ अंधे ईमान की चीज़ बने रहे इसमें शक नहीं कि अगर स्वामी दयानन्द के वेद भाषीय का दुनिया की आम फ़ह ज़बानों में तर्जुमा हो जाये, तो ये इस अंधे ऐतक़ाद को उड़ाने के लिये कि वेद ख़ुदा का कलाम है बड़ा ज़बरदस्त ज़रिया साबित होगा। उस अन्धे ऐतक़ाद का ही नतीजा था कि वुस्ता ज़माने में हिन्दुस्तान में जिस क़द्र बुरे से बुरे फ़िरके़ पैदा हुए उन्होंने अपनी बदअख़्लाक़ी की बुनियाद वेद के ही किसी न किसी मंतर पर क़ायम की थी जिसका कि वह अपनी मर्ज़ी के मुताबिक़ तर्जुमा करते थे और जिन लेागों ने बुद्धों को महज़ इस बिना पर तबाह किया था कि वह वेदों से मुनकिर थे उन्होंने भी अपने इस क़िस्म के फ़तवों के लिये वेदों को ही बतौर हथियार के इस्तेमाल किया। स्वामी दयानन्द ने अगरचे पुरानी तफ़ासीर को वाम मार्गियों की तफ़ासीर कहकर रद किया है। लेकिन ख़ुद स्वामी दयानन्द ने वेदों को जिस शक्ल मे पेश किया है वह सख़्त ख़तरनाक है गो मौजूदा हालात हैं इसका ख़तरा चन्दाँ महसूस न किया जाता हो लेकिन अगर ये तालीम ऐसी क़ौम के हाथ में आ जाये जो कि बरसरे हुकूमत हो या इस तालीम को मानने वाली क़ौम बरसरे हुकूमत हो जाये तो इस वक़्त स्वामी दयानन्द का भाषीय दो धारी तल्वार का काम देगा क्यांेकि इसमें उन लोगों के क़त्ल के लिये काफ़ी से ज़्यादा फ़तवे मौजूद हैं जो कि वेदोंके मानने वालों के दुशमन हों या जिनको वेदों के मानने वाले अपना दुशमन समझते हों यहाँ तक कि ऐसे दुशमनाने धर्म को उलटा करके ज़िन्दा आग में जलाने शेरों से फड़वाने और दरिन्दों से चरवाने की सज़ा तजवीज़ की गयी है जैसा कि मैं पीछे दिखा चुका हूँ। इस ख़तरे की शिद्दत और भी दोबाला हो जाती है जबकि इस बात पर ग़ौर किया जाता है कि वेदों के मंत्र एक ऐसी ज़बान में हैं जिसको वेद को ख़ुदा का कलाम मानने वाले ‘‘यौगिक’’ कहते हैं। अगर मुझे यौगिक के लिये उर्दू का कोई आम फ़हम लफ़ज़ इस्तेमाल करना हो तो मैं इसके लिये ‘‘मोम की नाक’’ का लफ़ज़ इस्तेमाल करूँगा। मिस्टर ह्यूम के अल्फ़ाज़ में इबारत की इस पैचीदगी की चाबी हमेशा पुरोहित के हाथ में रहती है और पुरोहित का इख़्तियार है कि वह इस मोम की नाक को जिस तरफ़ चाहे फेर दे स्वामी दयानन्द ने ऋग्वेद आदि भाष्य भूमिका में इस बात पर जो बहस की है वह एक दिलचस्प मुतालेअ़ा है जब महीधर एक मंत्र पर से पर्दा उठाता है तो वह हमारे सामने एक निहायत ही फ़हश नज़ारा पेश करता है। जब इसी मंत्र पर से साइन आचारज पर्दा उठाता है तो वह कुछ और ही दिखाता है जब इसी मंत्र पर से स्वामी दयानन्द पर्दा उठाता है तो वह कुछ और ही नज़ारा पेश करता है हक़ व हक़ानियत का मितलाशी जब एक ही मंतर को मुख़्तलिफ़ पुरोहितों के हाथ में छलावे की तरह रंग बदलता हुआ देखता है तो वह इस नतीजे पर पहुँचने के बगै़र नहीं रहता कि ये महज़ भानुमति का सा तमाशा है जिसमें कि खेलने वाले अपने हाथ की चालाकी से एक ही गोली के मुख़्तलिफ़ रंग बदल कर दिखा रहे हों। पुरोहित लोग वेद मंतर की इस बूक़ल्मूनी को इबारत के ‘‘यौगिक’’ होने की तरफ़ मनसूब करते हैं लेकिन अगर बग़ौर देखा जाये तो कहना पड़ता है कि ये एक ऐसी बात है जो वेद मंतरों के सख़्त धोखे देह और सख़्त नाक़ाबिले ऐतबार होने पर दलील है और कि ऐसी किताब पर जो छलावे की तरह रंग बदल सकती हो अपने ईमान की बुनियाद रखना या उसको ख़ुदा का कलाम मानना सख़्त मुज़िर और ख़तरनाक खेल है। स्वामी दयानन्द ने इस हर वक़्त लर्ज़ा रहने वाली छत को अपने वेद भाष्य के ज़रिये थोनियों और बल्लियों से क़ायम करने की कोशिश की है। लेकिन बअज़ मुक़ामात पर स्वामी दयानन्द ने भी वेद मंतरों के इस नंग को ढाँपने में जो कि दरहक़ीक़त वहाँ पर मौजूद है अपने आप को बेदस्त व पा पाया है इसकी कुछ मिसालें ऊपर दी जा चुकी हैं। यहाँ पर चन्द मिसालें और पेश करता हूँ यजुर्वेद का चौबीसवाँ अध्याय स्वामी दयानन्द के अल्फ़ाज़ में यूँ है।
चौबीसवाँ अध्याय
मंत्र 1 -
तेज़ रफ़तार घोड़े, मारख़ोर बकरे, नील गाय का देवता सूरज है। काली गर्दन वाले पशु का देवता अग्नि है। दाग़दार पैशानी वाली भेड़ का देवता सरस्वती है, नीची गर्दन करके, तिर्छी टाँगें करके चलने वाले पुशओं का देवता अश्वनी है सोम और पूशन है काले रंग वाले तन्दख़ू बायें और दायें तरफ़ सफ़ेद धारियों वाले या बिल्कुल सियाह धारियों वाले पशुओं का देवता यम है पाँव जोड़ों के पास बहुत से बाल रखने वाले पशुओं का देवता तूशटा है जिसकी दुम पर सफ़ेद दाग़ हों इस पशु का देवता दायू है। बगै़र बहार आये के साँडे जुफ़ती करके हमल असक़ात करने वाली गाय का और छोटे क़द और टेढ़े तिरछे आज़ाओं वाले पशु का देवता विष्णु है। इन तमाम पशुओं को अच्छे कर्म करने वाले इन्सान की जाहो हशमत के लिये कमाहिक़ा काम में लाना चाहिये।
मंत्र 2 -
सुर्ख़ और सुर्ख़ी माइल सियाह रंग वाले और बेर की मानिन्द अरग़वानी रंग वाले पशुओं का देवता सोम है। नेवले की मानिन्द ख़ाकी रंग वाले या तोते की मानिन्द हरे रंग वाले पशुओं का देवता वरूण है। जौड़ों पर सफ़ेद दाग़ों वाले, सारे जिस्म पर सफ़ेद छींटों वाले और कहीं सफ़ेद दाग़ों वाले पशुओं का देवता ब्रहस्पति है जिनके तमाम जिस्म पर छींट की मानिन्द दाग़ हों जिनके रंग बिरंग के दाग़ हों जिनके मोटे मोटे दाग़ हों उन सब पशुओं का देवता मित्र और वरूण है।
मंत्र 3 -
ख़ूबसूरत बालों वाले, बिल्कुल पाक व साफ़ बालों वाले, चमकदार बालों वाले पशुओं का देवता सूरज और चाँद है। सफ़ेद रंग वाले, सफ़ेद आँखों वाले सुखर रंग वाले पशुओं का देवता पशुपति रूद्र है। जिनसे काम लिया जाता है ऐसे पशुओं का देवता वायु है। मोटे जिस्म वालों का देवता प्राण वायु है। आसमानी रंग वाले पशुओं का देवता मेघ है।
मंत्र 4 -
पूछने के लायक़ दायें बायें नीचे ऊपर से आहट पाकर चौंकन्ने हो जाने वाले पशुओं का देवता वायु है। फलों को खाने वाले, लाल परों वाले चंचल आँखों वाले पशुओं का देवता सरस्वती है जिसके कान पर इंजीर की तरह के दाग़ हों जिसके कान सूखे हुए हों जिसके कान सुनहरी रंग के हों, ऐसे तमाम पशुओं का देवता तुष्टा है। काली गर्दन वाले सफ़ेद जोड़ों वाले, मोटी टाँगों वाले, पशुओं का देवता पोल और बिजली है। मसताना चाल वाले, आहिस्ता आहिस्ता चलने वाले तेज़ चलने वाले पशुओं का देवता औशाम है।
मंत्र 5 -
तमाम सनअ़त व हरफ़त में काम आने वाली ख़ूबसूरत भेड़ों का देवता दशोये देव है। नीची आवाज़ वाली ऊँची आवाज़ वाली और मध्यम आवाज़ वाली तीनों क़िस्म की भेड़ों का देवता आदनी (पृथ्वी) है। नामालूम भेड़ और धारण करने के लायक़ एक ही रंग वाली छोटी छोटी बछड़ियाँ विद्वानों की स्त्रियों के लिये जाननी चाहियें।
मंत्र 6 -
अकड़ी हुई गर्दन वाले पशुओं का देवता रूद्र है। मुफ़ीद रंग वाले और आगे से टक्कर मारने वाले पशुओं का देवता आदित्य है। आबनी रंग वाले पशुओं का देवता मेघ है।
मंत्र 7 -
बुलन्द क़द ख़ूबसूरत और छोटे क़द वाले पशुओं का देवता बिजली और पून है। ऊँचे क़द वाले शेहज़ारे और बारीक पीठ वाले पशुओं का देवता सूरज और वायु है। तोते के रंग वाले तेज़ रफ़तार चितकबरे पशुओं का देवता मारूत है, काले रंग वाले पशुओं का देवता पूशन (मेघ) है।
मंत्र 8 -
मज़कूरा बाला दो रंगों वाले पशुओं का देवता वायु और बिजली है। छोटे क़द वाले बेलों का देवता सोम और अग्नि है। बांझ गाय का देवता मित्र और वरूण है इधर उधर से हाथ लगी हुई गाय का देवता मित्र है।
मंत्र 9 -
काले रंग वालों का देवता अग्नि है। नेवले के रंग वाले पशुओं का देवता सोम है। सफ़ेद रंग वाले पशुओं का देवता वायु है। जिन पर कोई ख़ास निशान न हो उनका देवता अदिति है। जिनका सिर्फ़ एक ही रंग हो उनका देवता पवन है। छोटे बछड़े और बछड़ियों का सूरज वग़ैरह की किरणों से काम लेने वाला जानना चाहिये।
मंत्र 10 -
काले रंग वाले पशु का देवता भूमि है। धुयें के रंग वालों का देवता अंतरिक्ष है। अच्छी आदतों वाले, पढ़ने वाले सफे़दी माइल पशुओं का देवता बिजली है। जो मंगल कारी पशु हैं वह दुख से पार उतारने वाले हैं।
मंत्र 11 -
मौसम बसन्त में धुऐं के रंग वाले मौसम गर्म में सफ़ेद रंग वाले मौसम बरसात में काले रंग वाले, मौसम सर्मा में लाल रंग वाले, बर्फ़ के मौसम में मोटे ताज़े और निकलती सर्दी में ज़र्दी माइल सुर्ख़ रंग वाले पदार्थों को हासिल करना चाहिये।
मंत्र 12 -
तीन भेड़ों वाले गायत्री के लिये पाँच भेड़ों वाले त्रिअष्टप अर्थात् जिस्म मन और आत्मा के लिये विनाश न होने वाली और संसार में सुख को देने वाली क्रिया करें जिनके तीन बछड़ें हों वह अनोष्टप अर्थात पीछे से जो क्रिया की जाती है उसको रोकने के लिये तीन करें और जो अपने पशुओं से ज़िन्दगी की चौथी मंज़िल को हासिल करने वाले हैं वह वही काम करें जिनसे कि आनन्द बढ़े।
मंत्र 13 -
जो इन्सान वार्ट छन्द के ला दो जानवरों को, ब्रहमी छन्द के लिये साँड को, ककूप छन्द के लिये दूध देने वाली गाय को स्वीकार करते हैं वह सुख को हासिल करते हैं।
मंत्र 14 -
काली गर्दन वाले पशुओं का देवता अग्नि है, सबका धारण पोषण करने वाले पशुओं का देवता सोम है। नीची गर्दन करके चलने वाले पशुओं का देवता सादता है। छोटी छोटी बछड़ियों का देवता सरस्वती है। काले रंग वालों का देवता पोषण है। जो पूछने के क़ाबिल हैं उनका देवता मारूत (मनुष) है जो बहुत से रंगों वाले हैं उनका देवता दुशवाये देवा तमाम विद्वान हैं जो ख़ूब चमकदार हैं उनका आकाश और पृथ्वी है।
मंत्र 15 -
मज़कूरा बाला अच्छी तरह चलने वाले पशुओं का देवता इन्द्र और रागनी है जो ज़मीन जोतनेवाले हैं उनका देवता वरूण है। जो इन्सान की तरह मुख़्तलिफ़ अक़साम व निशान वाले और ईज़ा रसाँ पशु हैं उनका देवता प्रजापति है।
मंत्र 16 -
इन सब जानवरों का देवता वायु और बिजली है। अच्छे सींग वालों का देवता महेन्द्र है। मुख़्तलिफ़ रंग वाले पशुओं का देवता विश्वकर्मा है। सब को अच्छे साफ़ सुथरे रास्तों में आना जाना चाहिये।
मंत्र 17 -
शान्ति स्वभाव पैदा करने वाले, माता पिता के लिये नेवले की मानिन्द ख़ाकी रंग वाले और सभा में बैठने वाले बुज़्ाुर्गों के लिये काले रंग वाले और धुऐं के रंग वाले और ताक़त देने वाले जिन्होंने अग्नि विद्या ग्रहण की है। उन बुज़्ाुर्गों के लिये काले रंग वाले और ख़ूब मोटे ताज़े तीन क़िस्म के निशान वाले पशु हैं।
मंत्र 18 -
ऐ इन्सानो! तुम को जो शोना सेर देवता वाले, खेती करने वाले, आने जाने वाले, हवा की मानिन्द गुण रखने वाले रंग वाले, सूरज की मानिन्द प्रकाशमान, सफ़ेद रंग वाले पशु बताये हैं, उनको अपने कारोबार में लाओ।
मंत्र 19 -
जानवरों को जानने वाला मौसम बसन्त के लिये टटीरी, मौसम गर्मा के लिये चिड़ियों, मौसम बरसात के लिये तीतरों, मौसम सर्मा के लिये बत्तख़ों, बर्फ़ के मौसम के लिये कीकर नाम के जानवरों और निकलती सर्दी के लिये बकर नाम के जानवरों को भली प्रकार हासिल करता है।
मंत्र 20 -
जिस तरह समन्दर जानवरों को जानने वाला अपने बच्चों को मारने वाले शिशुमार जानवरों को और मेख के लिये मेंढकों को पानी के लिय मछलियों को और कलीप के नाम के जानवरों को सूरज के लिये और मगरमच्छ और घड़ियाल को वरूण देवता के लिये हासिल करता है। इसी तरह तुम भी हासिल करो।
मंत्र 21 -
ऐ इन्सानो! जिस तरह जानवरों के गुणों को ज्ञान रखने वाला मनुष चाँद या सोम के लिये हन्स को हवा के लिये, बगुलों को इन्द्र और रागनी के लिये, सारसों को मित्र के लिये, जल काग को वरूण के लिये, चकवे चकवी को भली प्रकार हासिल करता है, इसी तरह तुम भी करो।
मंत्र 22 -
ऐ इन्सानो! जिस तरह जानवरों के गुणों को जानने वाला मनुष आग के लिये मुर्ग़ों को बगै़र फूल के दरख़्तों के लिये आतुओं को रागनी और साम के लिये नीलकंठ को सूरज और चाँद के लिये मोरों को, मित्र और दो दिन के लिये कबूतरों को अच्छी तरह हासिल करता है इसी तरह तुम भी करो।
मंत्र 23 -
ऐ इन्सानो! जिस तरह जानवरों का काम जानने वाला मनुष्य जाहो हशमत के लिये बटेरों को प्रकाश के लिय कालक नाम जानवर को, विद्वानों की स्त्रियों के लिये गौओं को मारने वाले जानवरों और विद्वानों की बहनों के लिये कोलेक नाम के जानवरों और आग की मानिन्द वर्तमान और घर वालों की परवरिश करने के लिये राशन पक्षनों को हासिल करता है, उसी तरह तुम भी करो।
मंत्र 24 -
ऐ इन्सानो! जिस तरह वक़्त का जानने वाला दिन के लिये नर्म और आवाज़ निकालने वाले कबूतरों, रात के लिए सीचापू नाम जानवरों, दिन रात के मिलने के दोनों वक़्तों के लिये जतू नाम के जानवरों, महीनों के लिये काले कौओं और साल के लिये बड़े ख़ूबसूरत परों वाले पक्षियों को अच्छी तरह हासिल करता है इसी तरह तुम भी करो।
मंत्र 25 -
ऐ इन्सानो! जिस तरह भूमि के जानवरों के गुण जानने वाला पुरूष ज़मीन के लिये चूहों, अंतरिक्ष के लिए एक क़तार के उड़ने वाले पक्षियों प्रकाश के नाम के जानवरों, पूरब वग़ैहर दिशाओं के लिये नेवलों और कोनों की दिशाओं के भूरे रंग के नेवलों को भली प्रकार हासिल करता है, उसी तरह तुम भी करो।
मंत्र 26 -
ऐ इन्सानो! जिस तरह पशुओं के गुण को जानने वाला अग्नि वगै़रह के लिये रश जानी के हिरणों, प्राण वगै़रह रोरों के लिये रूजा नामी पशुओं बारह महीनों के लिये नेंगों नाम के पशुओं, तमाम विद्वानों के लिये पृष्ट जाती के हिरनों और सधी को हासिल करने वाले विद्वानों के लिए कलंकों को अच्छी तरह हासिल करता है, उसी तरह तुम भ्ी करो।
मंत्र 27 -
ऐ राजा! जो इन्सान साहबे कुदरत के लिये और आप के लिय प्रशिष्ट नामी हिरन को सतर के लिये सफ़ेद रंग के हिरनों को वरूण के लिय भेंसों को ब्रहस्पति के लिय, नील गाय को और तूष्टा के लिये ऊँटों को भली प्रकार हासिल करता है, वह माला माल होता है।
मंत्र 28 -
जो इन्सान प्रजा पाने वाले राजा के लिये पुरूषों और हाथियों को बानी के लिय पलशी नाम के जीवन आँख के लिये मुशकान नामी जन्तुओं का उनके भँवरों को हासिल करता है वह मज़बूत हिसों वाला होता है।
मंत्र 29 -
प्रजा की पालना करने वाले और इसके सम्बन्धियों के लिये वायु और वायु से सम्बन्ध रखने वाले पद्धार्थों के लिये नील गाय, वरूण देवता के लिय जंगल का मेंढा, इन्साफ़ करने वाले के लिये काला हिरन, राजा के लिए शर के लिये बन्द और लाल हिरन श्रेष्ठ इन्सान के लिये नील गाय, बाज़ के लिय बत्तख़, नीले रंग के छोटे कीड़े के लिए छोटा, कीड़ा, बालकों को मारने, वाले शिशुमार समन्दर देवता के लिये और सरबफ़लक पहाड़ों के लिय हाथी बनाया गया है।
मंत्र 30 -
क़ाबिले नफ़रत इन्सान का देवता प्रजापति है। छोटे कीड़े शेर और बिल्ली धारण करने वाले के लिये हैं। आकाशा में उड़ने वाली सफ़ेद चील, धंकश जानवर का देवता अग्नि है। चड़ूटा क़िस्म की चिड़ियों, लाल साँप जो कि तालाब में रहता है, उनका देवता तूष्टा है। और सारस बानी के लिए जानना चाहिये।
मंत्र 31 -
कलिंग, जंगली बकरा, नेवला, इन सबका देवता सोम है, ख़ास ताक़त रखने वाले पशुओं का देवता पोषण है। ख़ास और आम गीदड़ जाहो हशमत वाले पुरूष के लिए गोरा हिरन, ख़ास क़िस्म का हिरन या किसी दूसरी क़िस्म का हिरन और ककट नाम का हिरन और चकूमी अगर उनवासी के लिये या सने पीछे सनाने वाले के लिय कमत किये जायें तो बहुत काम करने क़ाबिल हों।
मंत्र 32 -
बगुली का देवता सूरज है, पपीहे, सरज, शयांडक, जानवरों का देवता मित्र है, तोती और तोते का देवता सरस्वती है। ख़रगोशनी का देवता भूमि है। शरे का भेड़िया या साँप सबके सब ग़्ाुस्से वाले हैं। शुद्धि करने वाला शिवा जानवर और इन्सान की तरह बोलने वाले जानवर का देवता समन्दर है।
मंत्र 33 -
ख़ूबसूरत परों वाले जानवर का देवता मेघ है। अज़्दहा, कठफोड़े का देवता वायु है। पंज राज नामी जानवर बड़े बड़े पदार्थों और कलाम की हिफ़ाज़त करने वाले के लिये हैं अलज नाम के जानवर का देवता अंतरिक्ष है। बत्तख़ जल काग मछली वग़ैरह का देवता समन्दर है। कछवे का देवता प्रकाश और भूमि है।
मंत्र 34 -
पुर्ष मुर्ग का देवता चाँद है। गोह और सारस दरख़्तों से तअल्लुक़ रख्ने वाला कठफोड़ा मुर्गा़ वग़ैरह का देवता सावता है। हंस का देवता वायु है। मगरमच्छ के बच्चे और मगरमच्छ और दीगर आबी जानवरों का देवता समन्दर है। ख़रगोशनी लजा के लिये जाननी चाहिये।
मंत्र 35 -
हिरनी दिन के लिए, मेंढक, चूहा, तीतरी, साँपों के लिये जंगल के लोपाश नामी जानवरों का देवता अश्व है। काले रंग का हिरन रात के लिये है। रीछ और जतू नाम का पुश्वा और शोशीलका पक्षी वे सब इन्सानों के लिये अंगों के सुकेड़ने वाला जानवर विष्णु देवता के लिये।
मंत्र 36 -
कोकिला पक्षी पन्द्रहवाड़ों के लिय रश जाती का हिरन और ख़ूबसूरत परों वाला मोर को देवता गंधरू है। आबी जानवरों का देवता जल है। कछवे मुर्ग कंुडर नाची और गोतिनका जंगली पशुओं का देवता सूरज है। काले रंग के पशुओं को मरीतों के लिये जानना चाहिये।
मंत्र 37 -
बारिश को बुलाने के वाली मेंढकी मौसम बसन्त के लिये चोमिया है। कश नाम का पशु और मांथाल नामी पशु पालना करने वालों के लिये हैं, बिल के लिय बड़ा साँप है, टटीरी, कबूतर, उल्लू, ख़रगोश, जंगली मेंढा, दरों देवता के लिय जानना चाहिये।
मंत्र 38 -
ख़ूबसूरत परों वाले जानवरों को मौसमों के बतलाने के लिये ऊँट और दीगर ज़ोरआवर पशु, लटकन वाला बकरा सबके सब बुद्धि के लिये जानने चाहियें नील गाय, जंगल के ख़ास हिरन, रूद्रदेवता वाले हैं। कोई नाम का जानवर, मुर्ग़ा कव्वा, घोड़ों के लिये और कोकिला भली प्रकार काम लेने के लिय जानना चाहिये।
मंत्र 39 -
आपिये और तेज़ सींगों वाला गेंडा, तमाम विद्वानों के लिये काले रंग का कुत्ता, बड़े कानों वाला गधा, और सियाह गोश सब के सब दुष्टों के लिये सूर राजा के लिये शेर मारूत देवता के लिये गिरगिट पपीहा, और दीगर जानवर चाँद मारी करने वालों के लिये और पृष्ट की क़िस्म के हिरन विद्वानों के लिये जानना चाहियें।’’
यजुर्वेद का ये तमाम अध्याय एक अजीब क़िस्म की चैस्तान है। कोई नहीं कह सकता कि पुरोहित के हाथ में पड़कर ये दोधारी तलवार किस तरफ़ चल सकती है। ख़ुद स्वामी दयानन्द भी इस पर कोई रोशनी नहीं डालना चाहता, या नहीं डाल सका। वह सिर्फ़ इतना ही कह कर चुप हो जाता है कि इस पृकरन में देवता पद से इस पद के गुण पोग से पशु जानने चाहियें। स्वामी दयानन्द का ये क़ौल भी बज़ाते ख़ुद एक चैस्तान है। अगर पुराने मुफ़स्सिरीन में से किसी मुफ़स्सिर की बात पर ऐतबार किया जाये तो वह हमें इस का फ़ौरी हल ये बतायेगा कि इस अध्याय में मुख़्तलिफ़ देवताओं के नाम पर हैवानों के ज़िबह करने की तालीम है। स्वामी दयानन्द ने भी अपनी इबतदाई तसानीफ़ में इस हल की ताईद की है। अगर इस हल को सही न माना जाये तो इस अध्याय का एक एक मंतर मतलाशी हक़ के सामने दर्जनों ऐतराज़ पैदा करने का मोजब होता है। जिसका तसल्ली बख़्श जवाब न तो स्वामी दयानन्द दे सकता है न कोई दूसर मुफ़स्सिर मसलन् अध्याय के पहले ही मंतर में मुख़्तलिफ़ देवताओं की तरफ़ मुख़्तलिफ़ रंग के पशुओं को मनसूब किया गया है। और ऐसी गाय को जो हामला होने की सूरत में साँड से हफ़ती करके हमल असक़ात करवा देती हो, इसको विष्णु देवता के सुपुर्द किया गया है।
अब सवाल पैदा होता है कि ऐसी गाय को विष्णु के सुपुर्द क्यों किया गया। क्या विष्णु देवता इसको धर्म का उपदेश करेगा कि तू आइन्दा ऐसा फ़अ़ल मत करना या विष्णु देवता इसको कोई सज़ा देगा। या इससे क्या सुलूक करेगा ग़र्ज़ ये कि इस क़िस्म के बीसियों सवाल पैदा होत हैं जिन को कोई तसल्ली बख़्श जवाब स्वामी दयानन्द के भाष्य में नहीं मिल सकता। लेकिन जिस वक़्त स्वामी दयानन्द की इब्तदाई तसानीफ़ पर नज़र डाली जाती है तो हमें इस का हल दो टूक मिल जाता है चुनांचे स्वामी दयानन्द ने सत्यार्थ प्रकाश मतबूआ बनारस 1875 ई0 के दसवें समुल्लास में ऐसी गाय को यज्ञ में कुर्बानी कर देने की तालीम दी है और वह इसकी ताईद में ब्रहमन ग्रन्थों का हवाला भी देते हैं। ये तो स्वामी दयानन्द का ख़्याल है लेकिन जब हम दूसरी स्मृतियों और शास्त्रों को तलाश करते हैं तो वहाँ से भी हमें इस बात के हक़ में शहादत मिलती है। मसलन् मनु स्मृति के पाँचवें अध्याय में साफ़ अल्फ़ाज़ में लिखा है कि देवताओं के नाम से यज्ञ में फ़लां फलां हैवान को ज़िबह करना चाहिये। इन परिन्दों और चरिन्दों की वहाँ पर यजुर्वेद के मज़कूरा बाला अध्याय की तरह एक बहुत लम्बी चौड़ी फ़हरिस्त दी गयी है और लुत्फ़ की बात ये है कि इस फ़हरिस्त में कसरत से वही जानवर बतलाये गये हैं जो कि मज़कूरा बाला अध्याय में बताये गये हैं। उनमें गाय बेल वगै़रह का मारना भी शामिल है और इसको सवाब का बाइस बताया गया है। अला हाज़ल क़यास व्यास संहिता, विशिष्ट संहिता, विष्णु संहिता में भी यज्ञ के लिये परिन्दों और चरिन्दों का मारना लिखा है। ख़ुद ब्रहदार नेक उपनिषद अध्याय 8 ब्रहमन 4 मंतर 18 में लिखा है कि जो पुरूष ये चाहे कि मेरा पुत्र पंडित प्रख्यात, प्रगल्भ, सुन्दर अर्थ वाली का बोलने वाला चारों वेदों का वक्ता सम्पूर्ण आयु का भोगने वाला हो, वह पुरूष जवान बेल, अथवा इससे कुछ ज़्यादा उम्र वाले बेल का माँस चावलों के साथ पकाकर इसमे घी डालकर अपनी औरत के साथ खाये। स्वामी दयानन्द ने भी अपनी तसनीफ़ संस्कार विधि में इसको बतौर सनद के पेश किया है। अलावा अज़ीं यजुर्वेद के इक्कीसवें अध्याय के उन्तीसवें मंतर का भाष्य करते हुए, स्वामी दयानन्द ने यज्ञ के लिए हंसा को ज़रूरी समझा है और काले रंग के मेंढे वग़ैरह जानवरो को यज्ञ की सामग्री के लिये लाज़मी जुज़्ा क़रार दिया है। और इस बात के बताने की तो चन्दाँ ज़रूरत ही नहीं है कि स्वामी दयानन्द ने सत्यार्थ प्रकाश मतबूआ बनारस 1875 ई0 में नरमीदा और गौमीदा यज्ञ में बेल वग़ैरह नर जानवरों को मारने की तालीम अज़रूए ब्रहमन ग्रन्थ वग़ैरह दी है। इन बातो के पेश करने से मेरा मतलब इस बात पर बहस करना नहीं है कि जानवरों का देवताओं के नाम पर मारना पाप है या पुण्य। बल्कि इस बात पर बहस करना है कि यजुर्वेद के चौबीसवें अध्याय में जो मुख़्तलिफ़ देवताओं के नाम के साथ मुख़्तलिफ़ जानवर लगाये गये हैं, उनका हल सिवाये इसके और कुछ नहंी हो सकता कि इन देवताओं के नाम पर इन जानवरों को फ़लां फ़लां क़िस्म के मर्द व औरत ज़िबह करें। स्वामी दयानन्द अगरचे अपनी पहली किताब सत्यार्थ प्रकाश मतबूआ बनारस 1875 ई0 में इस बात की ताईद कर चुका है और साफ़ अल्फ़ाज़ में लिख चुका है कि यज्ञ में बेल गाय और दीगर जानवरों का ज़िबह करना कोई पाप की बात नहीं है। वह अपने इस ख़्याल की ताईद में पुराने शास्त्रों के हवाले जात और अपनी दलाईल भी पेश करता है। और इसने कहीं भी इस बात का ऐलान नहीं किया कि यज्ञ में गाय बेल वग़ैरह ज़िबह करने की जो इबारत सत्यार्थ प्रकाश 1875 ई0 में दर्ज है वह इसकी नहीं है बल्कि वह इसको दुरूस्त तसलीम करते हुए सिर्फ़ इस बात का ऐलान करता है कि इस किताब मे जो मुर्दों का श्राद्ध लिखा है उसकी बजाये जिन्दों का श्राद्ध समझना चाहिये। और बस चुनांचे इस तमाम मामले में मुफ़स्सल बहस कर चुका हूँ जिस शख़्स को देखना मनज़्ाूर हो वह इस सत्यार्थ प्रकाश के जवाब को जो मैंने उर्दू में शाये कर दिया है पढ़कर अपनी तसल्ली कर सकता है। मगर बावजूद ये कि स्वामी दयानन्द के ऐसे ख़्यालात थे लेकिन जब इसको यजुर्वेद के चौबीसवें अध्याय से वास्ता पड़ा तो इसको एक ऐसा वसीअ छेद नज़र आया जिसको देखने के साथ ही वह बक़ौल
तन हमा दाग़ दाग़ शद पनबा कजा कजा नहम
इस मोर्चे को बन्द करने या इसके बन्द करने की कोई तजवीज़ समझाने के बगै़र ही आगे निकल गया अगर वह ऐसा न करता तो इसको सख़्त मुश्किल का सामना करना पड़ता क्यों बोद्ध और जैनी पहले से ही शोर मचा रहे थे कि वेदों में जानवरों की कुर्बानी की तालीम है। इधर बुद्धों और जैनियो के ज़बरदस्त प्रचार की बदौलत आज कल के हिन्दू भी इस क़िस्म की कुर्बानियों की तालीम को वेदों में से निकलते देखकर ख़ुशी हासिल नहीं कर सकते थे। क्यों कि अगर बग़ौर देखा जाये तो मौजूदा हिन्दुओं में जो जानवरों की कुर्बानी के खि़लाफ़ जज़्बा देखा जाता है वह बुद्धों और जैनियों के ही प्रचार का नतीजा है। स्वामी दयानन्द इस मुश्किल को बख़ूबी जान गया था। इसलिये इसका हल उसको इसके सिवाये कुछ नहीं सूझा कि वह इस अध्याय पर नज़र बन्द करके आगे निकल गया। वरना अम्र वाक़िअ़ा तो ये है कि यजुर्वेद का चौबीसवाँ अध्याय, गाय, बेल, भेंस, भेड़, बकरी, हिरन, ग़र्ज़ेकि मुख़्तलिफ़ क़िस्म के जानवरों की कुर्बानी का एक ख़ूनी मुज़बह या कुर्बान गाह है। जिसकी ताईद बहुत से पुराने और ज़माना हाल के मुफ़स्सिरीन भी करते हें। इस कुर्बान गाह या मुज़बह पर पर्दा डालने के लिये स्वामी दयानन्द इस अध्याय को जूँ का तूँ बतौर एक चैसतान के छोड़ जाता है और असलियत को छुपाने की इसने जो नाकामयाब कोशिश की है वह ऐसी मुज़हिका खे़ज़ है कि इसके एक एक फ़िक़रे पर बीसियों ऐतराज़ो की बोछार होती है। मसलन् नामालूम भेड़ और धारन करने के लायक़ एक ही रंग वाली छोटी छोटी बछड़ियाँ विद्वानों की स्त्रियों के लिये जाननी चाहियें। (मंतर 5)
सवाल पैदा होता है कि नामालूम क्या बला है और विद्वानों की स्त्री इसको लेकर क्या करे और बछड़ियों को विद्वानों की स्त्रियों से क्या तअल्लुक़ वह बछड़ियों को क्या करें। इनकी पूजा करे या उनसे जंग करें या उनका दूध दोहें जबकि वह दूध देने के क़ाबिल नहीं हैं या उनके पाँव धोकर पियें या क्या करें। इसी तरह मंतर 18 में माता पिता के लिये ख़ाकी रंग वाले अमीरों वज़ीरों के लिये काले रंग वाले और गनी विद्या को जानने वालों के लिये मौअे ताजे़ पशु मुक़र्रर किये गये हैं। उसमें क्या राज़ है। इसी तरह मंतर 23 में मुर्ग़ाें, उल्लुओं, मोरों, कबूतरों का हाल लिखा है। और मंतर 24 में विद्वानों की स्त्रियों के लिए तो गौओं को मारने वाले जानवर और विद्वानों की बहनों के लिये कोलीक नाम के जानवर मुक़र्रर किये हैं। ये बहुत अजीम मुअम्मा है। इसी तरह मंतर 30 में मुख़्तलिफ़ इन्सानों के लिए मुख़्तलिफ़ क़िस्म के जानवर मसलन् नील गाय, जंगली मेंढा, काला हिरन बत्तख़ वगै़रह मुक़र्रर किये गये हैं। अला हाज़ल क़यास मंतर चालीस में विद्वानों के लिए गेंडा और दुष्टों के लिये काले रंग का कुत्ता गधा और सियाह गोश। राजा के लिये सुअर और चाँदमारी करने वालों के लिये गिरगिट पपीहा मुक़र्रर किये गये हैं। इसी तरह उन्तीसवें अध्याय के मंतर 59 में लिखा है
ऐ इन्सानो! तुम क़ाबिले तारीफ़ फ़ौज वाले, विज्ञान युक्त, सिपेहसालार के लिये लाल वसूल वाला बेल, सूरज के गुण वाले नीचे हसूल में सफ़ेद रंग वाले ताक़त देने वाले सुनहरी नाफ़ वाले विद्वानों के सम्बन्धी जंगली बकरे और पीले रंग के पशु वायु देवता वाले ख़ाकी रंग वाले अग्नि देवता वाला काला बकरा। बानी के गुनों वाली भेड़ और जल के गुणों वाला तेज़ रफ़तार पशु काम में लाओ।
अब सवाल पैदा होता है कि सिपेहसालार के साथ बेल, ताक़त देने वाले जंगली बकरों, काले रंग के बकरों, भेड़ों का क्या तअल्लुक़ है। ये जानवर सिपेहसालार के लिये किस तरह काम में लाये जायें। स्वामी दयानन्द इसका जवाब नहीं देता। मगर इसका जवाब विशिष्ट स्मृति मुतर्जमा पंडित भीमसेन सफ़हा 120 पर दिया गया है।
अगर ब्रहमन, खशतरी या राजा मेहमान आ जाये तो घर वाला इसके लिये बेल और बड़े बकरे का माँस पकावे।
ग़ालिबन् विशिष्ट स्मृति में वेद के इसी अध्याय या मज़कूरा बाला मंतर की तरफ़ ही इशारा है। स्मृति और श्रुति को जब पहलू बा पहलू रखकर देखा जाता है। तो मतलब बिल्कुल साफ़ हो जाता है। इसी तरह आपस्थबा सोत्र के प्रथम प्रश्न की पाँचवीं टपल की अठारहवीं कांडका में गाय के मारने की इजाज़त दी गयी है। महाभारत के दिन पर्व के अध्याय 207 में लिखा है कि रंती देव राजा, रोज़ दो हज़ार गाय ज़िबह किया करता था और ऋषि मुनी इसके हाँ भोजन पाया करते थे और ये राजा मरने के बाद स्वर्ग में गया।
विष्णु पर इन मतबूआ बंग बासी 1956 सफ़हा 313, 314 पर लिखा है कि गौ माँस से पुत्र लोग ग्यारह माह तक तृप्त रहते थे चुनांचे शुप्राण अध्याय 63 में कोशिक के पुत्र गर्ग ऋषि के शागिर्दों को श्राद्ध में गौ माँस खाने का ज़िक्र आता है। इसी तरह विष्णु संहिता अध्याय 80 में मुख़्तलिफ़ देवताअें या पुत्रों के नाम पर मुख़्तलिफ़ जानवरों की कुर्बानी और उनके माँस से उन उन देवताओं या पुत्रों का मुख़्तलिफ़ अर्से तक तृप्त रहना बताया गया है। इन बातों ंप मेरी मुराद इस बात पर बहस करना नहीं है कि पुत्रों या श्राध के बारे में स्वामी दयानन्द की जो पोज़िशन है वह ग़लत है। या सही बल्कि इस बात पर बहस करना है कि जिस सूरत में कि स्वामी दयानन्द ख़ुद अपनी इबतदाई तसानीफ़ में ये मान चुका हो कि यज्ञ में जानवरों की कुर्बानी करनी चाहिये और जिस सूरत में कि दीगर शास्त्र भी इसकी शहादत देते हों। इस सूरत में स्वामी दयानन्द ने इस सीधे रास्ते को छोड़कर यजुर्वेद की चौबीसवें अध्याय की असलियत पर पर्दा डालने की जो कोशिश की है। इसमें ख़ुद स्वामी दयानन्द क़तई बेदस्त व पा रह गया है और ये तमाम का तमाम अध्याय बज़ाते ख़ुद एक चैस्तान बन गया है जिसके सर पैर का कुछ पता नहीं लग सकता।
अब सवाल ये पैदा होता है कि अगर वेद ख़ुदा का कलाम हैं और वह इन्सानों की रहबरी के लिये नाज़िल हुए हैं तो क्या वजह है कि इन्सान शुरू दुनिया से लेकर आज तक उनकी असली मअ़नों को समझने से क़ासिर रहे हैं। यहाँ तक कि ख़ुद स्वामी दयानन्द के लिये भी जो कि बक़ौल प्रोफ़ेसर मैक्स मूलर वेदों के पीछे पागल था। वेदों के अक्सर मक़ामात सेहराये आज़म साबित हुए हैं और वह उन पर कुछ रोशनी नहीं डाल सका जैसा कि मज़कूरा बाला अध्याय में दिखाया गया है। ऐसे हालात में कोई दयनतदार शख़्स इस बात के लिये तैयार नहीं हो सकता कि वह वेदों को ख़ुदा का कलाम माने जो कि इन्सानों की रहबरी के लिये नाज़िल हुआ। हालांकि सही पोज़िशन ये है कि वेद पुराने ज़माने के पुरोहितों के गीत हैं। उनमें से बअज़ अच्छे और बहुत अच्छे हैं लेकिन बअज़ महज़ बच्चों की बातें और बअज़ सख़्त वहशियाना ख़्यालात का मदफ़न हैं जो कि उन पुरोहितों के सीने मे मोजज़न थे ऐसी सूरत में वेदों को ख़ुदा का कलाम मानना और उन पर अपने दीन व ईमान की बुनियाद क़ायम करना इन्सान की रूह पर सख़्त ज़्ाुल्म करना है क्योंकि इस सूरत में इन्सान की तमाम रूहानी आज़ादी पुरोहितों के हाथ में बिक जाती है और वह इससे आगे परवाज़ नहीं कर सकती। जहाँ तक कि इन पुरोहितों ने परवाज़ किया है। अगर उसको उनमें कोई ग़लत या वहशियाना बात नज़र आती है तो ऐसी ग़्ाुलाम रूह ये कहने की ताक़त नहीं रखती कि वह बात दरहक़ीक़त ग़लत और वहशियाना है। बल्कि वह यह कहकर अपनी तसल्ली कर लेती है कि ये मेरी अक़्ल का क़सूर है कि मैं इस मुअम्मे को समझ नहीं सकता ये किस क़द्र ख़तरनाक रूहानी ग़्ाुलामी है इसके बरअक्स अगर ये तस्लीम कर लिया जाये कि वेद ख़ुदा का कलाम नहीं है बल्कि वह पुराने ज़माने के इन्सानों के ख़्यालात का मजमूआ है तो इस सूरत में हमें ये कामिल आज़ादी हासिल रहती है कि हम उनमें से मुफ़ीद ख़्यालात को लेलें और मुज़िर ख़्यालात को परे फेंक दें। इस तरह हमारी ज़ेहनी और रूहानी तरक़्क़ी का रास्ता बराबर खुला रहता है और हम पुरोहितों की ग़्ाुलामी का शिकारी बनने की बजाये अपनी आज़ादी को बराबर क़ायम रख सकते हैं जो लोग ये प्रचार कर रहे हैं कि वेद ख़ुदा का कलाम है वह सिर्फ़ यही नहीं कि रूहानी आज़ादी के गले पर छुरी रख रहे हैं बल्कि वह आने वाली नस्लों के लिये रियाकारी, अलहाद और देहरियत के महल का बुनियादी पत्थर क़ायम कर रहे हैं।
क्योंकि ये लाज़मी अम्र है कि जिस वक़्त भी किसी दयानतदार इन्सान को इस ख़ौफ़नाक तालीम का पता लगेगा जिसकी चन्द मिसालें मैं ऊपर दर्ज कर चुका हूँ वह उसी वक़्त या तो इस ख़ुदा की तरफ़ से मुँह फेर लेगा जो कि इस क़िस्म का इलहाम दे सकता है। या वह वेदों को हाथ से फेंक देगा। इसकी ज़िन्दा मिसाल मैं मौजूद हूँ। जो इस बात का पता लगने के साथ ही कि वेदों में इस क़िस्म की ख़तरनाक तालीम भी मौजूद है। उनको हाथ से फेंक रहा हूँ और उनको ख़ुदा का कलाम तसलीम करने के लिये तैयार नहीं हूँ। हालांकि इससे पेशतर मैं वेदों को दिल व जान से ख़ुदा का कलाम मानता और ऐसा ही प्रचार करता था। लेकिन अब मेरे लिये नामुम्किन है कि मैं ऐसी तालीम को वेदों में देखकर जो कि स्वामी दयानन्द के अपने ही अल्फ़ाज़ में महज़ जिहालत की तालीम है। उनको ख़ुदा का कलाम मानूं तावक़्ते कि मैं रियाकारी से काम न लूँ लेकिन मैं रियाकार बनने के लिये तैयार नहीं हूँ। लिहाज़ा मेरे लिये लाज़मी हो जाता है कि मैं वेदों के बोझे को सर से उतार कर फेंक दूँ। इस बात पर रोशनी डालने के लिये कि इस मसअले ने लोगों को किस क़द्र रियाकार बना रखा है। यहाँ पर आर्य समाज के एक अख़्बार में से चन्द सतरें नक़ल करता हूँ। आर्य समाज का एक लीडर लिखता है
जो सवाल आप के रूबरू पेश किया जाता है वह गोश्त ख़ोरी के सवाल से कई दर्जे बढ़कर है क्या नास्तिक यानी वेदों को ईश्वर कृत न मानने वाले आर्य समाज के लीडर और बड़े बड़े अधीकारी हो सकते हैं ? एक अधीकारी महाशय से कुछ अर्सा हुआ मैं ने दर्याफ़त किया कि आप वेदों को ईश्वरकृत मानते हैं। जवाब दिया कि जैसा दस उसूलों में लिखा है वैसा मानता हूँ उसूलों में ‘‘वेद ईश्वरकृत हैं’’ ऐसा मतलब है या नहीं। अगर है तो सवाल का जवाब हाँ होना चाहिये था अगर सूरत दोयम हो तो सवाल नहीं होता अगर अक्सर असहाब को सीधा हाँ या न करने में ताम्मुल होता है। उमूमन् इसी क़िस्म के जवाब होते हैं जैसा कि मज़कूरा मुझको मिला है। आप से सच कहता हूँ कि मुझको कभी ख़्याल तक भी नहीं गुज़रा कि उसूलों में लफ़ज़ ईश्वरकृत न होने से कुछ और भी इसका मतलब हो सकता है। जहाँ तक स्वामी जी का ज़ाती यक़ीन इसके बारे में है वह किसी से पोशीदा नहीं। स्वामी जी लिखते हैं कि चारों वेदों को धर्मयुक्त, ईश्वर परिणित संहिता मनुभाग को ही निरा भ्रान्त सोता प्रमाण मानता हूँ चूंकि स्वामी जी इन नियमों का अपनी ज़िन्दगी में प्रचार किया इससे इसका मतलब स्वामी जी के निज सिद्धान्तों के बरखि़लाफ़ नहीं हो सकता। पस जो पुरूष इस सवाल का जवाब ये न देवें कि हाँ मैं वेदों को ईश्वरकृत मानता हूँ ज़रूर उसूलों के कुछ और अर्थ करते हैं और वेदों को उन्हें ईश्वरकृत समाज के बड़े मिम्बर और अधीकारी हो सकते हैं तो किस का मक़दूर है कि माँस भक्षण को नाजायज़ ठहराये। वेद आर्य समाज की बुनियाद है। जब वेदों को ही उड़ा दिया तो मूल की अदम मौजूदगी से शाख़ पत्ते कहाँ रह सकते हैं ऐसा मानने वाले एक नहीं बल्कि अग़लब है कि बहुत से होंगे। (सत्ता धर्म प्रचारक 2 अक्तूबर 1912 ई0)
मज़कूराबाला तहरीर आर्य समाज के एक लीडर की तरफ़ से शाये होती है। इससे मेरे इस बयान की ज़बरदस्त अल्फ़ाज़ में ताईद होती है कि इस मसअले ने कि ‘‘वेद ईश्वरकृत’’ हैं सोसायटी में रियाकारों का एक ख़ासा गिरोह पैदा करने में मदद दी है जो दिल से वेदों को ख़ुदा का कलाम नहीं मानते। लेकिन पुरोहित क्लास से वह इस क़द्र डरते हैं कि अपने ख़्यालात को वह आज़ादाना तौर पर ज़ाहिर करने की अख़्लाक़ी जुरअत नहीं रखते इसका नतीजा सिवाये इसके और क्या निकाला जा सकता है कि वेद उनको बजाये दयानतदार बनाने के रियाकार बना रहे हैं। फट पड़े सोना जो छेदे कान। रियाकार बनने की बजाये बेहतर है कि वेदों को ही उठाकर अलग रख दिया जाये इसीलिये मैंने इस ना मरग़्ाूब बोझ को सरसे उतार फेंका है। मगर बिला वजह नहंी बल्कि संगीन वाक़िअ़ात और ज़बरदस्त वजूहात की बिना पर मैं वेदों को ख़ुदा के कलाम के दर्जे से साक़ित करके पुराने ज़माने के पुरोहितों के गीतों की सतह पर रखता हूँ उनमें से बअ़ज़ गीत अच्छे हैं लेकिन बअज़ सख़्त वहशियाना और ख़तरनाक हैं। अब मैं वेदों को न तो कलामे इलाही मानता हूँ न ही मैं इस बात का क़ायल हूँ कि वेदों के प्रचार से दुनिया में आलमगीरी शान्ति की बादशाहत क़ायम हो सकती है बल्कि जैसा कि मैं ऊपर दिखा चुका हूँ वेदों में जिस क़द्र जंग व जदल कुश्त व ख़ून, मार धाड़, दंगा फ़साद, लूट, ग़ारत, क़त्ले आम, अपने धर्म के मुख़ालिफ़ों को उल्टा करके ज़िन्दा आग में जलाने, अपने दुशमनों को शेरों से फड़वाने, समन्दर में ग़र्क़ करने, दरिन्दों से चरवाने और अनवाअ़ व अक़साम की सफ़ाकियों से मरवाने की तालीम है वह निहायत ही ख़तरनाक बल्कि शर्मनाक है। ऐसी तालीम को ख़ुदावन्दे कुद्दूस की ज़ाते पाक की तरफ़ मनसूब करना सख़्त कुफ्ऱ ख़ौफ़नाक देहरियत और शर्मनाक इलहाद है। और ये कहना कि ऐसी तालीम के प्रचार से दुनिया में अमन की बादशाहत क़ायम हो सकती है एक लासानी झूठ है। सच तो ये है कि दुनिया को ऐसे वैदिक धर्म की ज़रूरत नहीं है बल्कि वैदिक धर्म के नीचे से निजात पाने की ज़रूरत है। क्योंकि वैद जिस क़िस्म की ख़ूंरेज़ी की तालीम देते हैं वह तो चारों तरफ़ हो रही है। और वेदों की तालीम के मुताबिक़ तोप, बन्दूक़ तीरेा तफ़ंग, आतिशीं असलहे की भरमार, जंग व जदल, कुश्त व ख़ून, दंगा फ़साद मारधाड़, क़त्ल व ग़ारत, फ़ौज की कसरत, बमसाज़ी, मशीनगन, क्रूपगन, डरेडनाट, डिस्टरायर, क्रूज़र, टारपीडो, बर्री, बहरी, और हवाई जंग, गाँव के जलाने, दुशमनों को क़त्ल करने, चीरने, फाड़ने, ग़र्क़ करने, और बअज़ हालात में ज़िन्दा आग में जलाने अपने दुशमनों की तबाही चाहने और उनकी बरबादी के लिये ख़ुदा से दुआऐं मांगने, उनको ज़ेहर देने, उनकी गर्दने काटने, उनका बीज नाश करने, उनके घरों को लूटने उनके खेतों को आग लगाने की बदौलत जैसा कि वेद मंतरों से ऊपर साबित किया जा चुका है। तमाम दुनिया शौला-ए-नार बन रही है। और चारों तरफ़ वेदों की इस ख़तरनाक तालीम के ख़ौफ़नाक शौले ज़मीन से उठकर आसमान की तरफ़ जा रहे हैं और दुनिया इस अमली वैदिक धर्म के भारी बोझ के नीचे पिस्ती जा रही है। और मर रही है। वैदिक धर्म की इस अमली प्रचार की आग में घी की आहूति डालना मिस्टर ह्यूम के अल्फ़ाज़ में बनी नूए इन्सान के साथ ग़द्दारी करना है। स्वामी दयानन्द ने वेदों को उठाया, नतीजा ये निकला कि उन्होंने सिवाये उनके जो वेदों को ख़ुदा का कलाम मानते थे बाक़ी तमाम मज़हबी दुनिया को और तमाम मज़ाहिब के मुक़द्दसीन को तलवार से नहीं बल्कि शमशीरे से बेदरीग़ तहे तेग़ कर दिया। जिसने वेदों के सामने सर झुकाया उसी ने सारी मज़हबी दुनिया के साथ हंगामा कारज़ार शुरू कर दिया। वह सोसाइटी जो वेदों को खुदा का कलाम मान रही है। वह सिर्फ यही नहीं कि बाकी तमाम मज़ाहिब को अपना दुश्मन खयाल करके वेदों की तालीम के मुताबिक उनकी बीखकुनी में मसरूफ है बल्कि उसी तालीम का बदौलत उसके मेम्बर आपस में भी एक दूसरे के जिल्लत और तहक़ीर, तज़हीक और तज़लील में रात-दिन कोशां रहते और तहरीर और तक़रीर के ज़रिये एक दूसरे की तबाही और बरबादी के मन्सूबे सोचते रहते हैं, चूंकि वेदों में जाबजा यही तालीम दी गयी है कि वह जो हम से दूश्मनी करते हैं वह फना हो जायें और जिन से हम दुश्मनी करते हैं वह भी फना हो जायें, इस लिए इन दुआओं को इलाही दुआयें मानने वाले एक दूसरे की तबाही और बरबादी, जिल्लत और तहक़ीर में रात दिन कोशां नज़र आते हैं, बस वेदों की अन्दरूनी तालीम और उसके बदीही नताईज पर नज़र करके में यह नतीजा निकालने के लिए मजबूर हुआ हू कि ज़हरीले दरखत का फल कदरतन ज़हरीला होता है। ऐसी तालीम को खुदावन्द कुद्दूस की ज़ात वाल की सिफात की तरफ मन्सूब करना मिस्टर हयूम के अल्फाज़ में महज शरारत फेलाना है।
समाप्त