Thursday, June 21, 2012

गाजी महमूद धर्मपाल का जिकर पुस्‍तक ''दयानन्‍द‍ तिमिरभास्‍कर'' में

11 साल आर्य समाजी रहे गाजी महमूद धर्मपाल का जिकर सनातन धर्म के ज्‍वाला प्रशाद मिश्र की सत्‍यार्थ प्रकाश के 1913 में प्रकाशित जवाब में लिखी गयी किताब ''दयानन्‍द‍ तिमिरभास्‍कर'' में चित्र में देखें----और-गाजी महमूद धर्मपाल की पुस्तक ‘कुफर तोड‘ की एक झलक इधर देखें vedaurswamidayanand.blogspot.in/2012/05/blog-post.html

Tuesday, June 19, 2012

स्‍वामी दयानंद सरस्‍वती का जन्‍म स्‍थान, खानदान का पता कभी न लगा

स्‍वामी श्रद्धानंद जी की पुस्‍तक ''आर्यपथिक लेखकराम'' से पता चलता है कि स्‍वामी दयानंद के जन्‍म स्‍थान की तलाश नाकाम रही,,,,, 


जबकि आजकी नसल को पढाया जा रहा है कि वो कितने महान थे,, जिसके जन्‍म स्‍थान का पता उसके मरने के बाद जन्‍म सथान ढूंडा जा रहा हो,, उसके खानदान का पता कैसे मिलेगा? ,,, उनके खानदान तक की तलाश भी नाकाम रही थी,,उनके मरने की पहली कहानी 40 साल तक कुछ थी,,फिर कुछ और आज प्रचलित ऐसी बेशुमार बातों को,,45 साल की महनत से तैयार उर्दू आनलाइन पुस्‍तक ''स्‍वामी दयानंद और उनकी तालीम'' से बहतर तरीके से समझ सकेंगें
आनलाइन उर्दू पुस्‍तक ''स्‍वामी दयानंद और उनकी तालीम'
online
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Saturday, May 26, 2012

गाजी महमूद धर्मपाल की पुस्तक ‘कुफर तोड‘ की एक झलक

इस्लाम ज़न, जोरू या जमीन से नहीं फेला न इसकी इशाअत तलावार से हुईः --- मैं अपने आपको इस बात के बतौर जिन्दा सबूत के पेश करता हूं।
दुनिया जानती है कि 1903 ई.  हम खुले तौर पर वैदिक-धर्मी बन गये और 1911 ई. की मरदुम शुमारी में सिर्फ यही नहीं कि हम ने खुले तौर पर हिन्दू कौम के हक में राय दी बल्कि गोर्मिन्ट की रिपार्टों में आर्य-समाज के मुमताज लीडर की हैसियत से हमारा नाम नियाहयत नुमायां अल्फाज में लिखा गया। कि उस तमाम अर्से में हक सिर्फ यही नहीं हिन्दू कौम के तरफदार और सहायक बने रहे बल्कि खुले तौर पर वैदिकधर्मी बनकर डेढ फुट लम्बी चोटी और तौला-भर का जनेउ लटकाते हुए धोतीपोश महात्मा बनकर कई सालों तक मुसलमानों के साथ तहरीरी और तकरीरी जंग करते रहे, जिस जमाने में हम वैदिधर्मी थे हमारे लिए दुन्यावी राहत, दुन्यावी दौलत और सम्मान और शौहरत और दुनयावी ऐशो ईशरत के हर एक किसम के सामान मौजूद थे। रेशम और मखमल के बिछोने लेटने के लिए, नौकर-चाकर खिदमत करने के लिए हर वकत मौजूद रहते थे हम जिधर निकल जाते थे फूलों की बारिश होती थी,  मर्द और औरतें दर्शनों के लिए बेताब रहती थी हम सोने और चांदी में खेलते थे। फ्रस्ट और सेकिण्ड क्लास के सिवाये किसी दूसरे दर्जे में सफर करना हम अपनी शान के खिलाफ समझते थे। जिस शख्स को हमारे कदम छूने या दर्शन करने का मौमा मिल जाता था वह अपने आपको खुश किस्मत समझता था। हम जवान थे, आलमे शबाब था। सन्फे नाजुक के कितने ही दिल इस आरजू में थे उनको हमारी जिन्दगी का हम-सफर बनने की सआदत नसीब हो, कई फूल इसी आरजू में मुरझा गये, और कई गुन्चे इसी अरमान में कुमला गये। कई कलियां खिलते-खिलते रह गयी। कई झड गयीं, और कई सड गयी। अगर हम नफसियात के गुलाम होते तो हम जिस चमन के अन्दर सेर कर रहे थे उसमें जिस फूल को चाहते तोडते और जिस गुन्चे को चाहते मरोडते और अगर हम दौलत के भूके होते तो वह हमारे कदम चूम रही थी जिस कदर चाहते जमा करते अगर शोहरत को चाहते तो वह बिन मांगे मिल चुकी थी। सोचने का बात है कि पच्चीस-तीस वर्ष का नोजवान हो तन्दरूस्त और सही सालिम हो, तवाना हो, ऐश और इशरत का हर एक सामान उसके इर्द गिर्द अंबार दर अंबार मौजूद हो, मगर वह इन सब पर लात मार कर और तमाम तर्गीबात से मुंह मौड कर यह फेसला करे जिस रास्ते पर मैं जा रहा हूं वह गलत है कतअन गलत है।


 रास्ते का गलत होने का इलम होने साथ ही वह उन तमाम किताबों को जो उसने इस्लाम और मुसलमानों के खिलाफ लिखी हों और जिन की कीमत हजारों रूपया हो एक बडे ढेर में जमा करे मिटटी का तेल डालकर आग लगा देता है इस लिए कि जब वह रास्ता ही गलत निकला तो उस रास्ते पर जितना सफर किया गया वह सब गलत फजूल और बेकार गया। किसी ऐसे शख्स के नजदीक जो दुनिया के मजे को ही जिन्दगी का मकसद समझ रहा हो, हमारा यह फेसला यकीनन खुदकशी लगेगा लेकिन उसको यह भी तो सोचना चाहिए कि यह शख्स तालीम याफता है समझदार है अपने होश और हवास में  है जवान है, सठिया नहीं गया, अगर वह दुनिया की इन चीजों पर लात मार हल्का-ए-बगोश इस्लाम होता है तो आखिर इसको उन चीजों से बहतर कोई चीज इस्लाम में नजर आती होगी जिसकी खातिर वह दुनिया के मजों की इतनी बडी कुरबानी कर रहा है। 

वह चीज क्या है? क्या दौलत है? दौलत को तो वह खुद छोड रहा है किया औरत है? हरगिज नहीं इस लिए कि बीवी तो उसके पास मौजूद है जो वफादार खूबसूरत और खूब सीरत होने के अलावा फरमांबरदार और तालीम याफता है, कोई घसियारन, पनिहारन, कलालन, खतरानी, वेशईन नहीं है बल्कि हिन्दू कौम की सबसे उंची और सबसे आला जात यानि ब्रह्मन कुल में पैदाशुदा है। ब्रहम्न में से किसी गये गुजरे खानदान की नहीं ऐसे खानदान से ताल्लुक रखने वाली कि जिसके रिश्तेदारों में ऐसे ऐसे लायक तजरबे कार और तालीम याफता ब्रहमन मौजूद हों कि जो हमारे देखते हुए बडी-बडी हिन्दू सभाओं और समाजों की निजामत की कुर्सी पर बैठे। और हिन्दू कौम की जहाज को निहायत तन्दही के साथ साहिल की तरफ चलाते नजर आते हों, जिस को वैदिक धर्म या हिन्दू कौम में रहते हुए ऐसे आला कौम की बरगजीदा खानदान की तालीम याफता फरमांबरदार और नेक और सआदतमंद बीवी भी मिल चुकी हो, सोचने की बात और गौर का मकाम है कि वह शख्स इन तमाम बातों के होते हुए फिर भी वैदिक धर्म को छोडे और हिन्दू कौम से ताल्लुक खत्म करे इस्लाम की तरफ भागा आये और मुसलमानों में मिल बेठने को गनीमत तसव्वुर फरमाये। आखिर इसमें क्या राज है? क्या भेद है और मुअम्मा है बस समझ लेना चाहिए कि जा राज इस नोजवां के वैदिक धर्म या हिन्दू धर्म या हिन्दू कौम से ताल्लुक खत्म करके इस्लाम कुबूल कर लेने में छूपा है और जो मुअम्मा इसमें छूपा है ठीक वही राज और वह मुअम्मा वही भेद हमारे उन करोडों आबा अजदाद अर्थात पूर्वजों की जिन्दगियों में छुपा था जिन्होंने हिन्दू कौम में रहने की हालत में अपने इर्द गिर्द तमाम ऐश और दौलत और इज्जत और शौहरत पर लात मार कर हिन्दू धर्म का तर्क करके खुले बंदो इस्लाम कुबूल किया था। इन्हीं हक और हक्कानियत के शैदाईयों। इन्हीं तौहीद और रिसालत के फिदाईयों की औलाद होने का आज हम साढे छ करोड मुसलमानाने हिंदू को फखर हासिल है। यह कहना हमारे इन मुकददस बुजुर्गों ने तलवार के डर के मारे हिन्दू धर्म को तर्क कर दिया था या औरतों और रूपये के लालच में आकर वह मुसलमान हो गये थे या वह हिन्दू धर्म से बेखबर थे या वह तहकीक करने वाले नहीं थे सरासर गलत बे बुनियाद और झूटे इलजामात हैं ऐसे इल्जाम लगाने वालों को हम बता देना चाहते हैं कि हमारे पूर्वज और मुकददस बुजुर्गों की दहलीज तक तो तुम उस वक्त पहुचने की कोशिश करना जबके पहले हम से बच निकलो। जब ऐसे पूर्वजों के नाम लेवा और उनकी औलाद कहलाने में फखर करने वाले तुम्हारे सामने मौजूद बैठे हैं तो पहले हमारे साथ निपट लो, हम शर्मा जी से पूछते हैं कि अगर उनका यह बयां कि इस्लाम तलवार के जौर से फेला और कि हिन्दुस्तान में जितने लोगों ने इस्लाम कुबूल किया वह तलवार, औरत, रूपया या ओहदों के लालच में या हिन्दु धर्म से बेखबर होने की वजह से कुबूल किया तो वह जरा बतलायें कि हमारे पूर्वज तो एक तरफ खुद हमारे सर पर मुसलमानों ने कौन सी तलवार खींच थी, किस मुसलमान खातून का लालच दिया था? किस कदर खजाने पेश किये थे या किस मुस्लिम रियासत की वजारत का कलमदान देने का वादा किया था, जिस की खातिर हमने वैदिक धर्म के छोड कर और हिन्दू कोम से कता ताल्लुक करके इस्लाम कुबूल किया और मुसलमान हो गये। रहा हिन्दू या वैदि धर्म के मुताल्लिक हमारी तहकीकात का सवाल इसका आसान फेसला यूं हो सकता है कि मास्टर जी हिन्‍दुस्तान भर के तमाम बडे-बडे हिन्दू पंडितों को एक जगह जमा करें। इधर से हम तन तन्हा उनके साथ हिन्दू या वैदिक धर्म के मुताल्लिक मुबाहिसा और मुनाजरा करने के लिए मैदान में आयेंगे, हम यह भी इजाजत देते हैं कि हिन्दुस्तान भर के तमाम हिदू पंडितों की खुद भी मदद करें और अपने तमाम देवा और देवताओं से भी मुबाहसे के दौरान में मदद लेते रहें। हम यह भी वादा करते हैं कि अगर दौरान मुबाहसा में हिन्दू पंडित अपने चौबिस करोड भाईयों की मदद और अपनी तमाम देवी और देवताओं की मिली जुली ताकत के साथ इस्लाम पर हिन्दू धर्म की फोकियत को साबित कर दिखायें तो हम उसी वक्त हिन्दू बन जायेंगे और इसके अलावा अगर वह किसी किस्म की हमारे लिए मुनासिब और जायज सजा भी तजवीज करें गे जो वह कानून की हदूद से बाहर न हो तो हम उस सजा को भी भुगतने के लिए तैयार होंगे। इन तमाम मराआत के बावजूद हम उनको यह मजीद रिआयत देने का वादा करते हैं कि अगर वह मुबाहिसे या मुनाजिरे में वेदिक या हिन्दू धर्म की इस्लाम पर फोकियत साबित न कर सकें जिसका हमें यकीन है कि वह नहीं कर सकते और नहीं कर सकेंगे चाहे वह अपनी तमाम देवी और देवताओं को भी अपनी मदद के लिए बुलालें तो इस सूरत में हम उनसे यह मुतालिबा हरगिज नहीं करेंगे कि वह जरूर मुसलमान हो जाये न ही हमारी तरफ से उनपर किसी किसम का जबर होगा बल्कि इस्लाम का कुबूल करना और न करना उनकी मरजी पर छोड दिया जावेगा। इस लिए कि इस्लाम पाक ने हमें जबर की इजाजत नहीं दी बल्कि हमें सिफ इतनी ही इजाजत देता है कि रोशनी और अन्धेरे में फर्क दिखला दो। उसके बाद जिस मरजी हो रौशनी में चले जिस की मरजी हो अन्धेरे में ठोकरें खायें। ........हमें उम्मीद है कि शर्मा जी इन शर्तों पर गोर फरमाकर हिन्दुस्तान भर के हिन्दू पंडितों के अन्दर रूह फूंकने की कोशि करेंगे कि वह मुबाहिसे के मैदान में आ जायें ताकि इस बात का दो टूक फेसला हो जाये कि हिन्दुस्तान में इस्लाम अपनी खुबियां के जोर से फेला है। चूंकि हम दोनों ग्रजवेट हैं और इस वक्त जिन्दा मौजूद हैं इस लिए हमें अपनी जिन्दगी में ही इस मसले को हल कर लेना चाहिए। ऐसा न हो कि जिस तरह हमारे पूर्वजों के मरने के बाद शर्मा जी उन पर यह बेबुनियाद झूटे इलजाम लगा रहे हैं कि उन्हों ने तलवार के डर से, या दौलत से या औरत के लालच से या हिन्दु धर्म की नावाकफियत की बिना पर इस्लाम कुबूल किर लिया था इसी तरह हमारे मरने के बाद वह या उनका कोई दूसरा हमनवा शर्मा या वर्मा हमारे मुताल्लिक भी इस किस्म की शरारत आमेज झूट लिखे कि हमने मुसलमानों की तलवार से डर कर या किसी मुसलमान औरत की खातिर या रूपये की लालच से या वैदिक धर्म या हिन्दू मत की नावाकफियत की बिना पर वैदिक या हिन्दू धर्म को तर्क करके इस्लाम कुबूल कर लिया था। इस किसम की तमाम शरारत को खतम करने के लिए ही हमने शर्मा और उसकी तमाम कौम को चैलेंज दिया है उम्मीद है वह इस को कुबूल करेंगे।
 

साभार उर्दू पुस्तक ‘कुफर तोड‘ पृष्ठ 9 से 12
लेखक 

गाजी महमूद धर्मपाल बी.ए. 1923 ई.